पालीवालों के प्राचीन-रहस्यमय गांव कुलधरा की तस्वीरें और इतिहास ।
तरंग पर मैं अपनी जैसलमेर यात्रा की डायरी लिख रहा हूं । जो लगातार अनियमित होती जा रही है । निजी और पेशेवर जिंदगी की व्यस्तताएं उस तरह का सुकून नहीं दे पा रही हैं जिनमें एक एक लम्हे को याद करके डायरी पर उतारा जा सके । पिछली पोस्ट थी जैसलमेर के किले के बारे में । जिसमें मैंने आपको बताया था कि किस तरह सारा शहर किले में बसा है ।
अब आपको बता दूं कि हड़बड़ी में जैसलमेर का किला देखने के बाद हम सीमा सुरक्षा बल के जैसलमेर परिसर में पहुंचे और वहां युद्ध में विधवा हुई स्त्रियों तथा फौजियों के परिवार की अन्य महिलाओं की रिकॉर्डिंग की गयी । चूंकि महिलाओं की तादाद ज्यादा थी इसलिए सखियों के अलावा हमें भी..यानी हम पुरूषों को भी इस कार्यक्रम का संचालन करना पड़ गया । बहरहाल । यहां से एक बहुत ही अहम ठिकाना था हमारा और वो था कुलधरा । कुलधरा पालीवालों का गांव था और पता नहीं क्या हुआ कि एक दिन अचानक यहां फल-फूल रहे पालीवाल अपनी इस सरज़मीं को छोड़कर अन्यत्र चले गये । उसके बाद से कुलधरा पर कोई बस नहीं सका । कोशिशें हुईं पर नाकाम हो गयीं । कुलधरा के अवशेष आज भी विशेषज्ञों और पुरातत्वविदों के अध्ययन का केंद्र हैं । कई मायनों में पालीवालों ने कुलधरा को वैज्ञानिक आधार पर विकसित किया था । इसलिए आज मैं आपको कुलधरा के इतिहास के बारे में तो बताऊंगा की साथ ही उसके अनमोल तस्वीरें भी दिखलाऊंगा ।
कुलधरा जैसलमेर से तकरीबन अठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है । सबने कहा था कि जैसलमेर जाएं तो कुलधरा जरूर जाना । कहते हैं कि पालीवाल समुदाय के इस इलाक़े में चौरासी गांव थे और ये उनमें से एक था । मेहनती और रईस पालीवाल ब्राम्हणों की कुलधार शाखा ने सन 1291 में तकरीबन छह सौ घरों वाले इस गांव को बसाया था । पालीवालों का नाम दरअसल इसलिए पड़ा क्योंकि वो राजस्थान के पाली इलाक़े के रहने वाले थे । पालीवाल ब्राम्हण होते हुए भी बहुत ही उद्यमी समुदाय था । अपनी बुद्धिमत्ता, अपने कौशल और अटूट परिश्रम के रहते पालीवालों ने धरती पर सोना उगाया था । हैरत की बात ये है कि पाली से कुलधरा आने के बाद पालीवालों ने रेगिस्तानी सरज़मीं के बीचोंबीच इस गांव को बसाते हुए खेती पर केंद्रित समाज की परिकल्पना की थी । रेगिस्तान में खेती । पालीवालों के समृद्धि का रहस्य था जिप्सम की परत वाली ज़मीन को पहचानना और वहां पर बस जाना । पालीवाल अपनी वैज्ञानिक सोच, प्रयोगों और आधुनिकता की वजह से उस समय में भी इतनी तरक्की कर पाए थे ।
पालीवाल समुदाय आमतौर पर खेती और मवेशी पालने पर निर्भर रहता था । और बड़ी शान से जीता था । इतिहास के झरोखों में आगे झांकने से पहले ज़रा कुछ तस्वीरों पर एक नज़र डाल लीजिए । कुलधरा के मुख्य द्वार पर अपने गाइड के इंतज़ार में बैठे हम तरंगित ।
कुलधरा के मुख्य द्वार पर बंजारा समुदाय का एक वृद्ध बटलोई में खिचड़ी पका रहा था । और पास में बैटरी से चलने वाला रेडियो चल रहा था । हमारे क्लीनर ने उसे बताया कि विविध भारती की टोली कुलधरा देखने आई है । और एक फोटो-सेशन हो गया उस बंजारे के साथ । इस तस्वीर में बांईं ओर अशोक सोनावने, फिर हम 'तरंगित', महाशय 'बंजारे', 'जिप्सी' कमल शर्मा और फिर 'रेडियोसखी' ममता सिंह ।
दोपहर-ऐ-इंतज़ार में क्या क्या ना कर बैठे । कभी बस के भीतर लेटे, कभी बस की छत पर बैठे ।
दरअसल हमारे गाइड पेशे से टीचर और लेखक हैं और आकाशवाणी जैसलमेर के सौजन्य से वो हमारे लिए जैसलमेर शहर से पधार रहे थे इसलिए उनके इंतज़ार में इतने पापड़ बेलने पड़े हमें । पालीवालों के इतिहास के बारे में ज्यादातर जानकारी हमारे गाइड महोदय ने ही दी है और बाक़ी जानकारियां आपके इस तरंगित लेखक ने इंटरनेटी छानबीन से जमा की हैं । अब तक मैंने आपको बताया कि पालीवाल खेती और मवेशियों पर निर्भर रहते थे और इन्हीं से समृद्धि अर्जित करते थे । दिलचस्प बात ये है कि रेगिस्तान में पालीवालों ने सतह पर बहने वाली पान या ज़मीन पर मौजूद पानी का सहारा नहीं लिया । बल्कि रेत में मौजूद पानी का इस्तेमाल किया । पालीवाल ऐसी जगह पर गांव बसाते थे जहां धरती के भीतर जिप्सम की परत हो । जिप्सम की परत बारिश के पानी को ज़मीन में अवशोषित होने से रोकती और इसी पानी से पालीवाल खेती करते । और ऐसी वैसी नहीं बल्कि जबर्दस्त फसल पैदा करते । पालीवालों के जल-प्रबंधन की इसी तकनीक ने थार रेगिस्तान को इंसानों और मवेशियों की आबादी या तादाद के हिसाब से दुनिया का सबसे सघन रेगिस्तान बनाया । पालीवालों ने ऐसी तकनीक विकसित की थी कि बारिश का पानी रेत में गुम नहीं होता था बल्कि एक खास गहराई पर जमा हो जाता था ।
कुलधरा की वास्तुकला के बारे में हमारे गाइड ने कुछ दिलचस्प तथ्य बताए । उनका कहना था कि कुलधरा में दरवाज़ों पर ताला नहीं लगता था । गांव का मुख्य-द्वार और गांव के घरों के बीच बहुत लंबा फ़ासला था । लेकिन ध्वनि-प्रणाली ऐसी थी कि मुख्य-द्वार से ही क़दमों की आवाज़ गांव तक पहुंच जाती थी । दूसरी बात उन्होंने ये बताई कि गांव के तमाम घर झरोखों के ज़रिए आपस में जुड़े थे इसलिए एक सिरे वाले घर से दूसरे सिरे तक अपनी बात आसानी से पहुंचाई जा सकती थी । घरों के भीतर पानी के कुंड, ताक और सीढि़यां कमाल के हैं । कहते हैं कि इस कोण में घर बनाए गये थे कि हवाएं सीधे घर के भीतर होकर गुज़रती थीं । कुलधरा के ये घर रेगिस्तान में भी वातानुकूलन का अहसास देते थे ।
ऐसा उन्नत और विकसित गांव एक दिन अचानक खाली कैसे हो गया । ये एक रहस्य ही है ।
कहते हैं कि जैसलमेर की राजा सालम सिंह को कुलधरा की समृद्धि बर्दाश्त नहीं हो रही थी । उसने कुलधरा के बाशिंदों पर भारी कर/टैक्स लगा दिये थे । पालीवालों का तर्क था कि चूंकि वो ब्राम्हण हैं इसलिए वो ये कर नहीं देंगे । जिसे राजा ने ठुकरा दिया । ये बात स्वाभिमानी पालीवालों को हज़म नहीं हुई और मुखियाओं के विमर्श के बाद उन्होंने इस सरज़मीं से जाने का फैसला कर लिया । इस संबंध में एक कथा और है । कहते हैं कि जैसलमेर के दिलफेंक दीवान को कुलधरा की एक लड़की पसंद आ गयी थी । ये बात पालीवालों को बर्दाश्त नहीं हुई और रातों रात वो यहां से हमेशा हमेशा के लिए चले गये । अब सच क्या है ये जानना वाक़ई बेहद मुश्किल है । लेकिन कुलधरा के इस वीरान खंडहर में घूमकर मुझे बहुत अजीब- सा लगा । इन घरों, चबूतरों, अटारियों को देखकर पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था कि अभी कोई महिला सिर पर गगरी रखे निकल पड़ेगी या कोई बूढ़-बुजुर्ग चबूतरे पर हुक्का गुड़गुड़ाता दिखेगा । बच्चे धूल मिट्टी में लिपटे खेलते नज़र आएंगे । पगड़ी लगाए पालीवाल अपने खेतों पर निकल रहे होंगे । पर सच ये है कि सदियों से पालीवालों का ये गांव पूरी तरह से वीरान है ।
कुलधरा के बारे में एक बात और कहनी है । कुलधरा अभी भी चर्चित पर्यटन-स्थल नहीं है । जब हम वहां पहुंचे तो दक्षिण की एक फिल्म यूनिट अपनी चर्चित पौराणिक फिल्म की शूटिंग कर रही थी । एक बंदा राक्षस बना था जिसने अपनी तस्वीरें खिंचाने से इंकार कर दिया । लेकिन विविध भारती के लोगों से बातचीत करके उसे बड़ा मज़ा आया । हमें ये भी पता चला कि कुछ विदेशी पर्यटक यहां इस उम्मीद में आते हैं कि पालीवालों ने जो सोना यहां दबा रखा था शायद वो उन्हें मिल जायेगा । इसलिए कुलधरा में जगह जगह खुदाई हुई पड़ी है । इसके अलावा शायद चोरी छिपे या घोषित रूप से यहां से पत्थरों को खींचकर निकाला जा रहा है और शहर के निर्माण स्थलों में इस्तेमाल किया जा रहा है । ऐसे वीरान गांवों को देखकर मन बेचैन हो जाता है । शायद कुलधरा का सही डॉक्यूमेन्टेशन हो सके और सरकार इसे एक पुरातात्विक धरोहर का दर्जा दिलवा पाए । अफ़सोस के पालीवालों के वैज्ञानिक रहस्य कुलधरा के अवशेषों के साथ ही गुम हो जाएंगे ।
9 टिप्पणियां :
बहुत अच्छी पोस्ट है।
बहुत बढ़िया-- राजस्थान है ही ऐसा -कहीं रंगीला,कहीं वीराना-कुलधरा के बारे मे जानकारी अच्छी लगी ।
इस बेहद खूबसूरत रपट के लिए शुक्रिया । कुलधरा के वैज्ञानिक रहस्य की बाबत आगे का हाल प्रियंकर भाई से शायद हाथ लगे । पानी की बाबत इसी इलाके के बिश्नोई समाज के वैज्ञानिक-तकनीकी तौर-तरीकों पर भी कुछ हाथ लगा ?
बेहतरीन रपट!!!
शुक्रिया!!
और हां
" हम बंजारों की बात मत पूछो जी………" ;)
कुलधरा की जानकारी अच्छी लगी... इससे पहले कभी इस जगह का नाम नहीं सुना था.
धन्यवाद !
Yunusbhai
Very nice and interesting post with nice pictures too.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
April 8 2008
बहुत उम्दा जानकारी। मैने भी नहीं सुना था आज तक इस जगह के बारे में।
प्रिय भाई ,
अफ़लातून जी ने लिंक भेज कर आपकी यह पोस्ट पढवाई है . आपने सचमुच बहुत अच्छा लिखा है . मैं उसी समुदाय का सदस्य हूं . और उसमें भी कुलधरा का कुलधर पालीवाल हूं . कुछ सामग्री है मेरे पास इस सम्बंध में . लिखा इसलिए नहीं कि लोग न जाने किस तरह लेंगे और क्या समझेंगे . कहीं आत्ममुग्ध जातिवादी न समझ लिया जाऊं . पर अफ़लातून भाई का दबाव भारी है . कुछ ज़रूर लिखूंगा ताकि आपके सुंदर लेख की आगे की कड़ी बन सके .
मैं कुलधरा चौरानबे में गया था . सुप्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टॉड की पुस्तक एनल्स एण्ड एंटीक्स ऑफ़ राजस्थान में पालीवालों की सम्पन्नता और समृद्धि के भावोछ्वासी ज़िक्र के अलावा कुलधरा के बारे में प्रभास जोशी, अशोक वाजपेयी, नन्दकिशोर आचार्य, ओम थानवी आदि ने भी लिखा है . मृणाल सेन ने वहां फ़्रेंच सहयोग से एक फ़िल्म 'जेनेसिज़' की अधिकांश शूटिंग की . बहुत-सी कथाएं हैं .
अनुपम मिश्र ने पश्चिमी राजस्थान में जल संरक्षण शानदार व्यवस्था में उनकी ऐतिहासिक भूमिका की वजह से इस समुदाय के बारे में लिखा है .
आपने वहां के कुछ अच्छे फोटो ज़रूर लिए होंगे . ज़रूर भेजिएगा .
शुभकामनाओं के साथ,
प्रियंकर
Kuldahara par ek accha piece padhe : arunmudgal.blogspot.com par
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