गोआ फिल्म समारोह पांचवां और छठा दिन।
फिल्म समारोह के आखिरी दो दिन थोड़े व्यस्त रहे। जिस 'काम' से आए थे उसकी तैयारियों में जुट जाना पड़ा। समापन समारोह का आंखों देखा हाल सुनाना था हमें रेडियो पर। बहरहाल समापन हो चुका है और गोआ की ये यात्रा बेहद यादगार बन चुकी है।
आखिरी दो दिनों में मंगेश जोशी की फिल्म “he” देखी। जिसे राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम की मदद से बनाया गया है। 'ही' कमाल की फिल्म है। मुंबई की झोपडृपट्टियों में रह रहे उत्तरप्रदेश और बिहार के लोगों की जिंदगी को इसमें बहुत करीब से दिखाया गया है। फिल्म का नायक करीब सोलह साल का एक लड़का है जो भागकर मुंबई आया है। पूना फिल्म संस्थान का एक युवा निर्देशक उसे एक फिल्म में काम देता है। तब से उसके मन में ये बात बैठ जाती है कि वो हीरो है। उसकी जिंदगी में कोई क्रांति होने वाली है। फिल्म शूट करके दोबारा मिलने और बुलाने का वादा करके निर्देशक तो चला जाता है। पर इस बालक को सपने दे जाता है। लड़का ट्रेनों, प्लेटफार्म और पटरियों से पानी की खाली बोतलें और कचरा ही जमा करता रह जाता है।
इसके बाद शाम को डेनमार्क की फिल्म वोल्केनो देखी। एक ज्वालामुखी के फटने के बाद एक परिवार को अपने शहर से दूसरे शहर आकर बसना पड़ता है। नई शुरूआत करनी पड़ती है। पति रिटायर हुआ है। जिंदगी का नया दौर शुरू हुआ है। तभी पत्नी को ब्रेन स्ट्रोक होता है। और वो एक वस्तु में बदलकर रह जाती है। पति बड़े मन से उसकी देखभाल करता है। पर उसकी तकलीफ उससे देखी नहीं जाती। और एक दिन तकिये से उसका दम घोंटकर उसे दुनिया से छुटकारा दिला देता है।
आखिरी दिन केवल एक फिल्म देखी। अमेरिका की 'रेस्टलैस'। एक कैंसर पीडित युवती के एक लड़के से प्रेम की कहानी।
कुल मिलाकर गोवा आकर फिल्में देखने और फिल्मकारों से बातचीत करने का ये दौर बड़ा ही यादगार रहा। अब मुंबई वापसी की बारी है।
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