Tuesday, March 25, 2008

जैसलमेर यात्रा छठी कड़ी: किले में कोला, कैफ़े और काऊ । कुछ दिलचस्‍प तस्‍वीरें ।

तरंग पर जैसलमेर की यात्रा का विवरण चल रहा है । जैसलमेर यात्रा की अब तक पांच कडि़यां हो चुकी हैं । ज़रा यहां उन कडियों के लिंक्‍स दे दिये जाएं ।

पिछली कड़ी थी पांचवीं--जिसमें हमने लोंगेवाला पोस्‍ट की शौर्यपूर्ण दास्‍तान का विवरण पढ़ा था ।

चौथी कड़ी में सीमा पर बी एस एफ के सिपाहियों के बीच की गयी रिकॉर्डिंग का‍ ब्‍यौरा था ।

तीसरी कड़ी थी--तन्‍नोट : सीमा प्रहरियों के विश्‍वास का केंद्र

दूसरी कड़ी में जैसलमेर रामगढ़ में संगीत संध्‍या का ब्‍यौरा था ।

और पहली कड़ी में था रामदेवरा का ब्‍यौरा ।

दरअसल जैसलमेर यात्रा इतने व्‍यापक अनुभवों वाली है कि इसके एक एक पहलू को अपनी इस ट्रैवल-डायरी में समेटे बिना चैन नहीं आने वाला । तो चलिए इस यात्रा डायरी को आगे बढ़ाया जाए । दरअसल जैसलमेर रामगढ़ में अपनी सारी रिकॉर्डिंग्‍स और संगीत संध्‍या करने के बाद हम निकल  पड़े जोधपुर की ओर । रामगढ़ से जोधपुरा का रास्‍ता तकरीबन चार सौ किलोमीटर का है । और हम थे अपनी विशेष बारह सीटों वाली बस में । ज़ाहिर है कि जैसलमेर रास्‍ते में पड़ने वाला था । जैसलमेर आकाशवाणी केंद्र के अधिकारियों ने पहले ही कह दिया था कि विविध-भारती की टोली चुपके से जैसलमेर पार ना करे । इसलिए हम सीधे जा पहुंचे जैसलमेर आकाशवाणी केंद्र । सुंदर सा केंद्र है ये, जोधपुरी पत्‍थरों से बना । रास्‍ते में फिर से इतनी सारी पवनचक्कियां मिलीं । जिन्‍हें बस के बोनट पर बैठकर किसी तरह मैंने अपने कैमरे में कैद कर लिया । 

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यहां से हम सीधे जैसलमेर की सरज़मीं पर जा पहुंचे । आईये जैसलमेर कि़ले पर चलने से पहले आपको बताया जाए इसका इतिहास । जैसलमेर के किले को यहां के भाटी राजपूत शासक रावल जैसल ने सन 1156 में बनवाया था । यानी आज से तकरीबन साढ़े आठ सौ साल पहले । मध्‍य युग में जैसलमेर ईरान, अरब, मिस्‍त्र और अफ्रीक़ा से व्‍यापार का एक मुख्‍य केंद्र था । दिलचस्‍प बात ये है कि इसकी पीले पत्‍थरों से बनी दीवारें दिन में तो शेर जैसे चमकीले पीले-भूरे रंग की नज़र आती हैं और शाम ढलते ही इनका रंग सुनहरा हो जाता है । इसलिये इसे सुनहरा कि़ला कहा जाता है । आपको बता दें कि महान फिल्‍मकार सत्‍यजीत रे का एक जासूसी उपन्‍यास 'शोनार किला' इसी किले की पृष्‍ठभूमि पर लिखा गया है ।  त्रिकुट पहाड़ी पर बने इस कि़ले ने कई लड़ाईयों को देखा और झेला है । तेरहवीं शताब्‍दी में अलाउद्दीन खि़लजी ने इस कि़ले पर आक्रमण कर दिया था और नौ बरस तक कि़ला उसकी मिल्कियत बना रहा । इसके बाद सन 1541 में मुग़ल बादशाह हुमायूं ने इस कि़ले पर हमला किया था ।

जैसलमेर किला दुनिया का ऐसा अकेला किला है जहां शहर की एक चौथाई जनता निवास करती है । हालांकि किसी ज़माने में पूरा जैसलमेर शहर ही इस किले के भीतर बसा हुआ था । जैसलमेर के इस किले को देखने के लिए वैसे तो दो दिन चाहिए । लेकिन हमारे पास थे दो घंटे । इसलिए बहुत सरसरी तौर पर ही हम इस कि़ले को देख सके । पर यहां के कुछ दिलचस्‍प दृश्‍य मैंने अपने कैमेरे में क़ैद करने का प्रयास किया है । जो बदलते वक्‍त के साथ किले की बदलती तस्‍वीर आपके सामने पेश करेंगे । आईये तस्‍वीरें देखें ।

ये है जैसलमेर के कि़ले का एक दृश्‍य जो पहाड़ी के नीचे से लिया गया है । जो लोग पहाड़ी पर पैदल नहीं जा सकते उन्‍हें ऑटो रिक्‍शा वाले बहुत थोड़े पैसों में अपनी कलाबाज़ी दिखाते हुए किले के भीतर ले जाते हैं । दिलचस्‍प बात ये है कि पूरा का पूरा शहर है किले में, साईबर कैफे से लेकर रेस्‍टोरेन्‍ट तक सब कुछ । और आप इसे पार करते हुए किले में टहलते हैं ।

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ज़रा यहां नज़र डालिए । जैसलमेर किले की दीवार पर नन्‍हे जैसलमेर फिल्‍म का पोस्‍टर नज़र आ रहा है । जो किसी मनचले के फाड़ने के बावजूद कुछ हद तक सही-सलामत बचा है । नन्‍हे बॉबी देओल जैसलमेर की दीवारों पर भले विराजमान हैं, अरे भाई, फिल्‍म कहां गयी, किसी को कुछ पता है क्‍या ।

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ये किले के भीतर मौजूद एक मुख्‍य चौराहे पर ली गयी तस्‍वीर है । किले के भीतर मौजूद हवेली की तस्‍वीर ।

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जैसा कि मैंने कहा कि किले में पूरा शहर है, देखिए किले में दर्जी और दर्जी की चाय ।

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अगर दर्जी चाय पी सकता है तो क्‍या ठंडा नहीं पी सकता । इस चित्र का शीर्षक है-'किले में कोला'

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किले में कोला होगा, चाय होगी, दर्जी होगा तो क्‍या गौ माता नहीं होगी । चलिए गौ माता को रोटी खिलाईये और नमस्‍ते कीजिए । 'किले में काऊ'

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ये है जैसलमेर किले से शहर का विहंगम दृश्‍य । शहर कभी किले के भीतर ही हुआ करता था । अब शहर किले के भीतर भी है और बाहर भी ।

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किले में सब कुछ है । अगर ये साइन बोर्ड ठीक से पढ़ने में नहीं आ रहा है तो मैं बता दूं, इस पर लिखा है -द चाय बार: साइबर कैफे । यानी किले में काउ और किले में कोला के बाद किले में साइबर कैफे ।

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जैसलमेर और जोधपुर यात्रा की छठी कड़ी जैसलमेर किले की तस्‍वीरें लेकर आई । अगली कड़ी में थार रेगिस्‍तान में ऊंटों की सवारी

3 टिप्‍पणियां :

mamta said...

वाह !!
सुंदर फोटो और उसपर आपका लेख और साथ मे कैप्शन लाजवाब।

Sanjeet Tripathi said...

वाकई! ममता जी का कथन सत्य है!

annapurna said...

तस्वीरें देखते हुए और चिट्ठा पढते हुए अनायास होठों पर आ गया ये गीत -

थाने काजलिया बना लूँ
म्हारे नैना से लगा लूँ राज
पलका में बन्द कर रखूँगी
ओ ओ ओ राज पलका में बन्द कर रखूँगी

वीर दुर्गादास फ़िल्म का ये गीत विविध भारती पर बहुत बार सुना।

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