जैसलमेर यात्रा छठी कड़ी: किले में कोला, कैफ़े और काऊ । कुछ दिलचस्प तस्वीरें ।
तरंग पर जैसलमेर की यात्रा का विवरण चल रहा है । जैसलमेर यात्रा की अब तक पांच कडि़यां हो चुकी हैं । ज़रा यहां उन कडियों के लिंक्स दे दिये जाएं ।
पिछली कड़ी थी पांचवीं--जिसमें हमने लोंगेवाला पोस्ट की शौर्यपूर्ण दास्तान का विवरण पढ़ा था ।
चौथी कड़ी में सीमा पर बी एस एफ के सिपाहियों के बीच की गयी रिकॉर्डिंग का ब्यौरा था ।
तीसरी कड़ी थी--तन्नोट : सीमा प्रहरियों के विश्वास का केंद्र
दूसरी कड़ी में जैसलमेर रामगढ़ में संगीत संध्या का ब्यौरा था ।
और पहली कड़ी में था रामदेवरा का ब्यौरा ।
दरअसल जैसलमेर यात्रा इतने व्यापक अनुभवों वाली है कि इसके एक एक पहलू को अपनी इस ट्रैवल-डायरी में समेटे बिना चैन नहीं आने वाला । तो चलिए इस यात्रा डायरी को आगे बढ़ाया जाए । दरअसल जैसलमेर रामगढ़ में अपनी सारी रिकॉर्डिंग्स और संगीत संध्या करने के बाद हम निकल पड़े जोधपुर की ओर । रामगढ़ से जोधपुरा का रास्ता तकरीबन चार सौ किलोमीटर का है । और हम थे अपनी विशेष बारह सीटों वाली बस में । ज़ाहिर है कि जैसलमेर रास्ते में पड़ने वाला था । जैसलमेर आकाशवाणी केंद्र के अधिकारियों ने पहले ही कह दिया था कि विविध-भारती की टोली चुपके से जैसलमेर पार ना करे । इसलिए हम सीधे जा पहुंचे जैसलमेर आकाशवाणी केंद्र । सुंदर सा केंद्र है ये, जोधपुरी पत्थरों से बना । रास्ते में फिर से इतनी सारी पवनचक्कियां मिलीं । जिन्हें बस के बोनट पर बैठकर किसी तरह मैंने अपने कैमरे में कैद कर लिया ।
यहां से हम सीधे जैसलमेर की सरज़मीं पर जा पहुंचे । आईये जैसलमेर कि़ले पर चलने से पहले आपको बताया जाए इसका इतिहास । जैसलमेर के किले को यहां के भाटी राजपूत शासक रावल जैसल ने सन 1156 में बनवाया था । यानी आज से तकरीबन साढ़े आठ सौ साल पहले । मध्य युग में जैसलमेर ईरान, अरब, मिस्त्र और अफ्रीक़ा से व्यापार का एक मुख्य केंद्र था । दिलचस्प बात ये है कि इसकी पीले पत्थरों से बनी दीवारें दिन में तो शेर जैसे चमकीले पीले-भूरे रंग की नज़र आती हैं और शाम ढलते ही इनका रंग सुनहरा हो जाता है । इसलिये इसे सुनहरा कि़ला कहा जाता है । आपको बता दें कि महान फिल्मकार सत्यजीत रे का एक जासूसी उपन्यास 'शोनार किला' इसी किले की पृष्ठभूमि पर लिखा गया है । त्रिकुट पहाड़ी पर बने इस कि़ले ने कई लड़ाईयों को देखा और झेला है । तेरहवीं शताब्दी में अलाउद्दीन खि़लजी ने इस कि़ले पर आक्रमण कर दिया था और नौ बरस तक कि़ला उसकी मिल्कियत बना रहा । इसके बाद सन 1541 में मुग़ल बादशाह हुमायूं ने इस कि़ले पर हमला किया था ।
जैसलमेर किला दुनिया का ऐसा अकेला किला है जहां शहर की एक चौथाई जनता निवास करती है । हालांकि किसी ज़माने में पूरा जैसलमेर शहर ही इस किले के भीतर बसा हुआ था । जैसलमेर के इस किले को देखने के लिए वैसे तो दो दिन चाहिए । लेकिन हमारे पास थे दो घंटे । इसलिए बहुत सरसरी तौर पर ही हम इस कि़ले को देख सके । पर यहां के कुछ दिलचस्प दृश्य मैंने अपने कैमेरे में क़ैद करने का प्रयास किया है । जो बदलते वक्त के साथ किले की बदलती तस्वीर आपके सामने पेश करेंगे । आईये तस्वीरें देखें ।
ये है जैसलमेर के कि़ले का एक दृश्य जो पहाड़ी के नीचे से लिया गया है । जो लोग पहाड़ी पर पैदल नहीं जा सकते उन्हें ऑटो रिक्शा वाले बहुत थोड़े पैसों में अपनी कलाबाज़ी दिखाते हुए किले के भीतर ले जाते हैं । दिलचस्प बात ये है कि पूरा का पूरा शहर है किले में, साईबर कैफे से लेकर रेस्टोरेन्ट तक सब कुछ । और आप इसे पार करते हुए किले में टहलते हैं ।
ज़रा यहां नज़र डालिए । जैसलमेर किले की दीवार पर नन्हे जैसलमेर फिल्म का पोस्टर नज़र आ रहा है । जो किसी मनचले के फाड़ने के बावजूद कुछ हद तक सही-सलामत बचा है । नन्हे बॉबी देओल जैसलमेर की दीवारों पर भले विराजमान हैं, अरे भाई, फिल्म कहां गयी, किसी को कुछ पता है क्या ।
ये किले के भीतर मौजूद एक मुख्य चौराहे पर ली गयी तस्वीर है । किले के भीतर मौजूद हवेली की तस्वीर ।
जैसा कि मैंने कहा कि किले में पूरा शहर है, देखिए किले में दर्जी और दर्जी की चाय ।
अगर दर्जी चाय पी सकता है तो क्या ठंडा नहीं पी सकता । इस चित्र का शीर्षक है-'किले में कोला'
किले में कोला होगा, चाय होगी, दर्जी होगा तो क्या गौ माता नहीं होगी । चलिए गौ माता को रोटी खिलाईये और नमस्ते कीजिए । 'किले में काऊ'
ये है जैसलमेर किले से शहर का विहंगम दृश्य । शहर कभी किले के भीतर ही हुआ करता था । अब शहर किले के भीतर भी है और बाहर भी ।
किले में सब कुछ है । अगर ये साइन बोर्ड ठीक से पढ़ने में नहीं आ रहा है तो मैं बता दूं, इस पर लिखा है -द चाय बार: साइबर कैफे । यानी किले में काउ और किले में कोला के बाद किले में साइबर कैफे ।
जैसलमेर और जोधपुर यात्रा की छठी कड़ी जैसलमेर किले की तस्वीरें लेकर आई । अगली कड़ी में थार रेगिस्तान में ऊंटों की सवारी ।
3 टिप्पणियां :
वाह !!
सुंदर फोटो और उसपर आपका लेख और साथ मे कैप्शन लाजवाब।
वाकई! ममता जी का कथन सत्य है!
तस्वीरें देखते हुए और चिट्ठा पढते हुए अनायास होठों पर आ गया ये गीत -
थाने काजलिया बना लूँ
म्हारे नैना से लगा लूँ राज
पलका में बन्द कर रखूँगी
ओ ओ ओ राज पलका में बन्द कर रखूँगी
वीर दुर्गादास फ़िल्म का ये गीत विविध भारती पर बहुत बार सुना।
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