आज कवि सम्मेलन के अखाड़े में बैरागी, निदा, राहत और कुंवर बेचैन साथ में और उनके साथ मैं तरंगित ।
तरंग पर वैसे तो जैसलमेर यात्रा की डायरी का अगला भाग लिखा जाना चाहिए था । लेकिन आज मैं विषय को ज़रा बदल रहा हूं । मुद्दा ये है कि विविध भारती की अपनी नौकरी में रोज़ाना ही नित नए अनुभव होते हैं । लेकिन कुछ दिनों पहले हमने दो बड़े आयोजन किये और इन दोनों आयोजनों के अनुभव एकदम अलग रहे । इन्हीं में से एक आयोजन की कहानी आज आपके सामने रखी जा रही है ।
विविध-भारती की स्वर्ण-जयंती के मौक़े पर हर महीने की तीन तारीख़ को हो रहे हैं विशेष-आयोजन । और इन आयोजनों ने हमें कुछ दिलचस्प अनुभव कराए हैं । जैसे पिछले कई महीनों से हमारे एक महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम की योजना तैयार की जा रही थी । जिसका नाम रखा गया था--'प्यार की बातें, प्यार के गीत' । ये एक कवि-सम्मेलन होता, लेकिन कोरा कवि सम्मेलन करें तो विविध भारती कैसी । इसलिए सोचा गया कि इस कवि सम्मेलन में विविध भारती के मिज़ाज का तड़का लगाया जाये । कवियों से कुछ मुद्दों पर बहस की जाए और उनके प्रिय गीतों पर भी बात की जाए, उन गीतों को भी सुनवाया जाए । तो कुल मिलाकर ज़बर्दस्त माथापच्ची की गयी । और तब जाकर एक स्वरूप तैयार हुआ । कार्यक्रम की जिम्मेदारी सौंपी गयी आपके इस दोस्त यूनुस खान को । अब ज़रा कवियों की सूची भी तो देख लीजिए । तय हुआ कि दिल्ली से पद्मा सचदेव को बुलाया जाये जो कभी विविध भारती में उद्घोषिका रही हैं तो बातों का रस और बढ़ जाएगा । लेकिन पद्मा जी नहीं आ सकीं ।
दूसरा नाम मेरी फ़रमाईश पर मुनव्वर राणा का तय किया गया । उन्होंने आने की स्वीकृति भी दे दी । और फिर ऐन कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग के दिन मुनव्वर भाई की फ्लाईट छूट गयी । जब हम उनका इंतज़ार अपने दफ्तर में कर रहे थे उस वक्त वो कलकत्ता से फ़ोन करके माज़रत चाह रहे थे कि वो इस बार नहीं आ सके तो क्या । अगली बार तशरीफ़ लायेंगे । मैंने जब एक दिन पहले बोधिसत्व को फोन करके मुनव्वर राणा की बातें की तो उन्होंने कहा कि वो मुनव्वर राणा को सुनने के लिए ज़रूर आयेंगे । हालांकि उन्होंने मुनव्वर राणा को पहले भी सुन रखा है । मुझ अज्ञानी को बोधिसत्व ने मुनव्वर भाई की कुछ पुस्तकों के नाम भी बताए । और उनके शेर भी सुनाए । और हां इस बात का वादा भी किया कि अगर मैं उनके घर आ जाऊं तो मुझे वो पुस्तकें पढ़ने को दी जा सकती हैं । यानी मुनव्वर राणा की पुस्तकों को हासिल करने के लिए अपन जल्दी ही बोधिसत्व के घर जा धमकने वाले हैं । फिलहाल आईये मुनव्वर राणा के कुछ शेर सुने जाएं, मेरा मतलब पढे जाएं । रेडियो की आदत जो लगी है, मुझे लगा मैं सुनवा ही डालूंगा । पढिये पढिये ।
मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊं
माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं
कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर
ऎसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊं
सोचता हूं तो छलक उठती हैं मेरी आँखें
तेरे बारे में न सॊचूं तो अकेला हो जाऊं ।।
तो भई मुनव्वर भाई की किस्मत, चाहत और आमद ने दग़ा दे दिया । इसलिए उन्हें पहली बार सुनने से हम रह गये वंचित । हां तो मैं आपको बता रहा था कि कौन कौन से शायर और कवि इस कार्यक्रम में शामिल किये जाने थे । इसके बाद उन लोगों के नाम लूंगा, जिनके बारे में तय किया गया और वो आए भी । बालकवि बैरागी । बचपन से कवि सम्मेलनों में दद्दा बालकवि बैरागी को सुना है । स्कूल के दिनों में आरक्षण की आंधी चली तो हम सब भड़क उठे और तब बालकवि बैरागी की ये कविता हमारा नारा बन गये ।
हाथों में पत्थर होठों पे नारे
सड़कों पे आ गये क्यों जलते अंगारे
हाय राम कोई विचार तो करे
कोई इन अंगारों से प्यार तो करे ।
बालकवि जी आये तो मैंने उनके पैर छुए और फिर उन्हें याद दिलाया कि हमने इस कविता के सहारे बहुत आग फूंकी है अपने बचपन में । बालकवि बैरागी का सेन्स ऑफ ह्यूमर कमाल का है । उन्होंने तुरंत टांग खींची, तो यूनुस तुमको क्या लगता है कि तुम्हारा बचपन ख़त्म हा गया है । फिर तो ठहाकों का जो सिलसिला शुरू हुआ तो चलता ही रहा । एक से एक किस्से सुनाए बैरागी जी ने । ब्लॉगिंग में थोड़े दिनों के लिए चमके उनके अनुज और हमारे मित्र भाई विष्णु बैरागी की भी चर्चा निकली । जाने कितनी कितनी बातें उन्होंने सुनाई । जिनमें संगीतकार जयदेव की यादें भी थीं । मुंबई फिल्म उद्योग से जुड़े किस्से भी थे और राजनीति के किस्से भी । इस उम्र में भी बालकवि बैरागी हम सबसे ज्यादा जोशीले और तरोताज़ा नज़र आए ।
राहत इंदौरी को बहुत खोजा और तब जाकर उन्हें इस कार्यक्रम के लिए राज़ी किया गया । वो आए भी । कुछ फिल्मों में उनके लिखे गीत हमें बहुत ज्यादा पसंद रहे हैं । राहत भाई के पढ़ने की अदा कमाल की है । कई कई मुशायरों में उन्हें सुना है और उनकी आग की तपिश अच्छी लगती है । पेश है उनका शेर ।
देवियां पहुंची ही थीं बाल बिखराए हुए
देवता मंदिर से निकले और पुजारी हो गये ।
कुछ और शेर
चेहरों की धूप आंखों की गहराई ले गया
आईना सारे शहर की बीनाई ले गया ।।
डूबे हुए जहाज़ का क्या तबसरा करें
ये हादसा तो सोच की गहराई ले गया ।।
झूठे क़सीदे लिखे गये उसकी शान में
जो मोतियों से छीन के सच्चाई ले गया ।।
निदा फ़ाज़ली हमारे समय के एक महत्त्वपूर्ण शायर हैं । उनके दोहे मुझे लंबे अरसे से पसंद रहे हैं । निदा साहब भी तशरीफ़ लाये और कई कई मुद्दों पर उन्होंने अपने बेबाक राय रखी । कमाल की बात ये थी कि निदा हों या बालकवि बैरागी या फिर राहत, इन तीनों का ताल्लुक फिल्मी गीतों से रहा है । तीनों ने ही फिल्मों में भी लिखा है । इसलिए इससे जुड़ी यादें तो आती ही रहीं इस कार्यक्रम में । जिस कार्यक्रम में इतने हेवीवेट कवि हों उसका संचालन कितनी बड़ी चुनौती होगी इसका अंदाज़ा आप लगा ही सकते हैं । मन:स्थिति बनाने और तैयारियों को अंजाम देने के लिए अंतत: एक ही दिन मिला और उसमें अच्छा खासा सरो-सामां जमा कर लिया । और हम मैदाने जंग में डट गये । चलिए निदा साहब की कुछ पंक्तियां सुन लीजिए--
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो
पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है दिल होते हैं
अपने घर की दर-ओ-दीवार सजा कर देखो
फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है
वो मिले या न मिले हाथ बढा़ कर देखो
कुंवर बेचैन को आप सभी ने सुना होगा । इस कवि सम्मेलन में उन्हें भी बुलाया गया था । और अगर आज कवि सम्मेलन के बाद उसकी ईमानदार विवेचना करूं तो सबसे ज्यादा छिपे रूस्तम कुंवर बेचैन ही निकले । ख़ामोशी से हर दौर में महफिल को उन्होंने लूटा । मुझे उनकी ये पंक्तियां याद आ रही हैं---
दिल में मुश्किल बहुत है दिल की कहानी लिखना
जैसे बहते हुए पानी को है पानी लिखना ।।
या फिर ये पंक्तियां:
अंकगणित-सी सुबह है मेरी
बीजगणित-सी शाम
रेखाओं में खिंची हुई है
मेरी उम्र तमाम।
भोर-किरण ने दिया गुणनफल
दुख का, सुख का भाग
जोड़ दिए आहों में आँसू
घटा प्रीत का फाग
प्रश्नचिह्न ही मिले सदा से
मिला न पूर्ण विराम ।
दीप्ती मिश्र मुंबई की युवा कवियित्री हैं । उनकी कविताएं मुझे याद नहीं हैं इसलिए माफी चाहता हूं कि यहां उनकी पंक्तियां नहीं दे पा रहा हूं । वो भी इस कवि सम्मेलन में शामिल थीं । आईये इस आयोजन की तस्वीरें भी आपको दिखा दी जाएं ।
इस कवि सम्मेलन से जुड़ी कई यादें और हैं । जैसे मौक़ा बेमौक़ा लगभग सभी ने एक दूसरे की चुटकी ली । निदा फ़ाज़ली जैसे धाकड़ चुटकीबाज़ को वक्त वक्त पर बालकवि बैरागी जी ने बहुत खींचा । और एक भी मौक़ा नहीं छोड़ा । राहत इंदौरी के क़रीब जाना और उनकी जिंदगी की कहानी को सुनना समझना अच्छा था । कुंअर बेचैन बेहद मौन और शर्मीले नज़र आए लेकिन जब कविता सुनाने की बारी आई तो लगा कि वे अचानक बदल गये हैं । दिन भर के इस आयोजन ने जिंदगी के एक दिन को यादगार बना दिया ।
अब इस पोस्ट की बॉटम लाइन: ये रिकॉर्डिंग सत्रह मार्च को की गयी थी । और इसका प्रसारण आज दिन में ढाई बजे से शाम साढ़े पांच बजे के बीच विविध भारती पर किया जायेगा । हम तो तरंगित हो लिए अब आप सुनिएगा और बताईयेगा कविता की तरंगों ने आपको कितना तरंगित किया ।
12 टिप्पणियां :
हम भी बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे है ढाई बजने का।
भाई ढाई से पांच तो अदालत में रहेंगे। इसे सुनने का दूसरा कोई जुगाड़ क्या है?
वाह । आपकी पोस्ट पढ़कर हम तरंगित हो गए। पूरे मुशायरे का मज़ा आ गया। - आनंद
"...भाई ढाई से पांच तो अदालत में रहेंगे। इसे सुनने का दूसरा कोई जुगाड़ क्या है?..."
मैं कोशिश करूंगा... इसे रेकॉर्ड कर रेडियोनामा में प्रस्तुत करने के लिए...
ओ बेट्टे, जे तो बोई वाला कमरा है।
रवि भाई आपको नमन है । तुसी ग्रेट हो जी । देखा दिनेश जी समस्या सुलझ गयी ना ।
आनंद और अनीता जी शुक्रिया ।
और आलोक जी जी चाचा जी जे बोई कमरा है । जिसमें ओ पी नैयर से लेकर नौशाद और अनीता जी से लेकर आलोक जी तक सबकी रिकारडिंग भई है ।
arey yunus ji aapki aaj ki post ne itna lalchaa diya hai ki bataa nahi sakti...magar ro ke rah jaayengey..hamarey yahan vividh bhaarti catch nahi kartaa....bhuuuuuuuu
कृपया मुनव्वर राणा के किताबों की जानकारी मुझे भी दीजिएगा, यहां तलाशूंगा!!
बहुत बढ़िया पोस्ट. पढ़ कर मज़ा आ गया. शुक्रिया.
dhanyawaad aapko, main to bhool hi gaya tha. Abhi office mein headphone laga ke baith gaya hoon... ab to chaahe jo ho jaaye program khatm hone par hi nikalega :-)
aap ki post ke thru bahut kuch jaankari milti rahti hain-aisa lagta hai ---bharat se duur nahin hun--
Dr.Kunwar baichain ji ko sunna apne aap mein ek treat hota hai-thanks for sharing pictures.
साहब सच कहूँ तो कहीं न कहीं आप से जलन हो रहे है.... आप को इतने बेहतरीन शायरों / कवियों के सान्निध्य का मौका मिला, जो हमें भि काश मिलता...
किंतु आपके वर्णन से हमें इंटरनेट पर ही मुशायरे का आनंद आ गया.... शुक्रिया...
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