गोआ फिल्म समारोह तीसरा दिन
फिल्म समारोह कहीं कहीं निराश भी कर रहा है। कुछ नामी फिल्में बड़ी ही disappointing हैं। पर फिर भी अच्छी फिल्में उस अफसोस को धो देती हैं।
आज की पहली फिल्म थी पोलैन्ड के निर्देशक Feliks Falk की साल 2010 में बनी फिल्म Joanna. निर्देशक फीलिक्स फॉक सन 75 से फिल्में बना रहे हैं। और अपनी दो सामाजिक-व्यंग्यात्मक फिल्मों top dog और hero of the year के लिए जाने जाते हैं। जोआना, दूसरे विश्व-युद्ध में जर्मन कब्जे वाले वॉरसॉ शहर की एक लड़की की कहानी है। एक छोटी बच्ची 'रोज़' के जन्मदिन पर मां खतरे के बावजूद उसे एक रेस्त्रां में पार्टी के लिए ले जाती है। तोहफे देती है। पर तभी जर्मन आकर यहूदियों को पकड़ कर ले जाती हैं। मां ले जाई गयी है। बच्ची को वेट्रेस 'जोआना' एक चर्च में छिपे देखकर अपने घर ले आती है। उसके बाद उस यहूदी बच्ची को पनाह देने के लिए उसे कितनी मुसीबतों से गुज़रना पड़ता है, इसी की कहानी है जोआना। मुख्य भूमिका में urzula grabowska ने शानदार काम किया है। इस फिल्म के दौरान हॉल खचाखच भरा था। और दर्शक विंग में खड़े होकर भी फिल्म देख रहे थे। फायदा उठाने के लिए जर्मन फौजी अफसर की सहानुभूति, नन्हीं बच्ची रोज़ का अपनी मां के बारे में पूछना, जोआना के पति की मौत की पुष्टि, सज़ा के तौर पर उसके बाल काट दिये जाना....ऐसे कई लम्हे थे जहां फिल्म गहरे तक छू जाती है।
आज की दूसरी फिल्म रही प्रतियोगिता खंड की रूसी फिल्म elena. उम्मीद के उलट ये एक औसत फिल्म थी। ऐलेना एक अधेड़ महिला है, जो एक रईस बुजुर्ग से शादी करके दो साल से उसके साथ रहती है। बुजुर्ग की एक बिगडैल बेटी है जो अलग रहती है। ऐलेना का एक कामचोर और शादीशुदा बेटा है जो दूर एक औद्योगिक शहर में रहता है। ऐलेना के नाती का कॉलेज में एडमीशन कराना है और इसके लिए पैसे चाहिए। जो ऐलेना का बुजुर्ग पति नहीं दे रहा। उसका कहना है कि वो ऐलेने के बेटे के बेटे के लिए जिम्मेदार नहीं है। इस दौरान पति को दिल का दौरा पड़ता है। और एलेना उसकी देखभाल के दौरान उसे वियाग्रा का पूरा पत्ता खिला देती है। जिससे रातों रात उसकी मौत हो जाती है। ऐलेना के नाती के एडमीशन का इंतजाम हो गया है। बडे से घर का आधा हिससा भी ऐलेना को मिला है। और ऐलेना के नाकारा बेटे-बहू उसके साथ रहने आ गये हैं। बेहद औसत फिल्म।
रात में ईरानी फिल्म देखने मिली। जिसका नाम है nader and simin a separation. असगर फरहादी की ये फिल्म कमाल की है। नादेर और सिमिन पति पत्नी हैं। दोनों के बीच काफी झगड़े होते हैं। सिमिन चाहती है कि परिवार विदेश जाकर रहे, ईरान छोड़ दे। नादेर के पिता को पर्किन्सन है। और वो ईरान में रहकर ही उनकी देखभाल करना चाहता है। इनकी एक बेटी है--तिर्मी। पति-पत्नी तलाक़ चाहते हैं। पर जज का कहना है कि जो वजहें उन्होंने बताईं हैं वो काफी नहीं हैं। इसलिए तलाक़ मिलता नहीं। और परेशान होकर सिमिन अपने मायके चली जाती है। नादेर एक युवा महिला को पिता की देखभाल के लिए रख लेता है। हालात कुछ ऐसे होते हैं कि उसे लापरवाही के रहते उस महिला को निकालना पड़ता है। झड़प होती है। नादेर उस महिला को हल्का-सा धक्का दे देता है और घर से निकाल देता है। महिला का गर्भपात हो जाता है। और नादेर पर मुक़दमा चलता है। सुनवाई होती है। गवाहियां होती हैं। सिमिन मदद के लिए आती है। और पता लगाती है कि दरअसल गर्भपात उसके धक्का देने से नहीं हुआ बल्कि महिला के एक कार से टकरा जाने से हुआ है। पत्नी के एक हफ्ते के लिए मायके जाने पर नादेर बुरी तरह फंस जाता है। किसी तरह दोनों इस मामले को तो लगभग निपटा लेते हैं। पर अपने रिश्ते की उलझनों को नहीं सुलझा पाते।
देर रात तक खत्म हुई ये दो घंटे लंबी फिल्म लगातार आपको बांधे रखती है। निर्देशक ने फिल्म को एक ऐसे मोड़ पर खत्म किया है, जहां और-और की गुंजाईश बनी रहती है। क्रेडिट्स के बीच भी दर्शकों को लगता है कि शायद भारतीय फिल्मों की तरह 'हैपी एन्डिंग' हो जाए। और अजीब सी बेचैनी के साथ आप हॉल से बाहर निकलते हैं।
1 Comentário:
फिल्में और वो भी विदेशी तो देखना कम ही होता है। कम से कम इस पोस्ट से ये तो पता लगा कि बाहरी मुल्कों में किन विषयों पर निर्देशक अपनी फिल्में बना रहे हैं।
Post a Comment