Saturday, February 16, 2008

जैसलमेर यात्रा दूसरा भाग-- रामगढ़ में संगीत संध्‍या और स्‍थल रिकॉर्डिंग ।

यात्राएं मुझे हमेशा से पसंद रही हैं । बचपन में सबसे मज़ेदार होती थी नानी के घर जाने की यात्रा जिसमें भोपाल से दमोह जाया जाता था । वो भी भोपाल-बिलासपुर एक्‍सप्रेस से । सुबह डिपारचर और शाम तक मंजि़ल पर पहुंच जाना । बचपन की ये यात्राएं इन अद्भुत यात्राओं का ब्‍यौरा आगे कभी तरंग पर दिया जाएगा । लेकिन फिलहाल तो मैं आपको अपनी जैसलमेर-जोधपुर यात्रा के बारे में बता रहा हूं । और ये इस यात्रा-प्रसंग की दूसरी कड़ी है । आपको याद होगा कि पिछली पोस्‍ट में मैंने आपको रामदेवरा के बारे में बताया था । जहां रामदेव पीर की समाधि है । रामदेवरा से पोखरन होते हुए हम रामगढ़ पहुंच गये ।

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रामगढ़ एक छोटा-सा क़स्‍बा है, जिसके एक हिस्‍से से आगे सिविलियन्‍स / आम नागरिकों को जाने की इजाज़त नहीं है । ये सीमा सड़क संगठन की बनाई सड़क है जो भारत पाकिस्‍तान की सीमा पर जाती है । इस वीरान इलाक़े में सीमा सुरक्षा बल ने अपना एक क़स्‍बा जैसा बसा रखा है । बंजर-बयाबान में एक शानदार जगह । यहीं था हमारा ठिकाना ।

.... कहते हैं कि बी.एस.एफ. या सेना के सीमाओं पर तैनात इन प्रहरियों के दो अभिन्न: मित्र होते हैं---एक रायफल और दूसरा रेडियो

जिस शाम हम वहां पहुंचे तापमान दो डिग्री के आसपास था । मारे ठंड के कुल्‍फी सी जम गयी । लेकिन टोली बनाकर यात्रा करने में एक सनसनी होती है, एक जोश होता है । आप सब कुछ सहन कर लेने की स्थिति में होते हैं । हमारा शेड्यूल ऐसा था कि जाते ही काम पर जुट जाना था । जैसा कि आपको पहली कड़ी में बताया कि हमें बी.एस.एफ़. के लिए एक संगीत-संध्‍या का आयोजन भी करना था और साथ में कई फौजियों की सिलसिलेवार रिकॉर्डिंग भी करनी थी । यानी पर्यटन और काम का पेचीदा-संयोजन था ये सफ़र ।

सबसे पहले संगीत संध्‍या की रिहर्सल शुरू हुई । इसके समानांतर दो अलग अलग टोलियां अपनी अपनी रिकॉर्डिंग्‍स के लिए निकल पड़ीं । जब मैं अपनी रिकॉर्डिंग्‍स करके रिर्हसल हॉल में पहुंचा तो बशीर बद्र की ग़ज़ल का ये शेर सुनाई पड़ा ।

घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे

बहुत तलाश किया कोई आदमी ना मिला ।।

रिहर्सल के बाद की वो रात थोड़ी गप्‍पों और शरारतों में बीती । और अगली सुबह जब हम टहलने निकले तो ये नज़ारा था ।

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इस शाम संगीत-संध्‍या होनी थी । बी एस एफ की टोली और हमारी टोली के कुछ लोग लगातार रिहर्सलों में बिज़ी थे । और बाक़ी लोगों को अपनी अपनी तयशुदा रिकॉर्डिंग्‍स करनी थी । इसलिए मैं पहुंचा बी.एस.एफ़ के नौजवानों के बीच 'यूथ एक्‍सप्रेस' कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग करने के लिए । जिस हॉल में हमें रिकॉर्डिंग करनी थी वहां आवाज़ काफी गूंज रही थी इसलिए मैंने इन नौजवानों से कहा कि चलो खुले मैदान में रिकॉर्डिंग की जाए । फटाफट सारी टोली गुनगुनी धूप से नहाए इस मैदान में जमा हो गयी ।

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दिलचस्‍प बात ये थी कि अभी तक हमारा आपसी परिचय नहीं हुआ था । लेकिन जैसे ही सभी को कार्यक्रम का स्‍वरूप समझाने के लिए मैंने 'ब्रीफ' करते हुए अपना परिचय दिया तो कुछ आंखों में परिचय की चमक नज़र आई । कहते हैं कि बी.एस.एफ. या सेना के सीमाओं पर तैनात इन प्रहरियों के दो अभिन्‍न मित्र होते हैं---एक रायफल और दूसरा रेडियो । ये वो बंदे हैं जो रेडियो की हर आवाज़ को पहचानते हैं । उससे मुहब्‍बत करते हैं, उसके साथ अपने सुख-दुख बांटते हैं । मैं आपको बता दूं कि विविध भारती के जयमाला और जयमाला संदेश कार्यक्रमों में अगर कहीं से सबसे ज्‍यादा चिट्ठियां आती हैं तो वो बी.एस.एफ. की बटालियनें ही हैं । images

दूर तक फैली वीरान बंजर सरज़मीं पर कोई साथी नहीं होता, बैरक में लौटें तो वही वही चेहरे, वही वही बातें....थोड़े दिन में तो बातचीत के विषय भी खत्‍म हो जाते हैं । ऊपर से मौसम की मार । सर्दियों में हड्डियां जमा देने वाली ठंड और गर्मी में पचास डिग्री पर तपता रेगिस्‍तान । बिजली की समस्‍या अलग । छुट्टी साल में एक बार । कड़क अनुशासन ।

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मैंने देखा कि इन हालात में भी ये लोग जिंदगी को जीना जानते हैं । जब मौक़ा आता है तो जमकर नाच-गाना होता है । स्‍पोर्ट्स का जुनून है बी एस एफ के इन जवानों में । मैंने जिन जवानों से बातें की उनमें से कई तो बी एस एफ के साथ साथ भारत की राष्‍ट्रीय टीम में भी खेल चुके हैं । फुटबॉल, वॉलीबॉल, जिम्‍नास्टिक्‍स और तैराकी के खिलाड़ी मिले मुझे वहां पर । बी.एस.एफ. में खेलों के कोटे में भर्तियां भी खू़ब होती हैं ।

दिलचस्‍प बात ये थी कि वहां एक मिनी-भारत नज़र आया । कुछ जवान सुदूर कश्‍मीर से थे तो कुछ बंगाल और उड़ीसा से, कुछ मेघालय और मणिपुर से...तो कुछ थे म.प्र. उत्‍तरप्रदेश और बिहार और राजस्‍थान के । सबने अपने अपने इलाक़े के गीत सुनाए । सबने अपनी पसंद के गानों की फ़रमाईश की ।

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फिर बीच में पता नहीं कैसे होड़ लग गयी रेसिपीज़ बताने की, फिर तो किसी ने बंगाली रसगुल्‍ला बनाना सिखाया तो किसी ने माछेर झोल । बड़ा हंसी-ठट्ठा हुआ । कुछ लोगों ने अपने परिवार के नाम कुछ संदेस भी रेडियो के ज़रिए दिए । और जैसे ही हमने रिकॉर्डिंग खत्‍म करने की घोषणा की फौजयों ने हमारी टोली को घेर लिया तस्‍वीरों के लिए ।

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उन्‍होंने हमें ये भी बताया कि किस तरह रेडियो इस वीराने में उनकी जिंदगी का अहम हिस्‍सा है । रेडियो पर वो क्‍या-क्‍या सुनना चाहते हैं । हां कईयों ने मुझसे कहा कि आपकी आवाज़ से हम आपकी जो तस्‍वीर बनाते थे वो आपकी शख्सियत से ज़रा भी मैच नहीं करती । हमने तो सोचा था कि यूनुस ख़ान कोई मोटे-से, काले से, बुजुर्ग से व्‍यक्ति होंगे ।

जब हम वापस अपने गेस्‍ट हाउस लौटे तो पाया कि संगीत संध्‍या वाली टोली धूप सेंकते हुए रिहर्सल कर रही है । रिहर्सल करती रेडियोसखी ममता ।

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जब सूरज ढला तो हुआ संगीत संध्‍या का आग़ाज़ ।

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और ये रहे संगीत संध्‍या के चुनिंदा चित्र । कमल शर्मा और ममता सिंह संचालन करते हुए

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हमारे रिकॉर्डिंग इंजीनियर्स ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग करते हुए ।

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बी.एस.एफ. के सदस्‍यों की प्रस्‍तुति

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यथा नाम तथा रूप: शाहनवाज़

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एक तरफ शाहनवाज़ दूसरी तरफ एक कश्‍मीरी फौजी बीच में क़द-मिलाते-अपन ।

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अगले दिन हमें जाना था रणऊ होते हुए तन्‍नोट और वहां से आगे सीमा पर । इन जगहों से जुड़ी कुछ अमर दास्‍तानें हैं ।

जिनका ब्‍यौरा अगली कड़ी में ।

11 टिप्‍पणियां :

सागर नाहर said...

बढ़िया है, मजा आ रहा है। इस कड़ी को जारी रखें।

Sanjeet Tripathi said...

चलो भई फौजी भाईयों को यह जानकर अच्छा लगा होगा कि आप कोई मोटे से काले से व्यक्ति नही हो!!

anuradha srivastav said...

अगली कडी का इन्तजार है।

पारुल "पुखराज" said...

bahut itminaan se sun rahii huun ...apni sikkim yaatra ke dauraan china border pe faujiyon ki himmat aur zindaadili dekhkar natamastak ho gayi thii...aapki post vahi manzar yaad dilaa rahi hai..

Unknown said...

यूनुस,
लेखक यूँ तो अपनें अनुभवों को शब्दों में बाँधकर पाठकों को काल्पनिक यात्राएं करवाया करते हैं लेकिन travelogues में यथार्थ के जुड़ने से वह पहुँच के भीतर सा प्रतीत होता है।
तरंग से यायावरी से मानस तरंगित है। धन्यवाद।
ममता की दोनो तस्वीरें अच्छी आयी हैं :do convey my compliments to her.

dr.shrikrishna raut said...

भई,वाह!
मन किस कदर ‘तरंगीत’ है।
क्या कहे।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

हर फौजी भाई को मेरे नमन !
आपका ये प्रोग्राम हम सुनना चाहेंगें -
- जल्दी से लिंक लगाइयेगा,
ममता जी व युनूस भाई -
- तस्वीरें बढिया आयी हैं

Unknown said...

अगली कड़ी से पहले काला टीका लगाएं - एसे वेसे केसे के दिया . मोटे से .. काले से ... बुजुर्ग से ? [ :-)] - मनीष

डॉ. अजीत कुमार said...

मजा आ गया कि आपको भी कोई मोटा सा काला सा आदमी समझ सकता है.
यूँ भी मुझे यात्रा वृत्तांत पसंद है, और जब वो कोई दोस्त अपनी जुबानी सुनाये तो मजा दुगुना हो ही जाता है.
प्रोग्राम की तस्वीरें काफी उम्दा थीं, और विवरण तो शानदार है ही. आगे के एक खूबसूरत मोड़ पर मैं आपका इंतजार कर रहा हूँ.
खूब जमेगी जब मिल बैठेंगे आप, मैं और आपकी यादें.
धन्यवाद.

Vikash said...

छोटा छोटा पोस्ट लिखिये. नहीं तो एक बार स्क्रोल पे हाथ जाएगा तो सीधे कमेंट पर जा के रुकेगा और बीच का कंटेंट खो जायेगा. :)

अच्छा लगा ये वर्णन सुनकर. ऐसे ही घुमंतु बने रहिये. ;)

annapurna said...

इन जवानों की ही तरह मेरे मन में भी आपकी यही छवि थी। मंथन के लिए फोन-इन-प्रोग्राम में जब आपके साथ फोन पर बात होती थी तब मैं भी आपको ऐसा ही समझती थी।

मैंने सोचा था आपके अनुभवों से कुछ सीखूंगी इसीलिए फोन पर ही आपका ई-मेल पता भी लिया था।

और जब रेडियोवाणी शुरू करने के बाद आपका मेल पाकर जब मैंने आपकी तस्वीर देखी तो सचमुच हैरान हो गई।

अन्नपूर्णा

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