जैसलमेर यात्रा- पहला भाग । रामदेवरा । तस्वीरें और बातें ।
मुंबई थोड़े-थोड़े दिनों में आपको ऊबा देता है । घुटन-सी महसूस करवाता है । इसलिए थोड़े-थोड़े दिनों में यहां से बाहर आते-जाते रहो तो अच्छा लगता है । दिलचस्प बात ये है कि जब मुंबई से दूर जाएं तो ये शहर बहुत बहुत याद आता है और आपका मन वापस लौटने को बेक़रार होने लगता है । बहरहाल अपनी जिस यात्रा का ब्यौरा अब मैं तरंग पर शुरू कर रहा हूं उसमें मुंबई की याद बहुत कम आई और ये इस बात का सुबूत है कि अनुभवों से कितनी संपन्न और अविस्मरणीय रही ये यात्रा ।
जैसा कि आप जानते हैं कि विविध भारती अपनी स्वर्ण-जयंती मना रही है और हर महीने की तीन तारीख़ को स्वर्ण जयंती का विशेष आयोजन होता है । लगभग तमाम आयोजनों की चर्चा आपने रेडियोनामा पर पढ़ी भी होगी । तो इसी सिलसिले में इस बार हमें सीमा सुरक्षा बल के जवानों के बीच जाकर उनसे रिकॉर्डिंग्स हासिल करनी थी । थोड़ी-सी भूमिका बतानी होगी, ज़रूरी है इसलिए । शायद आपको पता हो कि विविध भारती ऐसा एकमात्र चैनल है जो फौजी-भाईयों के लिए पिछले पचास सालों से लगातार जयमाला कार्यक्रम करता चला आ रहा है । और जब मुश्किल भरा समय आता है तो इस कार्यक्रम की फ्रीक्वेन्सी बढ़ा दी जाती है । जैसे करगिल युद्ध के दौरान विविध भारती ने हैलो जयमाला जैसा कार्यक्रम किया था । ज़ाहिर है कि फौजियों के साथ विविध भारती का नाता बड़ा ही पुराना और जीवंत रहा है जिसे निभाने के लिए हम लोग भारत-पाकिस्तान की सीमा के निकट सीमा-सुरक्षा-बल के लिए एक संगीत-संध्या करने और साथ में उन फौजियों की रिकॉर्डिंग्स लाने गये थे ।
आज से मैं जिस श्रृंखला का आग़ाज़ कर रहा हूं, उसमें मेरी इस यात्रा की अनमोल यादें होंगी और हम सलाम करेंगे उन कुछ ख़ास जगहों को, जो अपनी कला, संस्कृति या अपने बाशिंदों के शौर्य की वजह से अमर बन गयी हैं । जोधपुर से हमें जाना था जैसलमेर के निकट रामगढ़ । लेकिन तय किया गया कि हम जोधपुर से पोखरन होते हुए पहले सीधे रामदेवरा जायेंगे । फिर लौटकर मुख्य सड़क पर आयेंगे और जायेंगे रामगढ़ । पोखरन वो जगह है जहां 18 मई 1974 को भारत का पहला शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण किया गया था । जिसे smiling buddha के नाम से जाना जाता है । बहरहाल आईये रामदेवरा चलें, जो पोखरन से क़रीब तेरह किलोमीटर दूर है । रामदेवरा पंद्रहवीं शताब्दी के एक संत-फ़कीर बाबा रामदेव जी का समाधि-स्थल है । जिसे हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म के अनुयायी समान रूप से मानते हैं ।
रामदेव जी तोमर राजपूत थे, हिंदू धर्म के अनुयायी उन्हें भगवान श्रीकृष्ण का अवतार मानते थे जबकि मुस्लिम उन्हें रामशाह पीर कहते थे । रामदेव जी के जन्म के बारे में एक कथा प्रचलित है । कहते हें कि बारहवीं सदी में एक राजा अनंगपाल हुए थे, जिन्हें कोई पुत्र नहीं था, इसलिए उन्होंने तीर्थयात्रा पर जाने का निश्चय किया । उन्होंने अपना राजपाट अपनी मां के ख़ानदान के सदस्य पृथ्वीराज चौहान को सौंप दिया । जब राजा अनंगपाल तीर्थयात्रा से लौटे तो पृथ्वीराज ने उन्हें राजपाट देने से इंकार कर दिया । आखि़रकार राजा और उनकी अगली पुश्तों को जैसलमेर के उस हिस्से में बस जाना पड़ा जिसे आज शिव तहसील कहते हैं ।
अनंगपाल के एक वंशज थे अजमल, जो भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर द्वारकाधीश श्रीकृष्ण ने उनके पुत्र के रूप में जन्म लिया । जिसे रामदेव नाम दिया गया । शीघ्र ही रामदेव एक संत के रूप में विख्यात हो गये । और मक्का से पांच पीर उनकी परीक्षा लेने के लिए आए । पीरों ने उनसे प्रभावित होकर उन्हें भी पीर का दर्जा दिया ।
कहते हैं कि रामदेव जी ने अपनी जिंदगी ग़रीबों की सेवा में लगा दी थी । उन्होंने स्वयं भू-समाधि ले ली थी । उनकी समाधि के आसपास बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने एक मंदिर बनवा दिया । आज रामदेव जी के मंदिर में मज़ार और मंदिर दोनों एक साथ हैं और ये धार्मिक-सद्भाव की एक अनमोल मिसाल है । इस समाधि पर घोड़े की सजीली मूर्ति चढ़ाने का प्रचलन है । अगस्त सितंबर में रामदेवरा में एक बड़ा सा दस दिन का मेला लगता है ।
ये रहीं कुछ तस्वीरें ।
रामदेवरा मंदिर में विविध भारती की टोली: बांये से शकुंतला पंडित, राकेश जोशी दिलीप कुलकर्णी, खांडेकर और शॉल ओढ़े रेडियोसखी ममता सिंह । बिल्कुल पीछे अशोक सोनावणे, कमलेश पाठक और कमल शर्मा
रामदेवरा पीर । किसी तरह तस्वीर लेने की इजाज़त मिली थी हमें यहां ।
रामदेवरा में कुछ दिलचस्प ग्रैफिटी दिखाई दिये । आपको बता दूं कि साइनबोर्ड और ग्राफिटी की तस्वीरें जमा करना अपना शौक़ है ।
मील का ये पत्थर है पोखरन का । जहां एक ढाबे में हमने भोजन किया था ।
पोखरन के ढाबे में भोजन के इंतज़ार में कमल शर्मा और आपका नाचीज़ दोस्त । स्वयं खींची गयी तस्वीर ।
शाम की चाय जहां जुगाड़ी गयी वहां लगा साईनबोर्ड । जो बता रहा था कि हम 113 किलोमीटर तो आ गये ।
और ये दो डिग्री तापमान में अमृत का काम करने वाली चाय
चाय पीतीं सखी सहेली: सबसे बाईं ओर कमलेश पाठक, फिर शकुंतला पंडित और फिर रेडियोसखी ममता सिंह
जैसलमेर रोड पर ढलती शाम के साये में पवनचक्कियों का नज़ारा
तो इस तरह हम पहुंच गये जैसलमेर के निकट रामगढ़ में सीमा सुरक्षा बल के इलाक़े में । आगे की दास्तान के लिये कीजिए इंतज़ार । फिलहाल ये बताईये कि इन तस्वीरों और ब्यौरे ने क्या आपके मन को तरंगित किया है ?
14 टिप्पणियां :
ओ तरंगित, गंगित! जैसलमेर, जैसलमेर! ऑर मोर?
अगली कड़ी जरूर प्रकाशित करें..हमारे लिए न सही प्रमोदजी की उड़ती तरगों को शांत करने के लिए जरूरी है :)
तस्वीर और लेख दोनों ही बहुत सुंदर।
तरंगित हो कर अगली किश्त का इंतजार करते है।
जे टी वी रेडियो वाले बिना अगली किश्त के बात ही नई करते जी ;)
बढ़िया तस्वीरे!
युनूसजी,
आपकी लेकनी और केमेरे के ज़रिये हमने भी जेसलमेरकी यात्रा कर ली । पर अपसोस हुआ, कि आप सभी लोगो को मिलने का मौका हाथ से निकल गया, जब कि आप सभी की यात्रा सुरत स्टेसन होते हुए थी ।
पियुष महेता ।
वाह युनुस जी हम भी जैसलमेर घूम लिए, बढ़िया लेह और बड़िया तस्वीरें,काश हम भी साथ होते
बढ़ते चलें हम साथ हैं...
यात्रा वर्णन रोचक है युनुस। पवनचक्कियों की तस्वीर अनोखी है, हमें California और Netherlands की याद दिलाती है। unique road signs,graffiti की तस्वीरें मज़ेदार हैं।
युनूस भाई, आपकी और ममता जी की तस्वीरें देखकर अच्छा लगा :)
Happy Valentines Day to all of you
ये दूसरा Sign Board/ grafffiti
समझ नहीं आया ? what does it mean ?
शुक्रिया मित्रो टिप्पणियों के लिए । लावण्या जी अगर दूसरा ग्राफिटी आसानी से समझने लायक़ होता तो शायद उसकी तस्वीर नहीं खींची जाती और यहां लगाई भी नहीं जाती । हिंदी और अंग्रेजी की दिलचस्प खिचड़ी के तौर पर इसे प्रस्तुत किया गया था । मुझे लगता है कि इस अनमोल वचन का ताल्लुक रिश्वतखोरी से है ।
Yunusbhai
Thank you for making us Shamil in your tour. Interesting graffitti.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
यूनुस भाई,
यात्रा का आगाज़ तो शानदार हो रहा है. आशा है कि कई दिलचस्प मोड़ इस सफर में आयेंगे और हम उनसे यूँ ही रूबरू होते जायेंगे. विविध भारती के आवाज़ के सूरमाओं को एक साथ देखकर अच्छा लगा. सारे लोगों को मेरा प्यार भरा नमस्कार.
धन्यवाद.
‘फिलहाल ये बताईये कि इन तस्वीरों और ब्यौरे ने क्या आपके मन को तरंगित किया है ?’
- भई,वाह!
ये सादादिली कही मार न डाले मुझको.
नेकी और पूछ पूछ।
- डॉ.श्रीकृष्ण राऊत
बहुत ही बढ़िया वर्णन.. मैं कई बार रामदेवरा गया हूँ। गर्मी के दिनों में गर्मी और सर्दी के दिनों में सर्दी इतनी जबरदस्त होती है कि मत पूछिये..
रामदेवजी के जन्म की कहानी जरा विस्तृत है,, कभी मौका मिला तो बतायेंगे। वैसे मैं भी जा रहा हूँ मई को
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