साहित्यकारों पर बायोपिक
इन दिनों आगामी फिल्म ‘मंटो’ की काफी चर्चा है, इसे नंदिता दास ने बताया है। मंटो हिंदी उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो के जीवन पर आधारित बायोपिक है। इस बीच आपने ख़ूब पढ़ा होगा कि भारतीय सिनेमा अचानक बायोपिक बनाने में जुट गया है, ख़ासतौर पर स्पोर्ट्स बायोपिक। पर क्या कभी आपने सोचा है कि हमारे देश में लेखकों पर फिल्में या डॉक्यूमेन्ट्रीज़ बनने का सर्वथा अभाव है। हमने अपने महत्वपूर्ण लेखकों से जुड़ी चीज़ें बतौर विरासत संजोकर रखने का ज़्यादा प्रयत्न नहीं किया है। हमारे पास प्रेमचंद पर कोई महत्वपूर्ण फिल्म नहीं है। निराला या महादेवी पर नहीं है। साहिर पर नहीं है। अमृता पर नहीं है। निर्मल वर्मा पर भी नहीं है। यहां मैं बायोपिक की बात कर रहा हूं। सवाल ये है कि इसकी वजह क्या है।
बहुत कम लोगों को पता है कि साहित्य अकादमी ने कुछ महत्वपूर्ण साहित्यकारों पर मोनोग्राफ प्रकाशित किये हैं। इनमें से कुछ बहुत उम्दा बन पड़े हैं। इसी तरह कई महत्वपूर्ण साहित्यकारों पर डॉक्यूमेन्ट्री भी बनायी गयी हैं। अफ़सोस बस इतना है कि प्रचार उतना ज्यादा नहीं है। अनेक कारणों से ये फिल्में जनता तक उस तरह नहीं पहुंच पायी हैं, जितनी अपेक्षा की जाती है। अच्छा तो ये होता कि स्कूलों या विश्वविद्यालयों में व्यापक रूप से इन्हें उपलब्ध करवा दिया जाता। बच्चे इन्हें देखते और एक पूरी दुनिया से रूबरू होते।
यहां आपको साहित्य अकादमी की बनायी कुछ फिल्मों के बारे में बता दिया जाए। अमृता प्रीतम पर बासु भट्टाचार्य ने फिल्म बनायी है जबकि अख़्तर-उल-ईमान पर फिल्म बनायी है सईद अख़्तर मिर्जा ने। विष्णु प्रभाकर पर पद्मा सचदेव की बनायी फिल्म उपलब्ध है जबकि धर्मवीर भारती और विजयदान देथा पर पर उदय प्रकाश ने फिल्में बनायी है। महाश्वेता देवी पर संदीप रॉय ने फिल्म बनायी है। कृष्णा सोबती पर सहजो सिंह की बनायी फिल्म उपलब्ध है। इन डॉक्यूमेन्ट्रीज़ को हम बाक़ायदा ख़रीद सकते हैं। इसके लिए आप साहित्य अकादमी की वेबसाइट पर जायें और खोजबीन करें।
अंग्रेज़ी में कुछ महान साहित्यकारों पर बहुत ही कमाल की फिल्में बनी हैं और उन्हें काफी सराहा भी गया है। जैसे महान अंग्रेज़ कवि जॉन कीट्स के जीवन के आखिरी तीन वर्षों पर एक फिल्म जेन कैंपियन ने बनायी थी- जिसका नाम है—‘ब्राइट स्टार’। इसी तरह मार्खेज़ पर ‘गाबो द क्रियेशन ऑफ गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज़’ जैसी चर्चित डॉक्यूमेन्ट्री बनायी गयी है। महान अमेरिकन कवियत्री सिल्विया प्लाथ पर एक बेहतरीन फिल्म ‘सिल्विया’ 2003 में आई थी। ‘सेन्स एंड सेन्सिबिलिटी’ और ‘प्राइड एंड प्रीजूडिस’ जैसी अमर कृतियां देने वाली जेन ऑस्टेन पर 2007 में एक फिल्म आई थी ‘बिकमिंग जेन’। इसी तरह जाने माने लेखक अर्न्स्ट हेमिंग्वे के जीवन पर कुछ महत्वपूर्ण फिल्में उपलब्ध हैं। जैसे हेमिंग्वे और गेलहॉर्न के रिश्ते पर टीवी सीरीज़ ‘हेमिंग्वे एंड गेलहॉर्न’ और हेमिंग्वे और एक पत्रकार डेन बार्ट के रिश्तों पर ‘पापा हेमिंग्वे इन क्यूबा’। इसके अलावा उन पर एक अदभुत डॉक्यूमेन्ट्री भी बनायी गयी थी—‘द लेजेन्ड्री लाइफ ऑफ अर्न्स्ट हेमिंग्वे’। इन तमाम फिल्मों को देखना बहुत मुश्किल नहीं है। पर मेरे मन में सवाल ये उठता है कि हमारे यहां ऐसा काम क्यों नहीं होता।
लोकमत समाचार मेंं कॉलम 'ज़रा हट केेे' आज दस सितंंबर 2018 को प्रकाशित।
1 Comentário:
यूनुस भाई आपको जानकर खुशी होगी कि सूत्रधार फ़िल्म सोसायटी,इन्दौर के श्री सत्यनारायण व्यास के पास प्रदर्शनार्थ ये अधिकांश फिल्में उपलब्ध हैं।
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