Monday, August 20, 2018

बच्‍चों के गुलज़ार


गुलज़ार का जन्मदिन यानी उनके चाहने वालों के लिए जश्न का दिन। गुलज़ार बहुत ही बारीक जज़्बात को जिस तरह कशीदे से सजे अलफ़ाज़ का पैरहन पहनाते हैं
दिल अश-अश कर उठता है।

आज
ज़रा हट केमें मैं गुलज़ार के ऐसे कामों का जिक्र करना चाहता हूं जो उनके सारे ज़रा हटके कामों से भी अलग ही हैं। गुलज़ार ने जितना बड़ों के लिए लिखा है—बच्‍चों के लिखा उनका काम भी बहुत ही प्‍यारा रहा है। ख़ासतौर पर हम उस गीत का जिक्र करते चलें—जंगल बुकका शीर्षक गीत जिसे विशाल भारद्वाज की तर्ज पर कुछ बच्‍चों ने गाया और ये कई पीढियों के बचपन की एक सुनहरी याद बन गया—
जंगल जंगल बात चली है पता चला है/चड्ढी पहन के फूल खिला है, फूल खिला है

गुलज़ार ने अपनी बिटिया मेघना के बहाने बच्‍चों के लिए बहुत कुछ रचा है। मेघना का बचपन का नाम है—
बोस्‍की। गुलज़ार बोस्‍की के बारे में लिखते हैं—बूंद गिरी है ओस की/ बिट्टू रानी बोस्‍की/ बूंद का दाना मोती है/ बोस्‍की जिसमें सोती है। इसके बाद गुलज़ार ने बोस्‍की के लिए लिखा बोस्‍कीका पंचतंत्र। बचपन की कहानियों के लगातार खत्‍म होते जाने वाले इस समय में गुलज़ार के इस पंचतंत्र को ज़रूर बच्‍चों को पढ़ाया, पढ़वाया, सुनाया जाना चाहिए। बोस्‍की के पंचतंत्र के कई भाग प्रकाशित हैं।

गुलज़ार ने बच्‍चों के जीवन में बहुत सारा रस घोला है। आपको अगर याद हो तो 1983 में आई थी शेखर कपूर की फिल्‍म
मासूम’, जिसमें वनीता मिश्रा, गौरी बापट और गुरप्रीत कौर ने एक गीत गाया था—लकड़ी की काठी/ काठी पे घोड़ा/ घोड़े की दुमपे जो मारा हथौड़ा। क्‍या इस गाने के बिना हम किसी भी बचपन की कल्‍पना कर सकते हैं। इसी तरह बचपन के कुछ और गीत‍ गुलज़ार ने रचे हैं। जैसे एक सीरियल के लिए उन्‍होंने डायनासॉर के बारे में लिखा—छिपकली के नाना हैं, छिपकली के हैं ससुर दानासुर, दानासुरकमाल की बात ये है कि ये सब स्‍टीवन स्‍पीलबर्ग के जुरासिक पार्कसीरीज़ की फिल्‍मों से बहुत बहुत पहले की बातें हैं।
इसी तरह उन्‍होंने
एलिस इन वंडरलैंडके लिए लिखा—टप टप टोपी टोपी टोप में जो डूबे, फर फर फरमाइशी देखे हैं अजूबे गुलज़ार साहब ने सिंदबाद जहाज़ी के लिए लिखा—अगर मगर डोले रे नैया/ भँवर भँवर जाये रे पानी/ नीला समंदर है आकाश प्‍याज़ी/ डूबे ना डूबे ओ मेरा जहाज़ी

नब्‍बे के दशक में दूरदर्शन के सीरियल के लिए गुलज़ार ने लिखा—
घूंघर वाली, झेनू वाली झुन्‍नू का बाबा/ किस्‍सों का,कहानियों का गीतों का झाबा/ आया आया झेनू वाली झुन्‍नू का बाबा। गुलज़ार ने बच्‍चों की दुनिया में तरह तरह के इंद्रधनुष सजाए हैं। ज़रा सोचिए कि परिचय के सारे के सारे गामा को लेकर गाते चलेया फिर गुड्डीके हमको मन की शक्ति देना मन विजय करेंजैसे गाने भी गुलज़ार ने ही दिये हैं। और इक था बचपन
भी गुलज़ार की ही कलम से निकला है। गुलज़ार बचपन की मासूम दुनिया में फूल खिलाने वाले जादूगर हैं। उनको चौरासी साल मुबारक।


लोकमत समाचार केे अपने कॉलम 'ज़रा हट केेे' में 20 अगस्‍त को प्रकाशित।

1 Comentário:

Shivangi Friedi said...

Hello.. yusuf ji.. apko bahut suna hai.. padhkar bhi prabhavit hui.

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