ये शामें सब की सब ये शामें...
लोकमत समाचार मेंं 9 जुलाई 18 को प्रकाशित
धर्मवीर भारती की एक
कविता है—-‘ये शामें, सब की शामें.../ जिनमें मैंने घबरा कर तुमको
याद किया/ जिनमें प्यासी सीपी-सा भटका विकल हिया/ जाने किस आने वाले की प्रत्याशा
में/ ये शामें/ क्या इनका कोई अर्थ नहीं?’ किसने सोचा था कि कभी ये फिल्मी गीत में तब्दील
हो जायेंगी। जी हां, श्याम बेनेगल ने जब सन 1992 में ‘सूरज का सातवां घोड़ा’ जैसी अद्भुत फिल्म बनाई तो उसमें
इसे शामिल किया, वनराज भाटिया की तर्ज पर इसे गाया उदित नारायण
और कविता कृष्णमूर्ति ने। जाहिर है कि ये हमारे लिए एक अनमोल नगीना बन गया है।
इसी तरह सन 1984 में कुमार शाहनी ने फिल्म ‘तरंग’ बनायी थी। इस फिल्म में विख्यात कवि रघुवीर सहाय की एक कविता को लता मंगेशकर ने स्वर दिया था। ‘बरसे घन सारी रात/ संग सो जाओ’ इसका भी संगीत वनराज भाटिया ने तैयार किया था। जिन दोनों गानों का मैंने अभी जिक्र किया वो बाकायदा इंटरनेट पर उपलब्ध हैं और कभी भी सुने जा सकते हैं। अफसोस यही है कि ये गीत आपको किसी रेडियो स्टेशन से बजते सुनाई नहीं देते, क्योंकि इन्हें उस तरह रिलीज़ नहीं किया गया।
जब बात हिंदी कविता के फिल्मी परदे पर आने की ही हो रही है तो बच्चन जी को याद कर लिया जाए। सन 1977 में ऋषिकेश मुखर्जी ने अमिताभ बच्चन को लेकर फिल्म ‘आलाप’ बनायी तो अपने विषय की वजह से उसमें बहुत ही ललित गीत लिए गए। डॉ. हरिवंश राय बच्चन का इस फिल्म में एक गीत था—‘आंखों में भरकर प्यार अमर/ आशीष हथेली में भरकर/ कोई मेरा सर गोदी में रख सहलाता/ मैं सो जाता/ कोई गाता, मैं सो जाता’। इसे गाया था येशुदास ने और इसका संगीत जयदेव ने तैयार किया था।
सन 1976 में जब फिल्म ‘कादंबरी’ आई तो इसमें अमृता प्रीतम की एक कविता को संगीतबद्ध किया गया। उस्ताद विलायत ख़ां की धुन पर आशा भोसले ने इसे गाया था, बोल थे—अंबर की एक पाक सुराही/ बादल का एक जाम उठाकर/ घूँट चाँदनी पी है हमने/ बात कुफ्र की, की है हमने’। आगे चलकर जब अमृता प्रीतम की कहानी पर फिल्म ‘पिंजर’ बनी, तो इसमें उनकी कई रचनाओं को स्वरबद्ध किया गया। उनमें से एक थी—चरखा चलाती मां/ धागा बनाती मां/ बेटी है सपनों की केसरी’। इसे प्रीती उत्तम ने गाया था और संगीत उत्तम सिंह का था।
इसी तरह सन 1984 में कुमार शाहनी ने फिल्म ‘तरंग’ बनायी थी। इस फिल्म में विख्यात कवि रघुवीर सहाय की एक कविता को लता मंगेशकर ने स्वर दिया था। ‘बरसे घन सारी रात/ संग सो जाओ’ इसका भी संगीत वनराज भाटिया ने तैयार किया था। जिन दोनों गानों का मैंने अभी जिक्र किया वो बाकायदा इंटरनेट पर उपलब्ध हैं और कभी भी सुने जा सकते हैं। अफसोस यही है कि ये गीत आपको किसी रेडियो स्टेशन से बजते सुनाई नहीं देते, क्योंकि इन्हें उस तरह रिलीज़ नहीं किया गया।
जब बात हिंदी कविता के फिल्मी परदे पर आने की ही हो रही है तो बच्चन जी को याद कर लिया जाए। सन 1977 में ऋषिकेश मुखर्जी ने अमिताभ बच्चन को लेकर फिल्म ‘आलाप’ बनायी तो अपने विषय की वजह से उसमें बहुत ही ललित गीत लिए गए। डॉ. हरिवंश राय बच्चन का इस फिल्म में एक गीत था—‘आंखों में भरकर प्यार अमर/ आशीष हथेली में भरकर/ कोई मेरा सर गोदी में रख सहलाता/ मैं सो जाता/ कोई गाता, मैं सो जाता’। इसे गाया था येशुदास ने और इसका संगीत जयदेव ने तैयार किया था।
सन 1976 में जब फिल्म ‘कादंबरी’ आई तो इसमें अमृता प्रीतम की एक कविता को संगीतबद्ध किया गया। उस्ताद विलायत ख़ां की धुन पर आशा भोसले ने इसे गाया था, बोल थे—अंबर की एक पाक सुराही/ बादल का एक जाम उठाकर/ घूँट चाँदनी पी है हमने/ बात कुफ्र की, की है हमने’। आगे चलकर जब अमृता प्रीतम की कहानी पर फिल्म ‘पिंजर’ बनी, तो इसमें उनकी कई रचनाओं को स्वरबद्ध किया गया। उनमें से एक थी—चरखा चलाती मां/ धागा बनाती मां/ बेटी है सपनों की केसरी’। इसे प्रीती उत्तम ने गाया था और संगीत उत्तम सिंह का था।
इसी तरह महादेवी वर्मा की कविता—‘कैसे उनको पाऊं आली’ को छाया गांगुली की आवाज़ में फिल्म
‘त्रिकोण का चौथा कोण’ के लिए रिकॉर्ड किया
गया था। संगीतकार थे जयदेव। वैसे इस गीत को एक गैर फिल्मी अलबम के लिए आशा भोसले ने
भी गया है। आशा भोसले का एक गैर फिल्मी अलबम है संगीतकार जयदेव के संगीत निर्देशन
में। इसमें उन्होंने कई साहित्यिक रचनाओं को गाया है। इसमें जयशंकर प्रसाद की अमर
रचना—‘तुमुल कोलाहल कलह में...मैं हृदय की बात रे मन’
भी शामिल है। इस अलबम की महादेवी वर्मा की लिखी अन्य रचनाएं हैं ‘जो तुम आ जाते एक बार’, ‘तुम सो जाओ, मैं गाऊं’, ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’। ऐसे ललित गीतों को सदा अपने साथ रखना चाहिए।
1 Comentário:
बहुत ही बढ़िया जानकारी।
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