Tuesday, July 3, 2018

अल्‍लाह मेघ दे




ये कहना ग़लत नहीं होगा कि हम कुदरत से दूर होते चले जा रहे हैं। अब कुछ नौजवान ये कहते पाए जाते हैं कि बारिश का मौसम काफी तकलीफें लेकर आता है। फिर, बारिश आ गयी, वही ट्रैफिक-जाम
, आने-जाने की तकलीफें। ये आपको भले रूमानी और सपनीला ख़्याल लगे, लेकिन ज़रा याद कीजिए कि काग़ज़ की कश्‍ती छोड़ने वाली बारिश देखे कितने दिन हुए। वो दिन, जिनके लिए जगजीत सिंह ने सुदर्शन फाकिर का लिखा गाया था—ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी/ मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो काग़ज़ की कश्‍ती वो बारिश का पानी

ये बारिश के वो दिन हैं जिनके लिए अमीर ख़ुसरो ने लिखा और जाने कितने कितने गायकों ने गाया—
अम्‍मा मेरे बाबा को भेजो री/ के सावन आया। ये बारिश के वो दिन हैं—जिनका नज़ारा सन 1979 में आई बासु चटर्जी की फिल्‍म मंजिलमें दिखता है—जब अमिताभ बच्‍चन और मौसमी चटर्जी गेट-वे, क्रॉस मैदान, मरीन ड्राइव जैसे इलाक़ों में खूब-खूब भीगते हैं। इस गाने को देखते हुए कभी जी ही नहीं भरता। जो लोग मुंबई आते हैं, वो इन जगहों को वैसा देखना चाहते हैं जैसी वो पर्दे पर नज़र आईं। पर अब सब बदल चुका है।

बारिश का इंतज़ार कितना विकल होता है
, इसे सन 1965 में आई विजय आनंद की फिल्‍म गाइडमें देखा जाना चाहिए। राजू गाइड गांव वालों को बताना चाहता है कि वो कोई स्‍वामी नहीं है, सिद्ध पुरूष नहीं है- और फिर एक गांव वाले का ये कहना—मेरा विश्‍वास और भी दृढ़ हो गया है, कि बारह दिन के तप से पवित्र होने के बाद आपकी आत्‍मा से जो पुकार निकलेगी, वो आसमान का सीना फाड़कर रख देगी और देवता लोग आंसू बहा-बहाकर धरती की प्‍यास बुझाने के लिए मजबूर हो जायेंगे। और फिर सचिन देव बर्मन की कातर पुकार—अल्‍ला मेघ दे, पानी दे छाया दे रे तू, रामा मेघ दे। आपको बता दें कि ये गाना जाने-माने भटियाली गायक अब्‍बासुद्दीन अहमद के गीत—अल्‍ला मेघ देसे प्रेरित था।

बारिश का यही इंतज़ार आज से 17 बरस पहले आई आमिर ख़ान की फिल्‍म
लगानमें भी नज़र आता है—इस फिल्‍म में जावेद अख्तर ने लिखा--काले मेघा, काले मेघा पानी तो बरसाओ/ बिजुरी की तलवार नहीं, बूंदों के बाण चलाओ। सन 1957 में वी. शांताराम ने जब जेल-सुधार के मुद्दे पर दो आंखें बारह हाथ बनायी तो इस फिल्‍म में भरत व्‍यास ने बारिश का एक सुंदर गीत रचा था—नन्हीं-नन्हीं बूँदनियों की खनन-खनन खन खन्जरी बजाती आई/ देखो भाई बरखा दुल्हनिया। ये घुमड़ घुमड़ के छायी रे घटागाने की पंक्तियां हैं।

बारिश धरती की प्‍यास ही नहीं बुझाती
, अर्थव्‍यवस्‍था की सेहत ही नहीं सुधारती, ये हमारी स्‍मृतियों, हमारी संस्‍कृति,
हमारी तहज़ीब का हिस्‍सा है। हमारे कितने कितने त्‍यौहार बारिश की धुरी पर घूमते हैं। हिंदी सिनेमा ने बारिश का तरह-तरह से इस्‍तेमाल किया है। और जाने कितने गाने हैं बारिश के। सवाल ये है कि आप इस बारिश कौन सा गीत गुनगुनाने वाले हैं।




लोकमत समाचार में हर सोमवार को कॉलम 'ज़़रा हट केेे'।

1 Comentário:

Unknown said...

मुझे दो बीघा जमीन फिल्म का गाना धिन तक तक तगिन-तगिन गिन-गिन रे बहुत पसंद है!

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