अकसर शब-ए-तन्हाई में... Oft, in the stilly night
बहुत कम ही ऐसा हुआ है कि अंग्रेज़ी से उर्दू में किसी कविता का अनुवाद किया गया हो और उसे बाक़ायदा गाया भी गया हो। गायिका रेशमा के जाने के बाद उनकी गायी कई ऐसी रचनाएं देखनी मिलीं जिनसे पहले वाकफि़यत नहीं थी। ख़ासकर उनकी गायी ग़ज़लें। बल्कि सच तो ये है कि हमें पता ही नहीं था कि वो ग़ज़लें भी गाती रही हैं। फिर उनकी गायी एक ग़ज़ल की धुन जैसे मन में चस्पां ही हो गयी। हटने का नाम ही नहीं लेती। शायरी भी ख़ासी रूमानी। और दिल को लुभाने वाली।
खोज की तो पता चला कि शायर हैं नादिर काकोरवी। अब दिक्कत ये थी कि हम इस शायर से वाकिफ़ नहीं थे। फिर खोजबीन की। तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस पाकिस्तान का ये पेज मिला। जिसमें बताया गया है कि नादिर उर्दू शायर तो थे ही साथ ही उन्होंने अंग्रेज़ी के क्लासिकी कवियों बायरन और शैली का भी उर्दू अनुवाद किया। और सर थॉमस मूर की कविताओं का भी। ज़ाहिर है कि इसका असर नादिर की अपनी शायरी पर भी पड़ा और वो ग़ज़ल की बंदिशें तोड़कर बाहर आ गये। वो आज़ाद नज़्में कहने लगे। नादिर का असली नाम था नादिर अली ख़ान। लखनऊ के नज़दीक काकोरी में वो पैदा हुए थे। (आज ये जगह कबाब के लिए जानी जाती है)। सन 1857 में पैदाइश और सन 1912 में वफ़ात। वो थॉमस मूर की किताब 'Light of the harem' के लिए मशहूर हुए। शाइरी की उनकी अपनी किताब का नाम है 'जज्बात-ए-नादिर'। जो पहले सन 1910 में और बाद में सन 1962 में छपी। ये किताब यहां से डाउनलोड भी की जा सकती है। ज़ाहिर है कि हमने इसे संजो लिया है।
कहते हैं कि नादिर काकोरवी और डॉ. अल्लामा इक़बाल बहुत क़रीबी दोस्त थे। अल्लामा इक़बाल ने उनकी और अपने एक और दोस्त गुलाम भीक नारंग की नज़र एक शेर लिखा था--
नादिर-ओ-नारंग हैं इक़बाल के हमसफ़र
है इसी तसलीस फिल तौहीद का सौदा मुझे
सर थॉमस मूर की एक मशहूर कविता है
Oft, in the stilly night,
इसका अनुवाद नादिर काकोरवी ने किया है। ये रही मूल कविता। और नीचे है इसका उर्दू अनुवाद।
Oft, in the stilly night,
Ere slumber's chain has bound me,
Fond memory brings the light
Of other days around me;
The smiles, the tears,
Of boyhood's years,
The words of love then spoken;
The eyes that shone,
Now dimm'd and gone,
The cheerful hearts now broken!
Thus, in the stilly night,
Ere slumber's chain hath bound me,
Sad memory brings the light
Of other days around me.
When I remember all
The friends, so link'd together,
I've seen around me fall,
Like leaves in wintry weather;
I feel like one
Who treads alone
Some banquet-hall deserted,
Whose lights are fled,
Whose garlands dead,
And all but he departed!
Thus, in the stilly night,
Ere slumber's chain has bound me,
Sad memory brings the light
Of other days around me.
अकसर शब-ए-तन्हाई में, कुछ देर पहले नींद से
गुज़री हुई दिलचस्पियां, बीते हुए दिन एश के
बनते हैं शम्मा-ए-जिंदगी
और डालते हैं रोशनी
मेरे दिल-ए-सद-चाक पर
वो बचपन और वो सादगी
वो रोना ओर हंसना कभी
फिर वो जवानी के मज़े
वो दिल्लगी वो क़हक़हे
वो इशक़ वो अहद-ए-वफा
वो वादा और वो शुक्रिया
वो लज्जत-ए-बज्मे तरब *खुशियों की महफिल के मज़े
याद आती हैं एक-एक सब।
अकसर शब-ए-तन्हाई में।।
दिल का कंवल जो रोज़-ओ-शब
रहता शगुफ्ता था सो अब
उसका ये अब तर हाल है
एक सब्ज़ा-ए-पामाल है *मुरझाए हुए पौधा
एक फूल कुम्हलाया हुआ
सूखा हुआ बिखरा हुआ
रौंदा पड़ा है ख़ाक पर।।
यूं ही शब-ए-तन्हाई में
कुछ देर पहले नींद से
गुज़री हुई नाकामियां
बीते हुए दिन रंज के
बनते हैं शाम-ए-बेकसी
और डालते हैं हैं रोशनी
उन हसरतों की क़ब्र पर।
जो आरज़ुएं पहले थीं
फिर गम-ए-हसरत बन गयीं
गम दोस्तों की फ़ौत का
उनकी जवान मौत का
ले देख शीशे में मेरे
उन हसरतों का ख़ून है
जो गर्दिश-ए-अय्याम से *रोज़मर्रा के दुख
जो किस्मत-ए-नाकाम से
या एश-ए-ग़म अनजान से
मर्ग़-ए-बुत-ए-गुलफ़ाम से
खु़द मेरे ग़म में मर गयीं
किस तरह पाऊं मैं हज़ीं
काबू दिल-ए-बेसब्र पर।
जब आह उन अहबाब को
मैं याद कर उठा हूं जो
यूं मुझ से पहले उठ गये
जिस तरह ताईर बाग़ के
या जैसे फूल और पत्तियां
गिर जायें सब क़ब्ल खिज़ां
और खुश्क रह जाये शजर
उस वक्त तन्हाई मेरी
बन कर मुजस्सम बेकसी
कर देती है पेश-ए-नज़र
हो हक़ सा इक वीरान घर
बरबाद जिसको छोड़कर
सब रहने वाले चल बसे
टूटे किवाड़ और खिड़कियां
छत के टपकने के निशां
परनाले हैं रोज़ा नहीं
ये 'हॉल' है आंगन नहीं
परदे नहीं चिलमन नहीं
एक शमा तक रोशन नहीं
मेरे सिवा जिसमें कोई
झांकें ना भूले से कोई
वो ख़ाना-ए-शाली है दिल
पूछे ना जिसको देव कोई
उजड़ा हुआ वीरान घर
अकसर शब-ए-तन्हाई में
कुछ देर पहले नींद से
गुज़री हुई दिलचस्पियां
बीते हुए दिन ऐश के
बनते हैं शमा-ए-जिंदगी
और डालते हैं रोशनी
मेरे दिल-ए-सद-चाक पर।।
इस रचना को अंश आप रेडियोवाणी पर यहां...रेशमा और उस्ताद अमानत अली ख़ां साहब की आवाज़ों में सुन सकते हैं।
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