Thursday, August 25, 2016

खुश्‍बू जैसे लोग मिले अफ़साने में- शुभ्रा जिज्‍जी को सालगिरह की बधाईयां और मुलाक़ात की याद।

कई बार कुछ काम मुल्‍तवी होते जाते हैं। कुछ यादें लिखी ही नहीं जातीं।
ऐसा ही हुआ शुभ्रा जिज्‍जी के घर जाने की यादों के बारे में लिखते हुए।

गए तो थे दिसंबर 2015 में पर। लिखने का मौक़ा आज आया है।
आज इसलिए क्‍योंकि आज हमारी शुभ्रा जिज्‍जी अपना जन्‍मदिन मना रही हैं।
तकरीबन बचपन की बात है, आकाशवाणी के समाचार वाचकों को सुनते थे, तो उनमें शुुभ्रा जिज्‍जी भी शामिल थीं। हम उन सबकी नकल किया करते थे। और उनकी कल्‍पनाएं करते थे कि वो ऐसे दिखते होंगे, वैसे दिखते होंगे। न्‍यूज़ रीडिंंग की पूरी प्रक्रिया के बारेे में भी सोचते थे। और ये सपना भी देखते थे कि अगर आगे चलकर यही काम करने मिलेे, तो मज़ा आ जाए। बहरहाल...आगे चलकर रेडियो में जब कैजुएल कॉम्‍पेयर का काम करने मिला, तो लगा कि वाह, क्‍या जगह है ये। और फिर जिंदगी विविध भारती में ले आई। शुभ्रा जी से हमें फेसबुक ने ही मिलवाया। और फिर वो हमारी जिज्‍जी बन गयीं। फोन पर बातें हुईं। चैट-मैसेज सब होते रहे। ऐसा कभी लगा ही नहीं कि उनसे मुलाक़ात नहीं हुई है। पहले ब्‍लॉगिंग और बाद में फेसबुक से ऐसे कई अज़ीज़ मिले हैं जिनसे मुलाक़ातें ना हुईं हों या कम हुईं हों पर इससे नाते की गहराई कम नहीं होती। कमाल की है ना ये वर्चुअल दुनिया।

दिसंबर में जब एक आयोजन में दिल्‍ली जाने का मौक़ा आया तो सभी इष्‍ट-मित्रों को ख़बर कर दी गयी कि हम आ रहे हैं। आयोजन की व्‍यस्‍तताएं ऐसी थीं कि लग रहा था ग्रेटर नोएडा जाना हो नहीं आएगा। पर ऐसे ही मौक़े पर फोन पर बातों के दौरान जिज्‍जी ने एक ऐसा शेर दे मारा कि हम पूरी तरह लाजवाब हो गए। कुछ ना सूझा।

ऐसे में प्रिय मित्र आशीष, जो हमें अगवा करके अपने घर ले गया था, उससे कहा, भाई चलो ज़रा तुम्‍हें एक बेमिसाल शख्सियत से मिलवाया जाए। और इस तरह हमारा सफर शुरू हुआ। ग्रेटर नोएडा के प्रसार कुंज की छटा ही कुछ और है। पहुंचते ही जैसे अजीब-सा सुकून मिला। और फिर टॉप फ्लोर का नज़ारा ही और था। फ़ेसबुक के ज़रिए हम समेत बहुत सारे लोग जानते हैं कि शुभ्रा जिज्‍जी को बाग़वानी का शौक़ है। तो पहुंचते ही जिज्‍जी ने दिखलाया अपना बग़ीचा। जो टैरेस पर है। और कमाल की बात ये है कि जिज्‍जी ने बड़े इनोवेटिव तरीक़े आज़माए हैं बाग़वानी के लिए। जैसे ये हैं टूटे हुए बेसिन जिन्‍हें कहीं पड़ा देखकर जिज्‍जी नेे अपनी छत पर मंगवा लिया। और देखिए, इनका इस्‍तेमाल। 



इसके बाद ज़रा ये देखिए। दिए में उगता पौधा।
ये सब कोई बहुत ही रचनात्‍मक व्‍यक्ति ही कर सकता है। जिज्‍जी इन पौधों को अपनी जान से ज्‍यादा चाहती हैं। बड़े चहकते हुए हमें जिज्‍जी ने बताया कि किस तरह वो पौधे जमा करती हैं। कैसे इनकी परवरिश करती हैं वग़ैरह।

आशीष हमारे बचपन के दोस्‍त हैं। वो साथ गए थेे और पुराने बाग़वान रह चुके हैं। सागर में उनके घर पर खूब हरा-भरा बग़ीचा हुआ करता था। बस शास्‍त्राार्थ शुरू हो गया बाग़वानी का। जिज्‍जी आशीष और बीच बीच में हम। हमने देखा कि किसी चीज़ को जिज्‍जी ने बख्‍शा नहीं है। ये देखिए शीशियां।

और यहां शंख में उगा पौधा। जाहिर है कि ये पौधा भी ओंंकार का नाद ही करता होगा भले हम सुन ना सकें। और इसे नाज़ से पाल रही जिज्‍जी को वो नाद ज़रूर सु‍नाई देता होगा।



यहां कुछ कॉफी मग हैं। और इनमें उगते पौधे हैं। जिज्‍जी ने हमें हर पौधे के बारे में बताया। पर बातें केवल पौधों की तो हो नहीं सकतीं। बातें तो संगीत, रेडियो, साहित्‍य जाने किस किस विषय पर चलती रहीं।


ये कोना हम लोगों को बहुत पसंद आया। ये जिज्‍जी की स्‍टडी की खिड़की है। इसकी हरियाली देखिए ज़रा। 'जादू' हमारे संग गये थे। ममता किसी वजह से जा नहीं सकीं। बस 'जादू' और जिज्‍जी की बातचीत चल पड़ी creepers, crawlers के बारे में। लताओं के बारे में। 



यहां मौक़ा मिला हमें, किचन में कॉफी बनाती जिज्‍जी की तस्‍वीर खींचने का। बातें तो यहां भी चलती ही रहीं। 



आशीष पढ़ाकू हैं, इसलिए तो बचपन में हम जुड़े थे। जिज्‍जी की लाइब्रेरी देखी तो बस जुट पड़े हम दोनों। कमाल का संग्रह है ये। हमने चुपके से आशीष की ये छबि क़ैद कर ली।


जादू और जिज्‍जी की भी गहरी छनती है। जब जादू को जिज्‍जी ने केक खाने को दिया, तो वो हमारी इजाज़त चाहते थे, जादू को सर्दी जुकाम था। हमने सोचा कहां केक खायेंगे ये। पर जिज्‍जी के पास तो हर मर्ज़ का उपाय है ना। उन्‍होंने जादू को केक दिया। और उसके बाद दी एक लौंग ज़बर्दस्‍ती। इसके बाद मुूंबई लौटकर जादू मम्‍मा से केक मांगते और फिर लौंंग मांगते। उन्‍हें पता था कि केक के बाद लौंग खायें तो कुछ नहीं होता। जादू की मम्‍मा को इस नुस्‍खे से बड़ा मज़ा आता। 



और ये आशीष ने ली जिज्‍जी और भैया की यादगार तस्‍वीर।


यहां आशीष की मांग पर जिज्‍जी पान लगा रही हैं और 'जादू' जिज्ञासावश देख रहे हैं। 



और यहां बनारस का पान खाई के आशीष की अकल का ताला खुल गया है। उसके बाद आशीष काफी सुधरे हुए से लगते हैं। ज़रा इतें-उतें किए, तो फिर बनारसी पान खिलाना पड़ेगा इनको।


ये है जिज्‍जी का पानदान।

जिज्‍जी के घर जाकर और उनसे मिलकर ऐसा लगा ही नहीं कि ये पहली मुलाक़ात थी।
इतनी हंसोड़ जिज्‍जी। इतनी ज्ञानी जिज्‍जी। किसी भी विषय पर बात शुरू कर लो।
किसी भी मुद्दे पर बहस कर लो। गानों से लेकर संस्‍कृत तक। पौधों से लेकर दवा तक। इतिहास से लेकर राजनीति और रेडियो तक। ऐसी जिज्‍जी से कुछ मिनिट मिलकर लगा युगों के लिए मिल लिए। वो कहती रहीं कि अगली बार ममता समेत आना और यहीं रहना ताकि जमकर बातें हो सकें। गाना-बजाना भी हो। इतनी बातें हुईं कि यहां सब लिखना तक नहीं हो सका।

ऐसी खुशमिज़ाज, जिंदादिल, बेमिसाल, कड़क शुभ्रा जिज्‍जी आज अपना जन्‍मदिन मना रही हैं। छोटे भाई और उसके परिवार की तरफ से उन्‍हें असंख्‍य बधाईयां। और साथ ही ये वीडियो उनके लिए।



7 टिप्‍पणियां :

डॉ. अजीत कुमार said...

Shubhra Di to asiim pyar aur gyan ka bhandar hain. Aaj unhen dher so badhaiyaan.

सागर नाहर said...

जिज्जी और भैया की मुलाकात का बहुत बढ़िया वर्णन! हमें तो जिज्जी की लाइब्रेरी देख कर बहुत ईर्ष्या हो रही है.

दिलीप कवठेकर said...

हमें भी...��

ashishdeolia said...

जन्मदिन की खूब सारी शुभकामनाएं जिज्जी। आपके साथ वो पहली मुलाकात हमेशा याद रहेगी। दोनों दादियों की बात तो यूनुस भूल गए। उन्हें मेरा चरण स्पर्श।

संभव जैन 'निराला' said...

वाह बहुत खूब

sanjay patel said...

शुभ्रा जीजी जैसे लोग ज़िंदादिली की जीती-जागती किताब होते हैं यूनुस भाई। उनसे सम्वाद कर हमेशा लगा जैसे वे हम सब की सगी जीजी हैं ।तहज़ीब,अदब,परिवेश के बारे में कितनी सचेत,सजग और संजीदा...देखिये कब मिलना हो उनसे। अभी तो आपने ख़ूब मिलवाया भाई। आपको दिल से साधुवाद।

sanjay patel said...

शुभ्रा जीजी जैसे लोग ज़िंदादिली की जीती-जागती किताब होते हैं यूनुस भाई। उनसे सम्वाद कर हमेशा लगा जैसे वे हम सब की सगी जीजी हैं ।तहज़ीब,अदब,परिवेश के बारे में कितनी सचेत,सजग और संजीदा...देखिये कब मिलना हो उनसे। अभी तो आपने ख़ूब मिलवाया भाई। आपको दिल से साधुवाद।

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