मुंबई फिल्म समारोह: पहला दिन। closed curtain, jadoo और The Immigrant
छोटे शहरों में बचपन बीता। ज़ाहिर है कि सिनेमा के नाम पर अमिताभ बच्चन, शाहरूख़, आमिर, सलमान, सनी देओल वग़ैरह ही नज़र आए। बाक़ी फिल्में या तो दूरदर्शन पर देखीं, बाक़ायदा डीडी वन पर। सत्यजीत रे, श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी वग़ैरह। दूरदर्शन की जो भी कृपा हो जाती। दूरदर्शन ने ही हिचकॉक भी दिखलाए। इसलिए मुंबई आने के बाद जब ये पता चला कि निजी तौर पर यहां फिल्म-समारोह की शुरूआत की जा रही है..तो ये हमारे लिए एक नये ख़ज़ाने के खुलने जैसा था। बस तभी से हर साल हम बहुत ही निष्ठा के साथ मुंबई फिल्म समारोह में शामिल होते हैं। इस समारोह का आयोजन Mumbai academy of moving images द्वारा किया जाता है। और ये इसका पंद्रहवां साल है।
18 अक्तूबर को फेस्टिवल का आग़ाज़ हुआ और फिल्मों का सिलसिला शुरू हुआ शुक्रवार 19 अक्तूबर को।
पहले दिन हमने जो फिल्में देखीं – उसका ब्यौरा :
पर्दे / Closed Curtains
18 अक्तूबर को फेस्टिवल का आग़ाज़ हुआ और फिल्मों का सिलसिला शुरू हुआ शुक्रवार 19 अक्तूबर को।
पहले दिन हमने जो फिल्में देखीं – उसका ब्यौरा :
पर्दे / Closed Curtains
जफर पनाहीईरानी सिनेमा का बड़ा नाम हैं। 1995 में उन्होंने अपनी पहली ही फिल्म The white Baloon के लिए प्रतिष्ठित Caméra d'Or पुरस्कार मिला था। ईरान में महिलाओं के फुटबॉल खेलने पर पाबंदी लगने पर उन्होंने अपने चर्चित फिल्म बनायी offside. इस फिल्म ने बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में ‘सिल्वर बेयर जीता था। ईरान में महिलाओं की दुर्दशा पर उन्होंने फिल्म ‘दायरे’ (the circile) बनायी थी। जिसे वेनिस फिल्म फेस्टिवल में ‘गोल्डन लायन’ से नवाज़ा गया था। जफ़र फिल्म समारोहों के बहुत ही लोकप्रिय और प्रतिष्ठित फिल्मकार हैं। ईरान सरकार से अपनी फिल्मों के विषयों को लेकर उनका इतना सख्त टकराव रहा है कि तकरीबन तीन साल उन्हें जेल में भी काटने पड़े। जब मौक़ा आया तो हमने इस साल की फिल्मों की शुरूआत उनकी इस फिल्म ‘पर्दे’ से की।
ये कहानी एक फिल्म-निर्देशक और उसके किरदारों पर केंद्रित है। फिल्म का परिदृश्य उलझा हुआ है। पता ही नहीं
अफ़सोस की बात ये है कि दिन में बारह बजे से तीन बजे के बीच मुंबई फिल्म समारोह का कोई शो नहीं हैं। उस वक्त इंटरएक्शन वग़ैरह चलते हैं। पर वो लोग क्या करें – जो हर विमर्श में शामिल नहीं होना चाहते। दोपहर को कड़ी धूप में मेट्रो सिनेमा से लेकर क्रॉफर्ड मार्केट तक पैदल टहलना। और पुरानेज़माने की इमारतों को ध्यान से देखना,शहर की हलचल और भागदौड़ को देखना भी अपने आप में एक अनुभव है।
The Immigant
दिन में तीन बजे शेड्यूल थी फिल्म The immigrant. जेम्स ग्रे की इस फिल्म से उम्मीदें बहुत थीं। इसलिए हमने इसे देखना तय किया था। इसे इस साल कांस में ‘गोल्डन पाम’ के लिए नामांकिन किया गया था। फिर फिल्म की अदाकारा Marion Cotillard भी चुनाव की एक वजह थीं। उन्हें La Vie en Rose नामक फिल्म के लिए ऑस्कर मिल चुका है। ‘इमीग्रेन्ट’ का ट्रेलर यहां देखाजा सकता है। फिल्म का परिदृश्य है 1921 का अमेरिका। दो बहनें पोलैंड से अपने बेहतर भविष्य की तलाश में अमेरिका आती हैं। और बुरे हालात में फंस जाती हैं। लेकिन फिल्म निराश करती है। अफसोस हुआ कि इसकी बजाय हमने दूसरी फिल्म क्यों नहीं चुनी। फिल्म की सिनॉप्सिस यहां पढ़ी जा सकती है।
जादू
मुंबई फिल्म समारोह में लगभग शुरूआत से ही फिल्म-इंडिया-वर्ल्ड वाइड सेक्शन रहा है। एक ज़माने में नागेश कुकनूर की ‘हैदराबादी ब्लूज़’ इसी सेक्शन में दिखायी गयी थी। तब भारत में पहली बार इसका प्रदर्शन हुआ था। बाद में उसे
कमर्शियल रिलीज़ मिली। अमित गुप्ता की फिल्म ‘जादू’ के ज़रिये इस सेक्शन का आग़ाज हुआ। ‘जादू’ की शुरूआत में ही बताया जाता है कि ये फिल्म लंदन के मशहूर भारतीय रेस्त्रां ‘जादू’ को समर्पित है़। जो अब बंद हो गया है। ‘जादू’ दो शेफ-भाईयों की कहानी है। एक स्टाटर्स में माहिर है। दूसरा मेन कोर्स में। किसी बात पर दोनों के बीच बंटवारा हो गया है। और दोनों ने आमने-सामने अपने रेस्त्रां खोले हैं। दोनों के बीस होड़ और दुश्मनी जारी है। ग्राहक एक रेस्त्रां में स्टाटर्स खाते हैं और सामने वाले में मेन-कोर्स। एक भाई की बेटी शालिनी एक ब्रिटिश युवा मार्क से भारतीय विधि से शादी करना चाहती है। वो चाहती है कि खाना पिता और चाचा मिलकर बनाएं। दोनों के बीच एका होना मुश्किल है। इस बीच ‘किंग ऑफ करी’ प्रतियोगिता भी हो रही है। दोनों साथ में भाग लें तभी जीत सकते हैं। फिल्म के बारे में आप ज्यादा इस वेबसाइट से जान सकते हैं। मुंबई फिल्म समारोह में लगभग शुरूआत से ही फिल्म-इंडिया-वर्ल्ड वाइड सेक्शन रहा है। एक ज़माने में नागेश कुकनूर की ‘हैदराबादी ब्लूज़’ इसी सेक्शन में दिखायी गयी थी। तब भारत में पहली बार इसका प्रदर्शन हुआ था। बाद में उसे
‘जादू’ हल्की-फुल्की फिल्म है। और इसे देखा जा सकता है।
3 टिप्पणियां :
शुक्रिया युनुस जी, देख ना सका तो क्या, पता तो चला की वहा क्या चल रहा हैं.
हमने अपना प्रोग्राम ही इसीलिए बना रखा था की १९-२१ तक मुंबई में रहेंगे
और आपसे भी मुलाकात कर लेंगे, पर ये हो ना सका, अफशोस हैं.
मिलते हैं दिसम्बर में.
एक बार फिर शुक्रिया बताने के लिए, बताते रहिएगा
धन्यवाद!
श्याम जी
yunus g aisa laga mano hum wahin baithe ye sab dekh rahe hain thanxs yunus g hamen aage bhi intezar rahega
Thanks bhai. padhkar Mumbai na hone ki kami puri ho gayi
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