दीप्ती नवल की कविता “Smita and I”
आज अभिनेत्री स्मिता पाटील का जन्मदिन है।
मुझे नहीं पता कि वो आज जिंदा होतीं तो कितने बरस की हो जातीं। ना ही जानने की कोशिश भी की।
स्मिता की आवाज़...उनका बोलना...और उनकी ख़ामोशी...उनका बस कैमेरे की तरफ़ नज़र भर उठा लेना...सब कितनी कितनी परतों वाला होता था। शायद सागर सरहदी से विविध-भारती के लिए बातें कर रहा था--तब उन्होंने विकलता से बताया था कि स्मिता ना होतीं तो 'बाज़ार' बनती नहीं। उनका बहुत ज्यादा योगदान था फिल्म पूरी करवाने में। और फिर सागर साहब तो पहली बार निर्देशन की कमान संभाल रहे थे।
पढ़ाई के ज़माने में 'बाज़ार' का गाना 'करोगे याद तो हर बात याद आएगी' कैसेट में रिकॉर्ड करवाया था--बड़ी मशक्कत के बाद। उसमें कुछ संवाद भी आ गये थे। नसीर बोलते हैं--'अपने आप को सोने की चिडिया क्यों कह तुमने'। स्मिता--बता नहीं सकती'। नसीर--'अगर कहीं मैं मिल गया तो पहचान लोगी मुझे'। स्मिता--'सलाम ज़रूर करूंगी'। इतने से संवाद थे। पर इसमें स्मिता की आवाज़ का उतार-चढ़ाव...उनके किरदार की बेचैनी और पीड़ा.. सब छलक-छलक आयी थी। आज भी गाना कहीं से बजे तो ज़ेहन में स्मिता की आवाज़ ज़रूर गूंजती है--'सलाम ज़रूर करूंगी'।
अभिनेत्री दीप्ती नवल ने स्मिता पाटील पर एक कविता रची थी। कहीं से खोजकर उसे कॉपी-पेस्ट कर रहा हूं। साथ में दोनों अभिनेत्रियों की तस्वीर भी।
“SMITA AND I” : Deepti Naval
Always on the run
Chasing our dreams
We met each time
At baggage claims
VIP lounges
Check- in counters
Stood a while together
Among gaping crowds
Spoke, unspoken words
Yearning to share
Yet afraid, afraid
Of ourselves
All around us
People cheering, leering
And we, like spectacles
Amidst all the madness
Trying to live a moment
Of truth
A glance, a touch
A feeling to hold on to
And move on…
The last time we sat together
Waiting for a flight
I remember I’d said,
‘There must be another way
Of living this life!’
For a long time
You remained silent
Then,
Without blinking
Without turning
Said,
‘There isn’t’
Today
You are gone, and
I’m still running…
Still trying
To prove you wrong…………………
4 टिप्पणियां :
nice post-niharika,lko
धन्यवाद इस महत्त्वपूर्ण पोस्ट का...
आभार इस पोस्ट के लिए
आभार इस पोस्ट के लिए
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