Sunday, December 18, 2011

मुहब्‍बत की कहानी अब जली माचिस की तीली है: अलविदा अदम गोंडवी

मैं अदम गोंडवी को नहीं जानता था। वो कॉलेज के दिन थे। मध्‍यप्रदेश का छोटा-सा शहर छिंदवाड़ा। महाराष्‍ट्र की सरहद पर बसा।

कविता का नया-नया शौक़ लगा था। लघु पत्रिकाएं मंगवाना और पढ़ना शुरू हुआ था। नई-नई Adamgondavi ठिएबाज़ी शुरू हुई थी। और उन दिनों में मित्र अनिल करमेले से अदम गोंडवी का नाम सुना था। उसके बाद उन्‍हें कई जगह पढ़ा। और लगा कि सचमुच आम आदमी की ग़ज़लें लिखने वाले कवि-शायर हैं अदम गोंडवी। जनकवि अदम गोंडवी का असली नाम था रामनाथ सिंह। अदम गोंडवी को जितना भी पढ़ा, हमेशा यही लगा कि वो और दुष्‍यंत मिलकर हिंदी ग़ज़ल की बुनियाद रचते हैं। बल्कि बाज़-वक्‍त अदम गोंडवी दुष्‍यंत से ज्‍यादा धारदार और मारक लगे। 

काफी मन था कि कभी उन्‍हें आमने-सामने सुनने का मौक़ा मिले। पिछले कई दिनों से उनके अस्‍वस्‍थ होने के समाचार आ रहे थे। पर आज सुबह वो ख़बर आई, जिससे ये तय हो गया कि हम उस पीढ़ी के हैं, जिसने कभी अदम गोंडवी को नहीं सुना। नहीं देखा। सिर्फ पढ़ा और थोड़ा-थोड़ा जाना। जनकवि अदम गोंडवी को हमारी श्रद्धांजलि। 

कविता-कोश से उनकी कुछ ग़ज़लें

घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है।
बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।।
भटकती है हमारे गाँव में गूँगी भिखारन-सी।
सुबह से फरवरी बीमार पत्नी से भी पीली है।।
बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल की सूखी दरिया में।
मैं जब भी देखता हूँ आँख बच्चों की पनीली है।।
सुलगते जिस्म की गर्मी का फिर एहसास वो कैसे।
मोहब्बत की कहानी अब जली माचिस की तीली है।।

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये
छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये

 

काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में

आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे
अपने शाहे-वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे
तालिबे शोहरत हैं कैसे भी मिले मिलती रहे
आए दिन अख़बार में प्रतिभूति घोटाला रहे
एक जनसेवक को दुनिया में अदम क्या चाहिए
चार छ: चमचे रहें माइक रहे माला रहे

तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
उधर जम्हूरियत का ढोल पीते जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है ,नवाबी है
लगी है होड़ - सी देखो अमीरी औ गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है
तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है

कविता-कोश का लिंक।

1 Comentário:

राजेश उत्‍साही said...

सलाम है अदम गोंडवी को।
*
अपने ब्‍लाग गुल्‍लक पर भी मैंने कुछ कहा है अदम जी के बारे में। समय मिले तो देखें।

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