बंबई पहुंचे अफलातून बनारसी: ब्लॉगर-मिलन
तारीख तो याद नहीं है पर मई के आखिरी सप्ताह में किसी दिन मोबाइल-फोन की घंटी बजी तो नंबर वसई की ओर का नज़र आया । उधर से आवाज़ आई--'जी मैं अफलातून बोल रहा हूं ।' ज़ाहिर है कि अफ़लातून जी मुंबई आए चुके थे और इससे पहले उन्होंने बाक़ायदा 'मेल' पर सभी को सूचना भी दे दी थी । ताकि मिलने की गुंजाईश बनी रहे ।
अफलातून जी वैसे तो पिछले वर्ष जून में भी आए थे पर तब अपन इस शहर से थोड़े दिनों के लिए 'ऐमदावाद' कट लिए थे । इसलिए उनसे मुलाक़ात ना हो पाने का अफ़सोस बना रहा था । इस बार ऐसा नहीं होने देना था । ज़ाहिर है कि फौरन मुंबई के सभी साथियों को सूचित कर दिया गया । दिन और स्थान तय किया गया 'जावा ग्राइंड' । कथाकार सूरज जी का मेल आया कि वो अस्वस्थ हैं और मुंबई में ही हैं, ज़बर्दस्ती बिस्तर पर आराम करना पड़ रहा है । जावा-ग्राइंड से ज्यादा दूर नहीं है उनका घर । इसलिए हम चाहें तो उनके घर मिल सकते हैं, जावा जैसी तो नहीं पर घर की कॉफी ज़रूर मिलेगी । कई साथी सूरज जी से परिचित नहीं थे, फिर भी तय किया गया कि इसी बहाने मुलाक़ात भी होगी और महफिल भी जमेगी ।
हमारे 'लगभग-पड़ोसी' बोधिसत्व और निर्मल-आनंद अभय जी से इस महफिल की तैयारियों के दौरान रोज़ाना बातें हो ही रही थीं । शशि सिंह से भी तय किया गया था । बहरहाल...ये तय पाया गया कि चूंकि अफलातून और स्वाति जी अभय की बनाई लघु-फिल्म 'सरपत' देखना चाहते हैं इसलिए वे उनके घर पहुंचेंगे...'सरपत' तो हमें भी देखनी थी । इसलिए हमने भी अभय के घर पहुंचने का फैसला किया ।
शुक्रवार को तयशुदा समय से 'थोड़ी' (कृपया इसे 'काफ़ी' देर पढ़ें ) से जब अभय के घर पहुंचे तो वहां विकास, अफलातून-स्वाति जी और बोधिसत्व भी मौजूद थे । जो वहां ना आते-आते भी पहुंच गए थे । पहुंचते ही महफिल जम गई । गोरेगांव से शायद जोगेश्वरी तक हमारे हंसने की आवाज़ें सुनाई दी होंगी थोड़ी देर के लिए । बिना किसी देर के अभय ने फिल्म शुरू करने की पेशक़श की । अठारह मिनिट की ये फिल्म देखने के बाद हम सभी एकदम ख़ामोश थे । अभय ने प्रतिक्रिया चाही.....विकास ने अपनी राय दी और उस पर बातें भी हुईं । और फिर हम रवाना हो गये सूरज जी के घर की ओर । इस दौरान शशि अपने 'सबसे पहले' पहुंचने की सूचना दे चुके थे ।
सूरज जी का घर फिल्म-सिटी रोड पर रिद्धी-गार्डन में है । पहुंचते ही वहां सूरज जी को छड़ी के सहारे खड़े हुए देखकर थोड़ा धक्का लगा । दरअसल पिछले साल सूरज जी का एक भयंकर एक्सीडेन्ट हो गया था । बहरहाल सूरज जी के घर अज़दक प्रमोद सिंह, विमल कुमार (ठुमरी) और शशि तीनों पहले से ही मौजूद थे । शायद हमेशा की तरह बोधिसत्व को परिचय की जिम्मेदारी सौंपी गयी और उन्होंने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में सबका परिचय
करवाया । और फिर शुरू हुआ बातों का दौर । स्वाती जी ने जब बताया कि वो भौतिकी पढ़ाती हैं बी.एच.यू. में तो विकास को झटका लगा...इसलिए क्योंकि आई.आई.टी. से मुक्ति मिलने के बाद उसने सोचा भी नहीं था कि भौतिकी के किसी प्रोफेसर/प्रोफेसरा से आमना सामना भी होगा । बेचारा...। उसके बाद अपने वीडियो-कैमेरे में ऐसा बिज़ी हुआ कि उसने फिजिक्स का जिक्र भी नहीं
छेड़ा ।
आज हम सिर्फ सुनेंगे
सूरज जी ने बताया कि पिछले वर्ष के हादसे के बाद उनके पैर में एक रॉड लगाई गयी है । जिसके स्क्रू ढीले हो जाने की वजह से अब उसे दोबारा बदला गया है । और इसी वजह से उन्हें अवकाश लेकर घर पर बैठना पड़ा है । उन्होंने ये भी बताया कि 'दिल्ली मेड' रॉड डॉक्टर ने निकालकर उन्हें दे दी है । और वो उनके पास सुरक्षित
है । सूरज जी मज़े-मज़े में सुना रहे थे लेकिन हम सभी के मन में यही ख़्याल था कि सड़क-दुर्घटना का शिकार होना कितनी बड़ी त्रासदी होती है ।
आपकी दाढ़ी मेरी दाढ़ी से सफेद कैसे
बातें कुछ गंभीर हो चली थीं । पता नहीं कैसे अभय ने ये जिक्र छेड़ा कि मेरी दाढ़ी के बाल ज्यादा सफ़ेद हैं या फिर यूनुस के सिर के । शायद सूरज की की सफेद-शफ्फाफ दाढ़ी देखकर ये ख्याल आया होगा उनके मन में । और अचानक बोधिसत्व ने सवाल उछाल दिया कि दाढ़ी सबसे आखिर में आती है और सबसे पहले सफेद हो जाती है । इसका क्या कारण हो सकता है ।
स्वाति जी और मधु जी ने इसी बीच अपनी बातों की गुंजाईश निकाल ली । दोनों ही इस बात से सहमत थीं कि हमारा ब्लॉगिंग से दूर रहना ही अच्छा है । स्वाति जी ने ये भी कहा कि मैंने अब ब्लॉगिंग का बुरा मानना छोड़ दिया है । मधु जी ने बताया कि उनके पतिदेव ही नहीं बल्कि बेटे भी इस मर्ज़ से ग्रस्त हैं ।
(मधु जी और स्वाति जी..बाज़ (नहीं) आए इन ब्लॉगरों से )
इस दौरान बातों का कारवां कई ऊबड़-खाबड़ रास्तों से होकर गुज़रा । चूंकि हमें 'जावा-ग्राइंड' में मिलना था इसलिए जब उसका जिक्र निकला तो शशि ने कहा कि हम लोग तो 'जावा' वालों से 'फीस' लेने की सोच रहे हैं । भई बाहर से मुंबई आने वाले ब्लॉगरों से मिलने के ज्यादातर आयोजन 'जावा' में होते रहे हैं । फुरसतिया के हाथों 'केक' की 'हत्या' का गवाह रह चुका है 'जावा' । फिर शायद शशि ने जिक्र किया कि गूगल पर 'जावा ग्राइंड' सर्च करने से दो ही पोस्टें सामने आती हैं, दोनों ब्लॉगर-मिलन टाइप हैं ( हालांकि बाद में हमने सर्च किया तो वही पोस्ट आई जिसे हम ऊपर लिंकित कर चुके हैं ) फिर गूगल-सर्च की बातें होने लगीं । मुद्दा ये उठा कि हिंदी में सर्च कितनी उपयोगी साबित हो रही है और कितने लोग हिंदी में सर्च करते हैं ।
सूरज जी ने बताया कि अपने नाम पर गूगल-सर्च करने पर उन्हें तकरीबन ग्यारह हज़ार लिंक मिले । विकास ने कहा कि आजकल ट्रांसलिट्रेशन की सुविधा को आप बतौर 'बुकमार्कलेट' जोड़ सकते हैं और इस तरह दुनिया में ऑनलाइन हिंदी लिखने और हिंदी सर्च करने वालों की तादाद बढ़ सकती है । सूरज जी ने बताया कि उन्होंने ही इन दिनों में सैकड़ों लोगों को कंप्यूटर पर हिंदी में काम करना सिखाया है । मेरा सुझाव था कि ये सच है कि हिंदी में चीज़ें सर्च की जा सकती हैं पर जब 'जावा ग्राइंड' जैसे शब्द आएं तो उन्हें रोमन में भी लिख देना ठीक रहता है । इससे उनकी 'सर्च वेल्यू' बढ़ जाती है । ब्लॉग-पोस्ट का पर्मालिंक अंग्रेज़ी में रखा जाये तो भी अच्छा रहता है । रोमन में खोजने वालों तक भी चीज़ें पहुंच सकती हैं ।
बोधि, सूरज जी, अभय, अफलातून और विमल
इस दौरान बातें 'यहां-वहां' भी घूमीं । लेकिन अफलातून जी ने फिर-से बातों को ब्लॉगिंग पर लाने के लिए सवाल उछाला कि अंग्रेज़ी ब्लॉगों में लोग एग्रीगेटर से ब्लॉगों पर नहीं जाते । 'रीडर' पर पढ़ते हैं या 'सर्च' करके पहुंचते हैं । अभय ने बताया कि वो भी 'रीडर' पर ही पढ़ते हैं । अफलातून का सवाल ये था कि 'हिंदी-ब्लॉग' पर कब तक 'एग्रीगेटरों' पर निर्भर रहेंगे । उन्होंने मैथिली जी की राय भी बताई कि हिंदी में ब्लॉगों की बढ़ती हुई तादाद से लगता है कि जल्दी ही ब्लॉगों की 'कम्यूनिटीज़' बन जायेंगी । और अपनी पसंद की चीज़ें पढ़ने के लिए लोग इन 'ब्लॉग कम्यूनिटिज़' का सहारा लेंगे । अभय का कहना था कि इसमें कोई बुराई भी नहीं है । फिर लगभग सभी इस बात से सहमत थे कि ब्लॉगिंग में टिप्पणियां शादी में 'नेग' देने जैसी होती हैं (शायद ये ज्ञान जी की किसी पोस्ट का जुमला है ) यानी मैं आपको टिप्पणी दूंगा, आप मुझे टिप्पणी दीजिए । ये भी कहा गया कि ब्लॉग की लोकप्रियता या उसके पाठकों का अंदाज़ा टिप्पणियों से नहीं लगाया जा सकता । क्योंकि अधिकतर लोग टिप्पणी या तो हिंदी लिखने की दिक्कत से, वर्ड वेरिफिकेशन के पचड़े से या फिर समय और उत्साह के अभाव में नहीं करते ।
ये बंबई वाले कितना बोलते हैं भाई
ये बात भी चली कि अब इंटरनेट पर हिंदी की सामग्री बढ़ रही है । मैंने कहा कि इंटरनेट पर हिंदी की सामग्री बढ़ाने में हिंदी साहित्यकारों या हिंदी भाषियों की बजाय 'टेक्नोक्रेटों' का योगदान ज्यादा रहा है । 'विकीपीडिया' पर लगभग हर विषय पर आपको हिंदी में जानकारी मिल जाती है पर विकास का कहना था कि आम व्यक्ति इसलिए उस पर सामग्री नहीं डाल पाते क्योंकि उसका 'इंटरफेस' क्लिष्ट है । सूरज प्रकाश ने बताया कि उनके द्वारा अनूदित
में । विकास का कहना था कि पत्रिकाओं में छपी चीज़ें बाद में खोजने पर भी नहीं मिलतीं पर इंटरनेट पर छपी सामग्री शाश्वत हो जाती है । उसे खोज जा सकता है । उसकी पहुंच भी सारी दुनिया तक होती है ।
अब यहां से कैसे उठूं
बातें चल ही रहीं थीं कि इस बीच अनिल रघुराज का आगमन
हुआ । दफ्तर की व्यस्तताओं के रहते उन्होंने पहले ही बता दिया था कि वो इसी समय पहुंचेंगे । अनिल जी के आने के बाद 'आर्थिक-मंदी' और 'नई सरकार' की नीतियों पर भी कुछ बातें हुईं । ये शिकायत भी की गई कि अनिल जी अपने ब्लॉग पर लिख नहीं रहे हैं । बोधिसत्व और मुझे अपनी-अपनी वजहों से जल्दी घर पहुंचना था इसलिए इस 'बतरस' में अपार-आनंद आते हुए भी हमें उठना पड़ गया । एकदम धड़ाक से उठकर हम भाग निकले । अगले दिन विकास ने बताया कि ये महफिल काफी देर तक चलती रही । हमारी अनुपस्थिति में क्या हुआ--ये आप विकास से पूछ सकते हैं ।
---हमने आपको दो तस्वीरें नहीं दिखाईं । एक हमारी...जो किसी ने खींची ही नहीं ।
दूसरी ये रही । उस जलपान की..जो हमने छका ।
---इस दौरान अज़दक लगभग ख़ामोशी इख्तियार किए रहे । वे तभी बोले जब उनकी एक पोस्ट की मौखिक-प्रशंसा स्वाति जी ने की ।
---ये आपको क्यूं बताएं कि अभय के घर जलेबियां हमारी प्रतीक्षा कर रही थीं । और ब्लैक-टी भी ।
---पता नहीं कैसे बातें 'डिबड़चे यानी खब्बू यानी लेफ्टी' लोगों पर केंद्रित हो गयीं । और पता चला कि सूरज जी और अभय दोनों ही 'लेफ्टी' हैं । हमारी जिज्ञासाओं का पूरा निवारण इन्होंने किया । हमें विविध-भारती के लिए एक नये कार्यक्रम का मसाला मिल गया ।
---अनीता जी इस महफिल में भौगोलिक-दूरियों की वजह से नहीं आ सकीं । उन्होंने शायद फोन पर अफलातून जी से बातें कर लीं
इन सब बातों से इतर आज मेरे छोटे भाई यूसुफ़ का भी जन्मदिन है । आजकल वो मुंबई में ही है 'तरंग' के ज़रिए उसे भी बधाईयां ।
26 टिप्पणियां :
पहले तो यूसुफ़ भाई को बधाई. सुख-समृद्धी पूर्ण दीर्घायू जीवन हो.
फोटो देख कर लगता है अजदक के बाल ज्यादा सफेद हो गए है, भाई कुछ लगाते क्यों नहीं? :)
एक मजेदार शानदार मुलाकात हुई उसकी बधाई. अच्छा विवरण.
युसूफ भाई को जनम दिन के ढेरों मुबारकबाद...
आपके इस ब्लोगर मिलन से अगर किसी को धक्का लगा है तो वो हम हैं...हम चूँकि न मुंबई में हैं और ना ही पुणे में तो हमें इस लायक नहीं समझा जाता की ब्लोगर सम्मलेन में बुलाया जाय...आपलोगों से जो मिलने का लुत्फ़ है वो लगता है हम कभी नहीं उठा पाएंगे...सूरज जी यूँ तो हमारे अभिन्न मित्रों की श्रेणी में आते हैं...खाते और खिलाते हैं लेकिन ऐसे मौके पर हमें भूल जाते हैं... पहली शिकायत तो हमें उन्हीं से है...जब दोस्त दोस्त ना रहा तो बाकियों की क्या बात करें...:))
रिपोर्ट पढ़ी अच्छी लगी तभी तो उसमें शिरकत ना कर पाने का दुःख साल रहा है...
नीरज
युसूफ़ जी को जन्म दिन की ढेर सारी शुभकामनाएं, आशा है बहुत जल्द ब्लोगिंग की बिमारी से ग्रस्त हो जाएगें। उनके बारे में कुछ और बताएं।
अरे पहले बताया होता कि अभय जी की फ़िल्म देखने का भी प्रोग्राम है…॥
वाकई अफ़लातून जी से और आप सब से मिलने का एक अवसर खोने का हमें भी अफ़सोस है।
हम आप की रिपोर्ट में ही जलेबी की मिठास पा संतुष्ट हुए
क्या केने क्या केने
बहुत अच्छे बहुत अच्छे! पर इस पोस्ट के बाद बरनॉल याद आया।
यूसुफ़ जी को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई। भेंट वृतांत बढिया रहा। जलेबियाँ भी और अभय की फ़िल्म भी हमें भी चहिए।
घुघूती बासूती
yusuf jee ko janmdiwas par shubhkaamnaayein..kamaal kaa milan raha aur usse bhee kamaal rahi uskee charchaa...chitron ne ise sajeev bana diya...haan dadhee ke baal to ajdak jee ke hee jyada safed hain...
मिलना-मिलाना-बतियाना और मिलने-मिलाने के वृत्तांत हमेशा मन को भाते हैं . बहुत अच्छा लगा कि अफ़लातून-स्वाति जी के मुंबई पहुंचने पर यह महफ़िल जमी,वह भी सूरज जी के घर . सूरज जी ऐसे ही एक दिन अचानक कोलकाता हमारे घर आ पहुंचे थे .
ऐसा अब भी होता है यह सोच-सोच कर मुदित होता रहता हूं .
यूसुफ़ को सालगिरह मुबारक हो !
यूसुफ़ भाई को बधाई.
मस्त लगा मिलन समाचार और सब लोगों को फोटो में देख कुछ पुरानी यादें ताजा हो आईं.
बंबई में होता तो इसमें कहीं मेरी भी फोटो दिखती। खैर, चलिए अब दिल्ली के किसी ब्लॉगर मिलन का इंतजार करता हूं।
Yusuf ko janmdin ki badhai. Behtareen raha aapka vivran
ek saans me pad gya, lga tumahari aawaz mein sun rha hoon. bliging se chiththi ka sukh ldta hai lot aaya hai. bhut khoob, bhai ko mubarakbad aur duaayein
आपके छोटे भाई साहब युसुफ जी को
सालगिरह मुबारक - देर से ही :)
ब्लोगर भेँट बढिया दर्शाई आपने -
एक शिकायत है,
आप हिन्दी ब्लोग मँडली को,
नन्हे राज कुमार से कब मिलवायेँगे ?
- लावण्या
यूसुफ़ जी को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई।
बढिया भेंट वृतांत
yusuf saheb ko janmdin ki badhaiyan.
shukriya is vivran k liye.
Dabidche hum bhi hain,Yunusbhai.Ittefakan hum teen dabidche uss din line se virajman thhey.
Yusuf ko salgirah par sneh aur mubarakbad.
युसूफ भाई को जनम दिन के ढेरों मुबारकबाद...
भाई मैं तो आपकी उस मिठाई काजू कतली के पीछे-पीछे गया था सूरज जी के घर, लेकिन वहाँ पहुँच कर उसका क्या हुआ पता नहीं,
युनूस जी
इतनी लम्बी रिपोर्ट देख कर सुख मिला। घर बैठे बैठै ये सुख मेरे लिए बहुत बड़ा है। हां नीरज जी को बुलाने का मन था लेकिन पुणे मुंबई के बीच शाम के ट्रैफिक की हालत की सोच कर उन्हें नबुलवा पाया बेशक वे जरूर आते। दो एक बातें स्पष्ट कर दूं- खब्बू मैं नहीं मेरे पिता, बड़े भाई और छोआ बेटा हैं और 13 अगस्त को मेरे ब्लाग kathaakar.blogspot.com पर इस पर मेरी एक मजेेदार पोस्ट देखी जा सकती है।
दूसरी बात मेरे नाम से इंटरनेट पर सर्च पर लगभग 7 लाख एंट्रीज मिलती हैं। सबके खाते इतने ही फले फूले हैं
हां काजू कतली तो रसोई में ही रह गयी । उसके लिए आभार किसे देना है।
जरा बताना
आप सब आये ,अच्छा लगा। आते रहिये मेरे ठीक हो जाने के बाद भी।
सूरज
सूरज जी शुक्रिया । ग़लती सुधारने के लिए भी । और बांये हाथ वालों के बारे में पोस्ट का पता देने के लिए भी । उस दिन की बातचीत से तो यही लगा कि आप भी खब्बू हैं । रही बात मिठाई की तो वो मेरे पुत्र-प्राप्ति की थी । मज़ा आया इस महफिल में । महफिलें जारी रहेंगी ।
चलिये बढ़िया है कि हिन्दी ब्लौग जगत में हम किसी कंप्यूटर के प्रोफेसर को नहीं जानते हैं.. नहीं तो हमे भी कैमरा लेकर घूमना पड़ेगा..
मस्त लिखें हैं आप इस पोस्ट को युनुस जी. :)
ब्लौगर मण्डली का मिलन और ब्लौगिंग पर चर्चा से अवगत होना अच्छा लगा. युसूफ जी को मेरी ओर से भी शुभकामनाएं.
आलेख अच्छा है यूनुस | विशेषकर इन पंक्तियों से हमारी भी सहमति है :
ब्लॉगिंग में टिप्पणियां शादी में 'नेग' देने जैसी होती हैं (शायद ये ज्ञान जी की किसी पोस्ट का जुमला है ) यानी मैं आपको टिप्पणी दूंगा, आप मुझे टिप्पणी दीजिए । ये भी कहा गया कि ब्लॉग की लोकप्रियता या उसके पाठकों का अंदाज़ा टिप्पणियों से नहीं लगाया जा सकता । क्योंकि अधिकतर लोग टिप्पणी या तो हिंदी लिखने की दिक्कत से, वर्ड वेरिफिकेशन के पचड़े से या फिर समय और उत्साह के अभाव में नहीं करते ।
Hope Yusuf had a happy Birthday.
रोचक, ज्ञानवर्द्धक पोस्ट। यूसुफ जी को बहुत बहुत शुभकामनाएं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Hello from Greece!
युसुफ़ भाई को जन्मदिन की शुभकामनायें.
इस छोटी सी मगर आत्मीय ब्लोगर मीट की वर्णन सुख दे गया. वसुधैव कुटुम्बकम की तरह ब्लोगर्स का भी एक कुटुम्ब है.
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