Thursday, February 19, 2009

कुछ तस्‍वीरें: कुछ बातें--बंबई में गांव के अचार जैसा टिंग-टैंग दिन ।।

गले में कुनैन की तरह ठुंसा हुआ एक दिन । धीरे-धीरे अपना कड़वापन घोलता हुआ । इलाहाबाद के रास्‍ते पर लेट हो चुकी ट्रेन जैसा भटका-अटका-सा दिन । एक धीमी सज़ा बन चुका दिन । जुलाई के बंबईया मौसम-सा गरम-नरम और नम दिन । वर्षों के बक्‍सों में अंटे, घुटे-घुटे, रीते-रीते दिनों में से एक...पिटा-पिटा सा दिन ।

क्‍यों नहीं है ये, बच्‍चों की चरखी की तरह रंगीन--चमका-चमका सा दिन ।

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सातवें माले की बालकनी पर लापरवाही-से सूखते कपड़ों की तरह निचुड़ा निचुड़ा-सा दिन । छोटे-तंग गमलों में ज़बर्दस्‍ती उगाए जा रहे पौधों जैसा बोझिल-बोझिल घंटे । बुख़ार से तपते माथे पर बर्फी़ले पानी जैसे टप-टप-टपकते ठंडे-बेरहम लम्‍हे ।

उदासी के गालों पर पड़े अबीर के छींटे जैसा दिन ।

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डेड-लाईन्‍स की ऐड़ पर भागता-हांफता सा दिन । कोने के हारमोनियम पर पड़े पुराने-बासी अख़बारों वाला दिन । इमारतों के वॉचमैनों की तरह ऊबा-अकड़ा-ढीठ दिन । हर चीज़ के लिए लगी क़तारों वाला मजबूर-लाचार-हताश दिन ।

 

बंबई में, गांव के अचार-जैसा टिंग-टैंग-सा दिन ।

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( सभी तस्‍वीरों का छायांकन: यूनुस ख़ान, 16 जनवरी 2009 । बंबई ) 

8 टिप्‍पणियां :

Pratyaksha said...

ओह ! ऐसे कैसे दिन ?

Gyan Dutt Pandey said...

ओह, हांफता हुआ मन यह रंग-बिरंगी चरखी बनना चाहता है।
है कोई जुगत?

ghughutibasuti said...

मुम्बई बस आते आते रह गए अन्यथा गाँव में ही बने क्या अपने बगीचे के आमों व पास में ही लगे लसूड़े व कटहल का भी अचार खिला देते। परन्तु हो न सका।
रंग बिरंगी चर्खियाँ बेहद मनमोहक लग रही हैं।
घुघूती बासूती

ghughutibasuti said...

मुम्बई बस आते आते रह गए अन्यथा गाँव में ही बने क्या अपने बगीचे के आमों व पास में ही लगे लसूड़े व कटहल का भी अचार खिला देते। परन्तु हो न सका।
रंग बिरंगी चर्खियाँ बेहद मनमोहक लग रही हैं।
घुघूती बासूती

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप के इस सुंदर गद्य काव्य को पढ़ कर मुझे अपने एक पुराने मित्र राम भाई की कविता 'बेरोजगार दिन' याद आ गई।

सुशील छौक्कर said...

ये चरखियाँ दिल को भा रही है। बचपन में खूब देखती थी। अद्भुत।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

"चप्पा चप्पा चरखा चले "
सुँदर तस्वीरेँ
और मन तो गोल गोल घूम रहा है !! :)
स्नेह सहित
- लावण्या

Anonymous said...

हम निहायत हैं परेशां(आपके)दिल के इस अन्दाज़ से
मुस्कुराए थे अभी और फिर उदासी छा गयी

- वही

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