आभा की तहरी ।
बोधिसत्व और आभा हमारे लगभग-पड़ोसी ही हैं । लगभग पड़ोसी का मतलब ये है कि ये लोग इसी इमारत या इसी कॉलोनी में नहीं रहते । लेकिन हमारे घरों की दूरी लगभग पांच मिनिट है । लेकिन मुंबई शहर का कुछ मिज़ाज ऐसा है कि मुलाक़ातें यदा-कदा ही होती हैं । पर जब भी होती हैं तो बेहद आत्मीय और मुदित कर देने वाली होती है । पिछले बरस विविध-भारती के एक कार्यक्रम 'प्यार हुआ इक़रार हुआ' में ये जोड़ा प्रतिभागी के रूप में शामिल था और वहां 'बोधि' के हास्य-बोध का ट्रेलर ही नहीं बल्कि पूरी की पूरी फिल्म देखने को मिली थी ।
बहरहाल..सीधे मुद्दे पर आ जाते हैं । पिछले दिनों आभा ने अपने ब्लॉग 'अपना घर' पर जाड़े का जिक्र किया तो हमें भी अपने पुराने 'रज़ाईया' 'मूंगफलिया' और 'कंबलिया' दिन याद आ गये । पर आभा की इस पोस्ट में जहां जिक्र था 'तहरी' और 'खिचड़ी' का, वहां हम बुरी तरह 'नॉस्टेलजिया' गये । क्या करें...हम भारतीय-प्राणियों को 'नॉस्टेलजिक' हो जाने की बुरी आदत है...रोग है...असाध्य और दुसाध्य है । हमने सोचा, चलो एकाध दिन में ये 'नॉस्टेलजियाना' कम हो जायेगा और 'मरीज़ का हाल अच्छा' हो जायेगा । पर ये क्या.....लावण्या दीदी ने ये टिप्पणी कर डाली आभा की उसी पोस्ट पर.....
तहरी .....ये कौन सा व्यँजन है आभा जी ? बता दीजिये -
पहली दफे नाम सुन रही हूँ :) बम्बई की सर्दी तो ऐसी ही होतीँ हैँ -स्वेटर भी शरमा जाये ~~स स्नेह,
लीजिये दिक्कत खड़ी हो गई । आभा ने ये पोस्ट ठेल डाली । जिसका शीर्षक था 'ये तहरी खिचड़ी की फैशनेबल बहन है' । ज़ाहिर है कि अब हमारा 'नॉस्टेलजियाना' दूसरी बीमारी में बदल गया था जिसका नाम है 'तहरियाना' । इसलिए हमने धड़ाक से ये टिप्पणी ठेल डाली--
आभा जी चूंकि आप लगभग-पड़ोसन ही हैं--इसलिए हक़ बनता है ये पूछने का--कि 'आपके हाथ की बनी' खिचड़ी की ये फैशनेबल बहन... कब मिल रही है । हम डेढ़ टांग पर तैयार हैं । कब आएं ।
और आभा का मुस्तैद जवाब आया कि 'खिचड़ी' यानी मकर-संक्रांति पर आईये । पत्नी ममता को भी साथ लाईये । 'मकर-संक्रांति' के दिन जब पूरी मुंबई 'तिळ गुळ घ्या, गोळ गोळ बोला' कर रही थी और सड़कों से लेकर हाईवे तक 'वो काटा' 'वो लूटा' चल रहा था... हम किसी तरह मांझे और पतंग-लूटव्वल से बचते-बचाते किसी अनिवार्य काम से बांद्रा पहुंचे ही थे कि आभा की ओर से 'ट्रिन-ट्रिन' हुई । 'आप तो खिचड़ी पर आने वाले थे भई' । हम हड़बड़ा गये..क्योंकि ये बात दिमाग़ से उतर ही गई थी । हमने स्थिति को संभाला और कहा 'थे नहीं हैं' अभी आते हैं । बांद्रा से फुर्र हुए और ममता जी को घर से लेते हुए हम ये पहुंच गए आभा के घर 'तहरियाने' के लिए ।
आभा ने बढिया तहरी बना रखी थी । लेकिन जब हमें पता चला कि वे आज 'निर्जला व्रत' हैं, तो बड़ा अफ़सोस हुआ कि हम तो मज़े से 'तहरिया' रहे हैं और जिसने ये सब खेल रचाया....उसे चंद्रमा के निकलने का इंतज़ार करना होगा । बहरहाल बोधिसत्व ने मुस्तैदी से हमारे संकोच और अपराध-बोध को समाप्त किया और वे भी 'तहरियाने' में शामिल हो गए ।
तो इस तरह से हम सभी का 'तहरियाना' या 'खिचडियाना' शुरू हो गया । ज़रा देखिए ममता जी, मुझे और बोधि को भोजन परसकर आभा जी कैसा महसूस कर रही हैं । साथ में हैं 'भानी' जी...जो हमें सबकी 'नानी जी' ज्यादा लगती हैं ।
भानी जी और ममता जी 'फ्रैन्ड' हैं । इसलिए ममता ने पहुंचते ही 'भानी' जी से बतियाना शुरू कर दिया । पूछा कि यहां कितनी सहेलियां हैं तुम्हारी । तो भानी जी नानी जी का जवाब था--'एक भी नहीं' । ममता जी को माजरा समझ नहीं आया, हैरत हुई, इसलिए सवाल को घुमा कर पूछा । जैसा रेडियो वाले हमेशा करते हैं । एक सवाल का सही जवाब ना मिलने पर घुमा-फिराकर उस सवाल को फिर से दाग़ देते हैं । इस बार सवाल था--तुम्हारी कितनी फ्रैन्ड हैं भानी । भानी का जवाब था, बहुत सारी हैं । नाम पूछने पर बताया पलक दीदी, अलानी दीदी, फलानी दीदी । ( यानी सारी फ्रैन्ड उम्र में बड़ी हैं ) हम सभी बहुत हंसे कि सहेलियां एक भी नहीं हैं, पर फ्रैन्ड बहुत सारी हैं । ऐसी हैं ये भानी जी...सबकी हैं नानी जी ।
आभा की तहरी खाकर बड़ा मज़ा आया । हमने केवल तहरी नहीं खाई बल्कि साथ में 'चंदू हलवाई' की तिल की एक बर्फी़नुमा मिठाई और उड़द की दाल का हलवा भी 'सटका' लिया । ये अलग बात है कि इसकी तस्वीर हम नहीं ले पाए । हां भई हमारी ग़लती है..पर चूक गए तो चूक गए । लेकिन 'आभा की तहरी' की तस्वीर लेने में हमने कोई चूक नहीं की ।
अब आप ये सोचने की ग़लती मत कीजिए कि हम बोधिसत्व के घर गए और खा-पीकर सटक लिये । बोधिसत्व से हमारी, आभा से ममता की और हम सबकी आपस में ख़ूब गप्पें हुईं । ब्लॉगिंग से लेकर मौसम, इलाहाबाद, टी.वी.और संक्रांति कितने मुद्दों पर हम बतिया लिए...अब सब बताएं तो कैसे । लेकिन इस शाम को यादगार बनाया बोधिसत्व ने । जो आजकल प्रेमचंद की जीवनियां पढ़ रहे हैं । तीन जीवनियां । एक तो है प्रेमचंद के पुत्र अमृत राय की 'कलम का सिपाही' । दूसरी मदन गोपाल जी की लिखी 'प्रेमचंद की आत्मकथा' और तीसरी प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी की लिखी पुस्तक 'प्रेमचंद घर में' ।
बोधि ने इनके कुछ दिलचस्प अंश पढ़कर सुनाए और प्रेमचंद के जीवन से जुड़े कुछ अनछुए तथ्यों पर टॉर्च डाली । इस पूरे प्रसंग में बड़ा आनंद आया । ज़रा बताईये एक अच्छे दिन में आपको क्या चाहिए । अच्छा मेल-जोल, अच्छा भोजन, अच्छी गप्पें, हंसाना हंसाना, पढ़ना लिखना...और क्या । ये सच है कि हम गंगा नहीं नहाए, हमने पतंग हीं उड़ाई, पेंच नहीं लड़ाए, मांझा नहीं लूटा...लेकिन क्या संक्रात का मतलब बस इतना ही है । भई 'आभा की तहरी' ने तो हमारी संक्रात मनवा दी । आपकी संक्रात कैसी रही...बताईये ।
22 टिप्पणियां :
आप की सँकरात अच्छी मनी, बधाई! हम तो घर ही थे। इसलिए बहुत खूब मनाई। बस बच्चे न थे तो हंगामा नहीं हुआ।
॥'तहरी' और 'खिचड़ी' का, वहां हम बुरी तरह 'नॉस्टेलजिया' गये । क्या करें...हम भारतीय-प्राणियों को 'नॉस्टेलजिक' हो जाने की बुरी आदत है...रोग है...असाध्य और दुसाध्य है आप सच कह रहें हैं ...तहरी उत्तर भारतीय सहित पूरे भारत मैं प्रचलित है ...महाराष्ट्र मैं ये आमठी और कायस्थों मैं मूंग दाल की और अन्य प्रांत मैं भी बनाई जाती ...दाल का एक स्वरुप...कढी की तरह ..इनदिनों हम इसे मटर या हरे चनों की भी बनाते हैं ....आज इसे बनाना पढेगा ...
तहरी उत्तर भारतीय व्यंजन है और जाडे के दिनों में चावल की जगह यही लोगों के द्वारा अधिक पसंद किया जाता है। दक्षिण भारत में जो व्यंजन बिरयानी कहलाता है , वह तहरी ही तो नहीं ?
हमारे यहां तो मुम्बई से छोटा बेटा और बहू आ गये. घर के सारे सदस्य मजे से मना रहे है. आप का विवरण बहुत अच्छा लगा.
और भी अच्छा लगे यदि बोधिसत्व जी अपने ब्लाग पर मदन गोपाल जी की लिखी 'प्रेमचंद की आत्मकथा' और प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी की लिखी पुस्तक 'प्रेमचंद घर में' के बारे में हमें भी बतायें.
जे भई न बड्डे असल संक्रंति. हम तो बस पतंगई उठाते रहे और घर में ही खिचड़ी खा लई.
अब आभा भाभी इत्ती बार बुला चुकी है कि जब तक हम फाइनल प्रोग्राम न बना लें, हमारी तो हिम्मत ही नहीं हो रई फोन करने की भी, तहरी की तो खैर क्या कहें.
तहरी के साथ पूडी का कॉम्बिनेशन तो पहली बार देख रहे हैं. मूँह में पानी आ गया भई.
उनके हाथ का हलुआ तो अभी भी ताजा स्वाद है मूँह में.
खिचडी के दिन हम लोगों के घर मे तहरी ही बनती है ।
यदि ये विनय पत्रिका वाले कवि बोधिसत्व हैं तो पहचान में क्यों नहीं आ रहे.....आदमी अचानक कैसे इतना बदल सकता है। अच्छा वर्णन है। अच्छा लिखा है आपने
मदन कुमार
हाजी पुर
वाह भाई दावत उड़ाई आपने और हमें फोटो दिखा दिखा ललचा रहे हैं। अच्छा लगा ये विवरण !
भानी अपनी फोटो देख कर खुश हो रही हैं, भानी नानी जान कर भी मस्त हैं.बढ़िया रहा विवरण...
tahari to hame bhi pasand hai, ghi'chatni,matar,gobhi ke saath
वाह, पोस्ट पढ़ रहा हूं। पत्नी जी डिनर का हांका लगा रही हैं। और डिनर में है - तहरी!
सबसे पहले भानी रानी बिटीया को बहुत स्नेहाशिष -
और सौ.आभा जी व सौ. ममता जी को देख प्रसन्नता हुई ..
आप व बोधि भाई भी खुश दीख रहे हो और क्योँ ना हो ?
"तहरी" स्वाथ्यवर्धक लगी ..
ऐसे ही मने सँक्रात
तब तो मजे ही मजे !! :)
शुक्रिया युनूस भाई ..
बढिया पोस्ट है !
स -स्नेह,
- लावण्या
अच्छा तो आप हमारे इलाक़े में आते हैं और इतना सब मज़ा करते हैं पर हमें पता नहीं चला...बहुतै नाइंसाफ़ी है....आभा जी की तहरी के बारे में आपका व्याख्यान अनूठा है साथी। यही सोच रहा हूँ मेरा नम्बर कब आयेगा..
हमें तो तहरी से ज्यादा अच्छा भानी को देखकर लग रहा है.. बहुत दिनों बाद इसकी खबर मिली है.. नहीं तो आभा जी या बोधि जी कोई भी आजकल उसके बारे नहीं बता रहे थे.. उस दिन आभा जी से मैंने पूछ तो लिया कि तहरी कैसे बनाते हैं मगर बाद में पता चला कि आमतौर पर हम जो घर में खिचड़ी बनाते हैं वो तहरी ही होता है.. हर दूसरे दिन खाते हैं और जिंदा रहने का ऊपाय करते हैं.. :)
यह संक्रान्ति पर 'तहरियाना' व मेल मिलाप बढ़िया रहा। फोटो बढ़िया हैं। परन्तु भानी के सामने कोई टिक नहीं पा रहा।
घुघूती बासूती
बढ़िया तहरियाया आपने, अपन ने तस्वीर देखकर ही मन और पेट भर लिया साथ में आपके विवरण ने संतुष्ट कर दिया,
भानी जी नानी जी मस्त रहें।
ये बोधिसत्व जी मूंछ कटा कर हमारी जमात में क्यों आ गए, मजा नई आ रहा देखने में ;)
भाई संजीत अभी तो मैं कुल 22 साल का ही हूँ....तुम चाहो तो मेरी जमात में आ जाओ..दिल से देखो प्यारे अच्छा लगूँगा।
Nice Post
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60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!
अरे! इसे ही तहरी कहते हैं क्या? यह तो दक्षिण का सुप्रसिद्ध व्यंजन बीसेभेली (बीस से ज्यादा चीजों को भेलकर बनाया जाने वाला)भात है।
यह तो सचमुच बड़ा ही स्वादिष्ट होता है।
यम्म यम!!
abhishek.letters@gmail.com
एक बात बताइए की जो आप्को सिर्फ़ विविध भारती पे सुनते हैं तो वो कैसे आपके ब्लौगो पे पहूच सकते है मेरी आपसे गुजारिश है की एक दिन युथ एक्स्प्रेस मे ब्लौगो की चर्चा करे और अपने ब्लौग का पता भी बता दे मै तो बड़ी मुश्किल से आपके ब्लौग पे पहुच पाया।
बुरा नही मानिएगा तो एक बात बताउ ममता जी के ब्लौग पर तो आपके सभी ब्लौग के लिन्क तो दिखते है पर आपके ब्लौग मे उनका लिन्क क्यो नही!!! एक बर फिर गुजारिश है की उनका लिन्क भी अपने ब्लौग पर जोड़े।
अभिषेक अगर आप ऊपर लिंक बार देखें तो रेडियोसखी के ब्लॉग का लिंक एकदम साफ दिख रहा है ।
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