अजमेर यात्रा की तस्वीरें-दूसरा भाग । सूफी परंपरा का इतिहास और ख्वाजा ग़रीब नवाज़ की कहानी ।
जैसा कि पिछली पोस्ट में अर्ज़ किया था कि अचानक अप्रत्याशित रूप से हम अजमेर हो आए । चूंकि आग्रह है इसलिए इस बार तफ़सील से सूफ़ी मत और ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के बारे में बताने की 'कोशिश' की जा रही है ।
दक्षिण-एशिया में सूफ़ी परंपरा की चार शाखाएं प्रचलित हैं ।
चिश्तिया सिलसिला- जिसकी शुरूआत पश्चिमी अफ़ग़ानिस्तान के हेरात या अरिया शहर में हुई थी । इस सिलसिले के संस्थापक थे 'अबू इशाक समी' । इस सिलसिले के सबसे मशहूर संत हुए हैं ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती, जो तेरहवीं शताब्दी में हुए थे । इस सिलसिले के दूसरे महत्त्वपूर्ण संत हैं हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया (दिल्ली), फ़रीदुद्दीन गंजशकर (पाकपट्टन, पाकिस्तान), कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी (दिल्ली) वग़ैरह ।
क़ादरिया सिलसिला- ये सूफी परंपरा का सबसे पुराना सिलसिला है, जिसकी बुनियाद अब्दुल क़ादिर जीलानी ने रखी थी । कहते हैं कि इस सिलसिले का इतिहास पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद तक जाता है । दक्षिण पूर्वी एशिया के अलावा ये सिलसिला पूर्वी और पश्चिमी अफ्रीक़ा तक फैला है ।
नक्शबंदी सिलसिला-इस सिलसिले का आग़ाज़ हज़रत बहाउद्दीन नक्शबंद बुख़ारी से होता है । इस सिलसिले की भी कई शाखाएं हैं, जैसे मकसूदी, ताहिरी, उवैसिया वग़ैरह ।
सुहरावर्दी सिलसिला- इस सिलसिले की शुरूआत हज़रत दिया-अल-दीन-अबू-नज़ीब-अस-सुहरावर्दी से होती है ।
तो चिश्तिया सिलसिले के फ़कीर थे हज़रत मोईनुद्दीन चिश्ती । जिनका जन्म सन 1141 में सिस्तान में हुआ था । जब वो पंद्रह बरस के थे तो उनके माता-पिता का देहान्त हो गया था । परिवार का फलों का एक बग़ीचा और पवन-चक्की थी । इन्हें 'ग़रीब नवाज़' क्यों कहा जाता है इसके पीछे भी एक दंत-कथा है । कहते हैं कि बचपन में ईद-उल-फित्र (मीठी ईद) के दिन वो अपने पिता के साथ नमाज़ अदा करने गए थे । वहां उन्होंने एक बच्चे को रोते हुए देखा तो इसकी वजह पूछी, उसने बताया कि ईद के दिन सब बच्चों ने नये कपड़े पहन रखे हैं । पर उसके पास नए कपड़े नहीं हैं । इसलिए वो रो रहा है । इतना सुनकर मोईनुद्दीन ने अपने कपड़े उस बच्चे को दे दिये और खुद पुराने कपड़े पहन लिये । इसके बाद उन्हें 'ग़रीब नवाज़' कहा गया ।
एक दिन जब मोईनुद्दीन पौधों को पानी दे रहे थे, तो उन्होंने एक बूढ़े को देखा । ये बुज़ुर्गवार शेख इब्राहीम क़ुन्दोज़ी थे । उन्हें एक पेड़ की छांह में बैठाकर मोईनुद्दीन ने एक पेड़ से तोड़कर ताज़े अंगूर खाने को दिये । बदले में बुज़ुर्गवार ने भी उन्हें कुछ खाने को दिया । कहते हैं कि इसके बाद मोईनुद्दीन को इलहाम हुआ, उन्होंने दुनियावी चीज़ों को छोड़ दिया और फ़कीर बन गए । इसके बाद वो सफ़र पर निकल पड़े । और आखि़रकार हज़रत उस्मान हरवानी के शिष्य बन गए ।
कहते हैं कि एक दिन सपने में उन्हें पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद ने दर्शन दिये और उसके बाद उनके हुक्म से वो निकल पड़े दक्षिण एशिया की तरफ़ । कुछ दिन लाहौर में रहने के बाद वो अजमेर आ गये और फिर यहीं बस गए ।
मुग़ल बादशाह अकबर (1556-1605) के ज़माने में अजमेर एक बेहद महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल के रूप में मशहूर हुआ । मशहूर फिल्म 'मुग़ले-आज़म' में आपने देखा होगा किस तरह अकबर रेगिस्तान में पैदल चलकर अजमेर पहुंचे थे और ख्वाजा की बारगाह में उन्होंने मुराद मांगी और वो पूरी भी हुई थी ।
तो ये थी संक्षिप्त पृष्ठभूमि ग़रीब नवाज़ के बारे में । और अब अजमेर-यात्रा की तस्वीरों का दूसरा भाग--दरअसल सारी तस्वीरें इसी भाग में निपटानी है इसलिए मुमकिन है कि धीमे कनेक्शन में लोड होने में देर लगे । सभी तस्वीरों पर क्लिक करके उन्हें बड़ा किया जा सकता है । फिर याद दिला दें: सभी तस्वीरें मोबाइल कैमेरे से खींची गई हैं ।
ये ताकीद भी होती है अब इबादतगाहों में ।
बोर्ड पर लिखा है ज़ायरीन अपने मोबाइल और दीगर सामान की हिफ़ाज़त ख़ुद करें ।
रंग बिरंगी तस्बीहें ( जाप करने की मालाएं )
बंगाली बाबू यहां आएं ।
11 टिप्पणियां :
गलत बात गरीब नवाज से पहले निजामुद्दीन औलिया को सिजदा करना होता है , और आप बिना निजामुद्दीन औलिया तथा बाबा फ़रीदी को सजदा किये बिना निकल लिये , अगली बार दौरा दुरुस्त करे , गरीब नवाज अपने चेले का खास ख्याल रखते थे जनाब :)
विवरण के लिए धन्यवाद. जानकारी में अभिवृद्धि हुई.
बहुत अच्छी पोस्ट !
अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद, सारे फ़ोटो में मेरा पसन्दीदा फ़ोटो है "सोहन हलवे" वाला :)
ज्ञानवर्धक,रोचक,मजेदार |
फोटो और उनके कैप्शन - क्या खूब!!!
यात्रावृतांत द्वारा पाठकों को अजमेर की सैर पर ले जाने का धन्यवाद |
अच्छी जानकारी दी है। यदि यहां कैसे पंहुचे,दरगाह मे जाकर क्या क्या सावधानी बरते आदि की जानकरी दे देते तो आेर अच्छा रहता। फोटो अच्छे है।
अशोक मधुप
सूफ़ी परंपरा की जानकारी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्। सिंधी गीतों या गजलों की सीडी भी ली क्या? वो भी सुनवाइएगा।
आपकी धार्मिक यात्रा से
हमेँ भी हज़रत साहब की
पाकीज़गी का साया हासिल हुआ -
मेरे सच्चे मन से किये सलाम
उन सभी पहुँचे हुए पीरोँ को
जिनका यहाँ नाम आया है !
- लावण्या
मोईनुद्दीन ने एक पेड़ से तोड़कर ताज़े अंगूर खाने को दिये
अंगूर और पेड़ पर..? क्या गरीब नवाज के बगीचे में पेड़ पर अंगूर लगा करते थे? :)
एक से एक लाजवाब तस्वीरें और उनसे जोरदार केप्शन, बहुत मजा आया।
फिर एक बार शुक्रिया आपका।
अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद, कव्वालियों के लिये इंतजार रहेगा!
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