बच्चों की आउटडोर गतिविधियों के लिए करनी पड़ी एक कार्टून चैनल को पहल ।
क्या आपने ध्यान दिया है कि हमारे घरों के बच्चों को टेलीविजन का नशा होता जा रहा है । ख़ासकर कार्टून चैनलों का । उस पर सिफत ये है कि बच्चों की शैतानियों से छुटकारा पाने के लिए जनम-घुट्टी की तरह मां-बाप बच्चों को कार्टून-चैनलों के हवाले कर देते हैं । ये उस अफ़ीम की तरह है जो बचपन में दाईयां बच्चों को चटा दिया करती थीं । यही वजह है कि आजकल बच्चों की आउट-डोर एक्टिविटीज़ बंद-सी हो गई हैं । ये बात उस समय और भी ज्यादा रेखांकित हुई जब एक कार्टून-चैनल ने एक बड़ी पहल की ।
सत्ताईस तारीख़ को बच्चों के चैनल निकोलोडियन ने एक बड़ा आयोजन किया । LETS JUST PLAY नामक इस अभियान का मक़सद था बच्चों को बाहर जाकर खेलने के लिए प्रेरित करना । पिछले कई दिनों से कुछ प्रमुख टी.वी. चैनलों पर इस अभियान का प्रमोशन किया जा रहा था । प्रिया दत्त, पूजा बेदी, सायरस भरूचा, स्मृति ईरानी जैसी जानी-मानी हस्तियां इस अभियान का प्रचार करती नज़र आईं । इस अभियान को मुख्य रूप से दिल्ली, मुंबई और बैंगलोर में आयोजित किया गया । सत्ताईस तारीख को थोड़ी देर के लिए 'निकोलोडियन' ने अपना प्रसारण पूरी तरह से बंद कर दिया और उस दिन इन बड़े शहरों में कुछ चुनिंदा जगहों पर बच्चों के खेलों का आयोजन किया गया ।
'निक' की इस पहल ने कई मुद्दों को उजागर कर दिया है । आज के बच्चे अपनी स्कूली पढ़ाई, प्रोजेक्ट्स, ट्यूशनों वग़ैरह में तो उलझे होते ही हैं । इसके अलावा कंप्यूटर गेम्स और टी.वी. ने उनका बहुत सारा समय अपने क़ब्ज़े में कर लिया है । ऊपर से बाहर जाकर खेलने के लिए जगह की भारी कमी है इन महानगरों में । इसलिए वो सारे खेल समाप्त हो गए हैं जिन्हें हम कभी बचपन में खेला करते थे । अभी कुछ दिन पहले ही हम सभी मित्र याद कर रहे थे कि किस तरह हमारा बचपन गिल्ली डंडा, भंवरा, कंचे, छिपा-छिपी जैसी शैतानियों से भरपूर था । इसी बचपन का हिस्सा था क्रिकेट और फुटबॉल खेलना । और सायकिल जमकर चलाना । जिस शहर में हम बड़े हुए वहां मैदानों की व्यवस्था थी । वहां मुहल्लों और दिलों में जगह की कोई कमी नहीं थी । इसलिए हम जमकर पैर फैला सकते थे और डटकर खेल सकते थे ।
( चित्र पिकासा वेब से साभार ) पर आज समुद्र वाले इस शहर में खेल के मैदान नहीं हैं । खेलने की जगहें नहीं हैं । इमारत के कंपाउंड में खेलें तो बड़े इसलिए डांटते हैं कि गाडि़यों के शीशे टूट जायेंगे । हमारी इमारत में तो बच्चों के तेज़ सायकिल ना चलाने के लिए स्पीड-ब्रेकर बना दिए गए हैं । जिन इमारतों में खेलने की जगह है भी, तो वहां बच्चों के भीतर बाहर जाकर खेलने की इच्छा नहीं है । उनका शेड्यूल इतना व्यस्त है कि मां-बाप को मजबूरी में उन्हें कार्टून चैनल देखने के लिए हां कहना पड़ता है । अगर ज़रा सी ना-नुकुर की तो बच्चे पूरे घर को सिर पर उठा लेते हैं ।
ऐसे परिदृश्य में स्कूलों को पहल करनी चाहिए थी । पर शायद वहां इसके लिए कोई गुंजाईश नहीं थी । इसलिए 'निक' ने अपने विश्व-व्यापी अभियान के तहत भारत में भी lets just play का नारा दे दिया । और चुनिंदा बड़े शहरों में बच्चों को बाहर बुलवाकर खेलने की प्रेरणा दी । सवाल ये है कि क्या एक दिन आधे घंटे अपने चैनल पर प्रसारण ना करने से वाक़ई कुछ होगा । सिवाय इसके कि लोगों का ध्यान इस मुद्दे पर जाए । अब इस मुद्दे पर हम सबको ध्यान देना होगा और समय निकालकर खुद बच्चों को आउटडोर गेम्स के लिए ले जाना होगा । खुद उनके साथ खेलना होगा ।
क्या आप इसके लिए तैयार हैं ?
7 टिप्पणियां :
बच्चों के लिये तो अत्यावश्यक है ही, हम जैसों के लिये भी अभियान होने चाहियें- जस्ट मूव आउट। इण्टरनेट और पुस्तकें घर में बान्धे हुये हैं। नये विचार उत्पादित नहीं होते!
आजकल तो बस टी वी और इंटरनेट ही सब कुच हो गया है
आपने सही कहा । माँ-बाप को बच्चों के साथ समय जरुर बिताना चाहिए पर आजकल की भागती दौड़ती जिंदगी मे किसी के पास समय नही होता है ।
जब बेटे को जबरदस्ती बाहर खेलने को धकेलता हूँ, तब उसे जल्लाद लगता हूँ शायद :( मगर यह जरूरी है.
बहुत ही सही मुद्दा उठाया आप ने, बिल्कुल हमारे दिल के करीब है ये मुद्दा। अजी इस समुद्र के किनारे वाले शहर में बिल्डिंग के कंपाउड दुकानें खा गयीं और खुले मैदान मल्टीपलेक्स खा गये, यहां तक की समुद्र का किनारा भी न बक्शा गया उसे भी खोमेचेवाले और झोपड़पट्टी के लोग खा गये। अगर कार्टून चैनल्स अफ़ीम की गोली हैं तो उसके लिए हम मां बाप ही ज्यादा जिम्मेदार है। लिखने को तो बहुत कुछ है इस विषय पर लेकिन वो टिप्पणी न हो कर पूरी पोस्ट ही बन जाएगी, इस लिए इति श्री।
ये एक अच्छी पहल है। कम से कम लोगों का ध्यान तो इस ओर लौटेगा।
ये एक अच्छी पहल है। कम से कम लोगों का ध्यान तो इस ओर लौटेगा।
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