Sunday, August 10, 2008

उर्दू के नामचीन मज़ाहिया शायर साग़र ख़ैयामी नहीं रहे । आईये उनकी आवाज़ सुनें ।

मुझे लगता है कि या तो मैं बेख़बर रहा या फिर मीडिया ने ख़बर तरीक़े से नहीं पहुंचाई । अभी कुछ सप्‍ताह पहले उर्दू के नामचीन शायर साग़र ख़ैयामी के बारे में तफ्तीश कर रहा था इंटरनेट पर । तो इस साईट पर पहुंचा और मिली वो अफ़सोसनाक ख़बर । साग़र खैयामी का उन्‍नीस जून गुरूवार को निधन हो चुका है । वो लंबे समय से कैंसर से पीडि़त थे । साग़र साहब ने मुंबई के नानावटी अस्‍पताल में आखिरी सांस ली ।

 

                           sagar khaiyami

 

मुझे याद है कि बचपन से ही जब दूरदर्शन पर मुशायरे देखने में रूचि जागी थी तो साग़र साहब को पढ़ते देखकर अच्‍छा लगता था, लगता था कि एक बंदा है जो सबकी टांग बड़े मज़े लेकर खींचता है । सा़ग़र ख़ैयामी की मज़ाहिया शायरी के दीवाने वैसे भी देश-विदेश में फैले हैं । और उनकी पढ़ने की ख़ास अदा ने सबको हंसाया भी था और सोचने पर मजबूर भी किया था । यूट्यूब से साग़र साहब की कुछ रिकॉर्डिंगें पेश हैं । जो कब तक यहां पर कायम रहेंगी, कहा नहीं जा सकता । कोशिश करूंगा कि इसे चुराकर यहां स्‍थाई रूप से लगा दिया जाए । मद्धम गति वाले इंटरनेट कनेक्‍शन की वजह से अगर आप इस क्लिप को ना देख पाएं तो कोई बात नहीं । मैं इसी पोस्‍ट पर कुछ ऑडियो क्लिप भी दे रहा हूं ।

 

साग़र साहब के बारे में जो कुछ पता चला वो ये कि उनका असली नाम था रशीदुल हसन । वो सत्‍तर बरस जिये । साग़र साहब का ताल्‍लुक लखनऊ के मशहूर गुफरामआब घराने से था । सागर खय्यामी के पिता मौलाना औलाद हुसैन भी शायर थे और मौलवी लल्लन के नाम से जाने जाते थे। सागर ख्य्यामी का क्रिकेट पर लिखा गया गजल संग्रह 'अंडर क्रीज' खासा मशहूर हुआ था। उन्हें 1977 में केंद्र सरकार द्वारा मिर्जा गालिब अवार्ड से नवाजा गया था। उन्हें कई राज्यों ने उर्दू अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया था ।

 

आमतौर पर मज़ाहिया शायरों या कवियों को चुटकुलेबाज़ मानकर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है । पर साग़र साहब ने अपनी शायरी की गहराई और चुटीलेपन से ख़ासा नाम कमाया था । ये सच है कि कई बार उनकी कविताओं ने इतनी गहरी चुटकी ली कि कुछ लोगों के दिलों में दर्द भी हुआ और उन्‍हें गुस्‍सा भी आया । उन्‍होंने मौलवियों से लेकर सरकारी कर्मचारियों, प्रोफ़सरों, क्रिकेटरों और हसीनाओं सबको अपनी रचनाओं का विषय बनाया और सबके मज़े लिए ।

 

मिर्जा़ गा़लिब के शेर 'ये इश्‍क़ नहीं आसां बस इतना समझ लीजिये, इक आग का दरिया है और डूबकर जाना है ' पर उनकी 'ओरीजनल तरंगित शायरी' की मिसाल पेश है---

ये इश्‍क़ नहीं मुश्किल बस इतना समझ लीजिये

कब आग का दरिया है कब डूब कर जाना है ।

मायूस ना हो आशिक़ मिल जायेगी माशूक़ा 

बस इतनी सी ज़ेहमत है मोबाइल उठाना है ।।

 

नमक की बढ़ती क़ीमतों और बेईमानों की भरती तिजोरियों पर उन्‍होंने लिखा था--

कहां निकलती हैं नमकीन सूरतें घर से

नमक की शहर में क़ीमत जो बढ़ गयी प्‍यारे

नमक-हलालों की यूं ही कमी है दुनिया में

नमक हरामों की औक़ात बढ़ गयी प्‍यारे ।।

दिल्‍ली में मकान की तंगी पर उनका एक शेर मुझे याद आता है । वो लिखते हैं कि--

यक़ीन है जाएगी एक रोज़ जान दिल्‍ली में

तलाश करते हैं एक मकान दिल्‍ली में ।

 

साग़र ख़ैयामी पढ़ते वक्‍त बड़ी गंभीर शक्‍ल बनाकर पढ़ते थे । आप समझ ही नहीं सकते थे कि वो कब किस तरह का तीर छोड़ने वाले हैं । साग़र ख़ैयामी के कुछ मुशायरों से पेश हैं उनकी आवाज़ में उनकी रचनाएं । इन्‍हें तसल्‍ली से सुनिये और बताईये कि साग़र ख़ैयामी के साथ क्‍या आपकी कोई याद जुड़ी है ।

 

क्रिकेट पर साग़र साहब की मशहूर रचना उनकी आवाज़ में

 

 

इस नज़्म का शीर्षक है 'सर्दी और मुशायरा ।

 

 

अपनी जवानी के दिनों को याद करते हुए अपनी एक रचना सुना रहे हैं साग़र ख़ैयामी

 

 

 

हमने तरंग पर एक बार पतंगबाज़ी का जिक्र किया था । यहां साग़र ख़ैयामी पतंगबाज़ी के साथ इश्‍क़बाज़ी का जिक्र कर रहे हैं । इस रिकॉर्डिंग की क्‍वालिटी थोड़ी सी कम है ।

 

 

 

लोड शेडिंग की शिकायत कुछ दिन पहले हमारे मित्र सागर नाहर भी कर रहे थे । बड़े परेशान हैं । साग़र साहब की ये रचना हम सागर नाहर के नाम कर रहे हैं ।

 

 

 

शायरों के बीच क्रिकेट मैच का ब्‍यौरा साग़र ख़ैयाम की ज़बानी ।

 

 

 

कहना ना होगा कि साग़र ख़ैयामी के साथ हमारी कई यादें जुड़ी हैं । साग़र ख़ैयामी इन जैसी हज़ारों रिकॉर्डिंग्‍स के ज़रिए हमारे बीच रहेंगे और हमें अपने तंज़ से चिकोटी काटते रहेंगे ।

 

 

 

8 टिप्‍पणियां :

Arun Arora said...

वाह जी शानदार पुरानी यादे संजो कर कर रखने के लिये धन्यवाद ये शानदार आवाज कही ख्यालो मे बसी थी आज सामने ला दी

ALOK PURANIK said...

भई गजब आदमी थे खैयामी साहब।
इस खाकसार का यह सौभाग्य रहा कि कुछ कविसम्मेलनों में खैयामी साहब के साथ पढ़ने का मौका मिला है।
खैयामी साहब एकैदम ओरिजनल और स्पांटनियस थे। फरीदाबाद की ऐतिहासिक नाहरवाली हवेली में स्टार न्यूज ने 2004 दिसंबर में एक कविसम्मेलन आयोजित करवाया था। खैयामी साहब थे, और भी दिग्गज थे। अपन भी थे। हवेली के सीढ़ियां विकट हैं, बहुत बड़ी। खैयामी साहब आगे उतर रहे थे, मैं पीछे थे। मैंने कहा पता नहीं, इतनी बड़ी सीढ़ियां बनाने वालों ने कुछ पकड़ने का इंतजाम नहीं किया। खैयामी साहब ने इसके जवाब में जो कहा-उसे सुनकर मैं दो मिनट तक हंसता रहा। जवाब अछपनीय है, सो लिख नहीं सकता। कभी मुलाकात हुई, तो आडियो में बताऊंगा।
श्रदांजलि उन्हे, जन्नत में उनके जाने से वहां की मनहूसियत कुछ कम हो जायेगी।

Sajeev said...

कहां निकलती हैं नमकीन सूरतें घर से
नमक की शहर में क़ीमत जो बढ़ गयी प्‍यारे
नमक-हलालों की यूं ही कमी है दुनिया में
नमक हरामों की औक़ात बढ़ गयी प्‍यारे ।।
वाह क्या बात है, आपने ये सब ढूँढने में बहुत मेहनत की होगी, बहुत शानदार प्रस्तुति है

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत दमदार शख्सियत से परिचय कराया यूनुस!
खैयामी साहब को दिल से श्रद्धांजली।

अमिताभ मीत said...

बहुत बढ़िया पोस्ट युनुस भाई. बहुत शुक्रिया आप का.

Udan Tashtari said...

यह पोस्ट तो संजो कर रखने लायक है. गजब!!

इससे बेहतर श्रृद्धांजलि क्या हो सकती है शायर को. नमन.

Anita kumar said...

युनूस भाई आत्मा तृप्त हो गयी, शुक्रिया, हमने सब सहेज लिए हैं…:)

Smart Indian said...

इतनी बड़ी-बड़ी बातें मज़ाक हे मज़ाक में और वह भी शायरी के साथ कह पाने का उनका अंदाज़ बेमिसाल था.
बहुत बहुत धन्यवाद!

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