'कीप-अलाइव' ने जिंदा रखा है पुराने गानों के शौक़ को
दो-तीन दिन पहले मुझे सुरेश भाई के आमंत्रण पर पुराने गानों के एक कार्यक्रम में जाने का मौक़ा मिला । एक तो मुंबई महानगर । ऊपर से गुरूवार का व्यस्ततम दिन । दफ्तर के बाद ठीक आठ बजे आयोजन-स्थल पर पहुंचना था । ट्रैफिक से जूझते हुए जब भाईदास हॉल पहुंचा तो सुरेश भाई इंतज़ार कर रहे थे । आपको बता दूं कि सुरेश भाई मेरे मित्र हैं पर हमउम्र नहीं हैं । उनकी उम्र बहत्तर साल है । और वो हीरों के व्यापारी हैं और वो अहमदाबादी हैं । अहमदाबाद में एक ग्रामोफ़ोन-क्लब है । और इस क्लब से मेरा परिचय क़रीब एक साल पुराना है ।
ग्रामोफ़ोन-क्लब के बारे में जल्दी ही तरंग पर अलग से लिखूंगा,
.... मोबाइल फोनों पर भी एम0पी03 फॉरमेट में वेस्टर्न म्यूजिक चीख़ रहा था और ऐसी शोर भरी दुनिया के बीच भाईदास हॉल में तकरीबन डेढ़ हजार लोग पुराने गानों की स्वरलहरियों में खोए हुए थे ।
फिलहाल संक्षेप में आपको इतना बता दूं कि अहमदाबाद के इस क्लब का मकसद है पुराने गानों का संग्रह करना, मिलबैठकर पुराने गाने सुनना और कार्यक्रम आयोजित करना । बहरहाल सुरेश भाई इसी ग्रामोफोन क्लब के कर्णधारों में से एक हैं । बहत्तर साल की उम्र में उनका जोश कम नहीं हुआ है । बताने लगे कि घुटनों में थोड़ी तकलीफ आई तो बेटे ने कहा कि अगर यही हाल रहा तो ग्रामोफोन क्लब की गतिविधियां बंद हो जायेंगी । फौरन उन्होंने घुटनों की फिक्र करनी शुरू कर दीं । यानी व्यापार और सेहत अपनी जगह है पर संगीत का जुनून कम नहीं होना चाहिए । ऐसे हैं सुरेश भाई ।
बड़ा वाला छाता लेकर सुरेश भाई भाईदास हॉल की लॉबी में खड़े थे । उन्होंने बहुत इसरार करके बुलाया था । ऐसे इसरार को टालना मुमकिन नहीं होता । ये आयोजन 'keep alive' नामक संस्था का था । जिसके संचालक मनोहर अय्यर हैं । इनके बारे में भी थोड़ा-सा बता देना चाहिए । HDFC की अच्छी-सी नौकरी को ग्यारह साल पहले इन्होंने 'नमस्ते' कह दिया और अपनी ये संस्था बनाई । विवाह भी नहीं किया ताकि जिंदगी संगीत के जुनून में ही बिता सकें । आज पुराने गानों के अनगिनत आयोजन करते हैं और अपनी दुनिया में मगन हैं ।
बहरहाल, मुझे लगा कि मुंबई में इस तरह के आयोजन में ज्यादा लोग नहीं आयेंगे लेकिन बिल्कुल सही समय पर हॉल में प्रवेश दिया गया और बिल्कुल फौजी अनुशासन के साथ आठ बजे कार्यक्रम का आग़ाज भी हो गया । उद्घोषण में मनोहर अय्यर ने कहा भी कि हमारी बुरी आदत है, हम कार्यक्रम समय पर शुरू कर देते हैं । ज़रा सोचिए कि बाहर की दुनिया में एफ0एम0 चैनल 'पप्पू कान्ट डान्स' और 'किस्मत कनेक्शन' जैसे हाई-बीट गानों का शोर उगल रहा था । बगल में मौजूद मीठीबाई कॉलेज के बच्चे 'पब्स' में हाईबीट गानों पर थिरकने के लिए निकल रहे थे । मोबाइल फोनों पर भी एम0पी03 फॉरमेट में वेस्टर्न म्यूजिक चीख़ रहा था और ऐसी शोर भरी दुनिया के बीच भाईदास हॉल में तकरीबन डेढ़ हजार लोग पुराने गानों की स्वरलहरियों में खोए हुए थे । जब वृषाली और श्रीकांत ने 'रेल का डिब्बा' का 'ला दे मोहे बालमा आसमानी चूडियां' गाया तो पूरा हॉल साथ में तालियां बजा रहा था । आपने अगर ये गाना सुना हो तो आपको याद होगा कि इस गाने में गुलाम मुहम्मद ने गति-परिवर्तन वाली तकनीक इस्तेमाल की है । कुछ अंतरे तेज़ और कुछ धीमे ।
बीच बीच में मनोहर अय्यर बता रहे थे कि कौन-सा गाना किस राग पर है । इसकी ताल वग़ैरह क्या है । दिलचस्प बात ये थी कि सारे श्रोता इन गानों का पूरा मज़ा ले रहे थे ।
जब 'बंबई का बाबू' फिल्म के सचिन देव बर्मन के गाने 'दीवाना मस्ताना हुआ दिल ' की बारी आई तो सितार बजा रहे उस्ताद जी का माईक्रोफोन बंद हो गया । लेकिन फ़ौरन बगल में बैठे मेंडोलिन-वादक नूर सज्जाद हुसैन ने अपना माइक उनके हवाले किया और गाना वहीं से शुरू हुआ जहां से रूक गया था । सबने सितार के पूरे मज़े लिए ।
नूर सज्जाद के बारे में आपको बता दूं कि ये सज्जाद हुसैन के सुपुत्र हैं । वही सज्जाद जो मेंडोलिन के महारथी थे और जिन्होंने एक गाने की रिकॉर्डिंग में लता मंगेशकर से कह दिया था कि लता बाई ज़रा ठीक से गाओ । ये मेरा गाना है नौशाद का गाना नहीं है । फिर कभी सज्जाद पर भी बातें की जायेंगी । ये भी आपको बता दूं कि इस कार्यक्रम में संगीतकार हुस्नलाल भगतराम के बेटे और मशहूर सितार वादक अशोक शर्मा भगतराम अपनी पत्नी विदुषी ज़रीन शर्मा के साथ मौजूद थे । इसी तरह से संगीतकार मदनमोहन के बेटे संजीव कोहली भी थे । संगीतकार तुषार भाटिया और फिल्म-संगीत के इतिहासकार नलिन शाह जैसे सभी दिग्गज इन गानों का आनंद लेते पाए गए । मैं इस कार्यक्रम का संक्षिप्त जिक्र इसलिए कर रहा हूं ताकि आपको अहसास हो कि दुनियावी शोरोगुल के बीच भी हमारे शहरों में ऐसे कार्यक्रम होते रहते हैं । बस हमें ज़रा आंखें खोलकर उन पर नज़र रखनी पड़ती है । पिछले एक दो महीनों में ऐसी कई संगीत-महफिलों में जाने का फायदा ये हुआ है कि जो गाने मन की कंदराओं में छिपे पड़े थे उन्हें खोज खोजकर सुनने का जुनून फिर से जिंदा हो गया है ।
जल्दी ही आपको रेडियोवाणी पर ऐसे गाने सुनवाऊंगा और यहां अहमदाबाद के ग्रामोफोन क्लब की कहानी भी बताऊंगा । फिलहाल तो मैं चला 'रेल का डिब्बा' फिल्म का आसमानी चूडियां वाला गाना ढूंढने । क्या आपके संग्रह में है ये गाना ?
10 टिप्पणियां :
जी इंतजार रहेगा।
मिल जाए तो ज़रूर सुनियेगा युनुस भाई ये गीत
सुरेश भाई और मनोहर अय्यरजी जैसे लोगों का जूनून कमाल का है, हम तो उतनी तन्मयता से अपने जरूरी काम भी नहीं कर पाते जितनी तन्मयता से ये लोग अपने शौक पूरे करते हैं।
धन्य है इअसे लोग.. मिलने की इच्छा है ऐसे लोगों से। देखते हैं कब मौका मिलता है।
मुझे अभी पता चला है कि हैदराबाद में भी बहुत से संग्राहक है, जिनके पास दुर्लभ संग्रह है। समय निकालकर उनके पास जाना ही पड़ेगा।
तुषार भाटीया और सँजीव कोहली पुराने साथी हैँ -
बीते अरसे के गीतोँ को ज़िँदा रखनेवालोँ का प्रयास सराहनीय है -
भाईदास होल, मीठीबाई, मेरे पुराने ठिकाने रहे हैँ - यादेँ ताज़ा हो गयीँ
अच्छा लगा इस कार्यक्रम के बारे में पढ़ना.
Yunusbhai
Very interesting write-up.
Can you give more details of "Keep Alive"? Like contact info., cell no. etc?
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
सुरेश भाई वाकई हीरों के पारखी है।
sir,
tarsaayiye mat mujhe..
aise aayojan me shirkat karne ke liye main taras gaya hun..
pata nahi kab mauka haath lagega..
agar kabhi mumbai me rahne kaa mauka mila to aap mujhse pareshaan ho jaayenge.. aapki kshtro chaaya me hi jo hamesha rahunga.. :)
यूनुस भाई,
आज एक सप्ताह बाद मैं आपके इस पोस्ट को देख रहा हूँ, पहले तो देरी की मुआफ़ी चाहूंगा.
सचमुच जुनूनी लोगों की शिरकत थी वहाँ. अहा! कितना सुहाना सफर रहा होगा उस शाम का.
हाँ, ग्रामोफोन क्लब से कुछ मेरी ग्रामोफोन गाथा के लिए के लिए भी लाइयेगा.
धन्यवाद.
आस्मानी चूड़ियां मिलीं?
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