किसी कार्टूनिस्ट से दोस्ती का नतीजा 'ये' होता है ।
निर्मिष ठाकर अचानक मेरे मित्र बन गये हैं । जी हां । एक हफ्ते पहले तक परिचय तक नहीं था । लेकिन घटनाओं का क्रम देखेंगे तो पायेंगे कि सब कुछ अचानक हो गया । हुआ यूं कि पिछले दिनों विविध भारती पर प्रख्यात कवि एकांत श्रीवास्तव से बातचीत प्रसारित हुई । निर्मिष ने इस बातचीत को सुना । और फिर एकांत से ही संपर्क किया । उनसे मेरा नंबर प्राप्त करने का प्रयास किया । जो उनके लापरवाह मोबाइल से गा़यब हो चुका था । सो मेरे बदले कहानीकार और पत्रकार हरीश पाठक का नंबर एकांत ने दिया । हरीश जी से निर्मिष ने मेरा नंबर प्राप्त किया और इस कार्यक्रम के लिए बधाई दी ।
मुझे ये एक आम श्रोता का कॉल लगा ।
इस तरह के फ़ोन तो आते ही रहते हैं । लेकिन निर्मिष ने अपने बारे में कई बातें बताईं । जैसे कि वो पहले बहुत ही छोटे पद पर रहे थे और आज ONGC में सुपरिन्टेन्डेन्ट इंजीनियर हैं । सेल्फ मेड टाईप के आदमी हैं । शास्त्रीय संगीत में गहरी रूचि है । गुजराती पत्रिकाओं में लिखते रहे हैं । आजकल सूरत में रहते हैं । फिर हुआ ये कि उन्होंने अपनी कैरिकैचर बनाने की रूचि के बारे में बताया । ये भी बताया कि शास्त्रीय गायकों से लेकर साहित्यकारों तक सबके स्केच उन्होंने बनाए हैं । और अब उनका एक प्रोजेक्ट चल रहा है । जिसमें वो रेडियो और टीवी के प्रस्तुतकर्ताओं की तस्वीरें बना रहे हैं । मुझे चूंकि बरसों से सुन रहे हैं इसलिए मेरे बारे में जानने की इच्छा थी । फिर 'दिव्य भास्कर' में छप रही मेरी श्रृंखला में उन्होंने मेरी तस्वीर देखी तो जिज्ञासा और बढ़ गयी । वो सहज भाव से पूछ बैठे कि ये आज की तस्वीर है या पच्चीस साल पुरानी । उनका कहना था कि कई लोग अपनी पुरानी तस्वीरें लगाकर खुद को जवान 'दिखाने' का प्रयास करते पाये गये हैं । बहरहाल । तमाम बातों के बाद....उन्होंने मेरी क़द काठी वग़ैरह पता कर ली । और मुझसे अपनी एक तस्वीर भेजने को कहा ।
मैंने अपनी राजस्थान यात्रा की ये तस्वीर उन्हें मेल कर दी जिसमें मेरे अलावा रेडियो सखी ममता सिंह, कमल शर्मा, और अशोक सोनावणे एक बंजारे के साथ खड़े हैं ।
बस इस तस्वीर को भेजकर मैं भूल गया । पर अगले ही दिन मेरे मेल बॉक्स पर दो कैरिकैचर भेज दिये गये थे । निर्मिष इतनी तत्परता से काम करते हैं । मुझे एक बात याद आ गयी । बरसों पहले जब मैं म.प्र. में छिंदवाड़ा शहर में पढ़ रहा था तो कार्टूनिस्ट राजकुमार चौहान से मित्रता हुई थी और एक दिन अपनी जेब से पैकेट निकालकर सिगरेट के रैपर के पिछले हिस्से में उन्होंने मेरा एक कार्टून बनाया था । पिछले दिनों मेरे भाई जबलपुर के हमारे घर से कई पुरानी चीज़ें खोजकर मुझ तक पहुंचाईं । उनमें से ये कार्टून भी था । किसी दिन इसे भी आपके साथ शेयर किया जायेगा । बहरहाल । आज तो खुद देखिए कि किसी कार्टूनिस्ट से दोस्ती करने का मीठा अंजाम क्या होता है । मेरी और रेडियोसखी ममता के कैरिकैचर आपकी नज़र ।
15 टिप्पणियां :
वाह!!
मस्त है!
निर्मिष से, लगता है हमें भी दोस्ती करनी पड़ेगी :)
शानदार हैं दोनों कैरिकैचर.
कैरी कैचर बनने के बाद अब आप अति-विशिष्ट हो गए युनूस भाई
क्या जम रहे हैं कैरी में और केचर में।
मैं कहूँगा अति-विशिष्ट तो आप हो ही.
आपका का मस्त और सुंदर कैरी कैचर बनाकर निर्मिष जी भी इसी श्रेणी मे आगये.
काश मेरा भी बन सकता!
कैरी कैचर मे
क्या खूब लग रहे दोनो-
हमारे दोस्त युनूस भाई,
और रेडियोसखी ममतासिंह।
निर्मिष जी धन्यवाद।
नतीजा खूबसूरत है।
यूनुस,
आपके और ममता के कैरीकेचर आज तरंग में देख कर मज़ा आया।
हिन्दी ब्लाग की दुनिया में बामुलाहिजा के cartoons तो देखते ही हैं ,आज आपनें निर्मिष ठाकर के talent से भी पहचान करवाई।
यहाँ इस देश में कला के विद्यार्थी जेब खर्च इकट्ठा करनें के लिये अच्छे मौसम में Tourist areas में जनता के sketches बनाते नज़र आते हैं।
न्यूयार्क में और सैन्फ़्रान्सिस्को में समुद्री किनारे पर Fisherman's warf जैसे स्थलों पर कलाकारों के हुनर आपको देखनें को मिल सकते हैं।
कई वर्षों पहले पतिदेव नें ऐसे ही अपना कैरीकेचर बनवाया था।
भई बड़े अच्छे कलाकार हैं ये। आप तो जम गए एकदम !!! एक ठौ हमारा भी बनवा दीजिए कैरीकैचर :)
वाह, हम तो सोच रहे हैं, प्रिंट लेकर अपनी मेज पर चिपका लें :-)
हमारा कलापक्ष थोडा कमजोर रहा है लेकिन कला की कद्र करना तो जानते ही हैं ।
यूनुस जी ! मेरा अनुभव ग़लत नहीं है। आपको सिर्फ़ सुनने से आप पचास साल के ही लगते है। अब तो यकीन हो गया न…
कैरी और अचार (कैचर) दोनों अच्छे है।
सस्नेह
अन्नपूर्णा
दोनों स्केच मजेदार हैं यूनुस भाई.
मुझे पता था कि इस पोस्ट पर आपकी कार्टून देखने को मिलेगी। बहुत मज़ेदार स्केच रहे ये।
उल्टे क्रम में पोस्ट पढ़ने का एक फायदा रहा.. नई पोस्ट पढ़ने से मन आहत हुआ और अब कार्टून देखने के बाद मुस्कुराहट आ गई।
निर्मिषजी वाकई कमाल किया है, खासकर ममता जी को रेडियो पर बिठा कर।
बधाई आपको ममताजी को और निर्मिष ठाकर जी को |
નિર્મિષ ભાઈ
ક્યારેક અમારો પણ નંબર લગાડજો બાપુ.. અમે પણ સુરત ના જ છીયે.. :)
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