मातृ दिवस पर मुनव्वर राणा के चंद शेर ।।
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक मां है जो कभी ख़फ़ा नहीं होती ।।
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है ।।
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू
मां ने मुद्दतों नहीं धोया दुपट्टा अपना ।।
अभी जिंदा है मां मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूं दुआ भी साथ चलती है ।।
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
मां दुआ करती है, ख्वाब में आ जाती है ।।
ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया
मां ने आंखें खोल दीं घर में उजाला हो गया ।।
मेरी ख्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊं
मां से इस तरह लिपटूं कि बच्चा हो जाऊं ।।
मुनव्वर मां के आगे यूं कभी खुलकर नहीं रोना
जहां बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती ।।
ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा नहीं कर सकता
मैं जब तक घर ना लौटूं मेरी मां सज्दे में रहती है ।।
बुजुर्गों का मेरे दिल से अभी तक डर नहीं जाता
जब तक जागती रहती है मां, मैं घर नहीं जाता ।।
जब से गई है माँ मेरी रोया नहीं,
बोझिल हैं पलकें फिर भी मैं सोया नहीं ।
साया उठा है माँ का मेरे सर से जब,
सपनों की दुनिया में कभी खोया नहीं ।
ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाए
दीए से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है ।।
सुख देती हुई मांओं को गिनती नहीं आती
पीपल की घनी छायों को गिनती नहीं आती।
13 टिप्पणियां :
har sher dil ke kareeb bahut sundar
मुनव्वर मां के आगे यूं कभी खुलकर नहीं रोना
जहां बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती ।।
बहुत खूबसूरत,कहने को कोई लफ्ज़ नही हैं...थैंक्स यूनुस सर
एक-एक शेर बेहद उम्दा ।
हर शेर माँ को वर्णित करता हुआ।
दिल को छू लेने वाले लाजवाब शेर !
मुनव्वर साहब का लिखा अद्भुत है, कम से कम मै तो इसे यही कहता हूं जब भी पढ़ता हूं मां पर उनका लिखा गया!!
मुनव्वर मां के आगे यूं कभी खुलकर नहीं रोना
जहां बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती ।।
iskey baad aur kya kahaa jaaye mothers day per?
यूनुस, माँ पर मुनव्वर राणा का सबसे मक़बूल शेर तो रह ही गया-
किसी को घर मिला तो किसी के हिस्से में दुकाँ आयी,
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आयी.
(स्मृति के आधार पर लिखा है, मिसरा-ए-उला में कुछ आगे पीछे हो सकता है. या दुरुस्त है?)
मुनव्वर राणा साहब की तो बात ही निराली है । सभी अशार दिल को छू लेने वाले हैं । इन्हें पढवाने के लिये बहुत आभार,
ये शेर नही है...
दिल से निकले हुए अल्फाज है.....
वाह क्या बात है...
क्या कहूं? कुछ कहने लायक नहीं छोड़ा आपने..
मोहल्ला जब शुरु हुआ था तब अविनाश ने शुरु की पोस्ट्स में इनमें से कुछ शेरों को share किया था।आज इन्हें दोबारा पढ़कर भी उतना ही आनंद आया। बहुत प्यारे अशआर हैं।
पूरी रचना जैसे स्नेह का सागर ... इक इक शब्द स्नेह की बूँद .... माँ पर लिखी गई बेहद खूबसूरत रचना. आज ही पढ़ने का अवसर मिला... शुक्रिया...
युनूस भाई मुझे मुनव्वर भाई का सबसे ख़ूबसूरत शे’र ये लगता है.....
किश्ती मेरी जब भी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है
सभी मुनव्वर मुरीदों से गुज़ारिश है कि मुनव्वर भाई के उपनाम को राणा के स्थान पर राना (रानाई से राना) लिखा जाए.
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