Friday, November 30, 2018

माय नेम इज़ एंथनी गोन्‍ज़ालविस


क्‍या आपको पता है कि अमिताभ बच्‍चन ने जब 1977 में परदे पर गाया—‘माय नेम इज़ एंथनी गोन्‍ज़ालविस। तो असल में इस गाने के ज़रिये वो संगीतकार जोड़ी लक्ष्‍मीकांत-प्‍यारेलाल के प्‍यारेलाल शर्मा जी की एक बरसों पुरानी तमन्‍ना को पूरा कर रहे थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि अमर-अकबर-एंथनीके निर्माण के दौरान प्‍यारेलाल जी ने मनमोहन देसाई से ख़ास अनुरोध किया था अमिताभ के किरदार का नाम एंथनी फर्नान्डिस की बजाय उनके गुरू के नाम पर एंथनी गोन्‍ज़ालविस रख दिया जाए। फिर वो गीत बना जिसका मैंने जिक्र किया। लेकिन सवाल ये है कि कौन थे ये एंथनी गोन्‍ज़ालविस।


एंथनी गोन्‍ज़ालविस भारतीय फिल्‍म उद्योग के एक जाने-माने वायलिन-वादक और म्‍यूजिक-अरेन्‍जर थे। साल 2012 में 84 साल की उम्र में उन्‍होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उसी बरस गोवा के अंतर्राष्‍ट्रीय फिल्‍म समारोह में उन पर केंद्रित डॉक्‍यूमेन्‍ट्री को विशेष जूरी पुरस्‍कार दिया गया। गोवा के चर्चित वृत्‍तचित्र निेर्देशक अशोक राणे ने काफी शोध के बाद इस डॉक्‍यूमेन्‍ट्री का निर्माण किया था। आपको बता दें कि एंथनी गोन्‍ज़ालविस का जन्‍म सन 1828 में गोवा के माजोर्दा गांव में हुआ था। बचपन से ही वो संगीत में
, खासकर वायलिन बजाने में इतने माहिर हो गए थे कि उन्‍हें अपने गांव माजोर्डा के चर्च का कॉयर-मास्‍टरनियुक्‍त कर दिया गया था। सन 1943 में वो मुंबई आ गये। मुंबई में वो संगीतकार नौशाद की संगीत-टोली में वायलिन-वादक के रूप में शामिल हो गए थे। बाद में वो बॉम्‍बे टॉकीज़से भी जुड़ गये। उन्‍होंने जिन संगीतकारों के साथ काम किया उनमें अनिल विश्‍वास, गुलाम हैदर, श्‍याम सुंदर, नौशाद, गुलाम मोहम्‍मद, सचिन देव बर्मन, सलिल चौधरी और मदनमोहन शामिल हैं। कहते हैं कि एंथनी गोन्‍ज़ालविस भारतीय सिनेमा के पहले म्‍यूजिक अरेन्‍जर थे। पचास और साठ के दशक में उन्‍होंने कई नामी फिल्‍मों के संगीत में ऑर्केस्‍ट्रा का संचालन किया या ये कहें कि म्‍यूजिक-अरेन्‍ज किया। जिनमें महल’, ‘नया दौरऔर दिल्‍लगीजैसी फिल्‍में शामिल हैं।

फिल्‍म भाभी की चूडियांके मशहूर गीत ज्‍योति कलश छलके’,  फिल्‍म प्यासाके गीत हम आपकी आंखों में’, फिल्‍म फुटपाथके गाने शाम-ए-ग़म की क़सम’, फिल्‍म आवाराके घर आया मेरा परदेसीऔर फिल्‍म महलके गीत आयेगा आने वालाका संगीत-संयोजन एंथनी गोन्‍ज़ालविस ने ही किया था। यही नहीं फिल्‍म  जालके गाने ये रात ये चांदनी फिर कहां’, फिल्‍म टैक्‍सी ड्राइवरके जायें तो जायें कहांऔर पहली नज़रके दिल जलता है तो जलने देमें भी उनका योगदान था, इस गाने के ज़रिये मुकेश ने अपना करियर शुरू किया था।

सन 1958 में उन्‍होंने इंडियन सिम्‍फनी ऑर्केस्‍ट्राबनाया था, जिसमें एक सौ दस साजिंदे शामिल थे। मुंबई के सेन्‍ट ज़ेवियर कॉलेज में इस ऑर्केस्‍ट्रा ने अपनी पहली संगीत प्रस्‍तुति दी थी। 23 साल के अपने करियर में उन्होंने करीब पांच हज़ार गानों का म्‍यूजिक अरेन्‍ज किया। उस दौर में बनने वाले लगभग हर गाने का म्‍यूजिक अरेन्‍जमेन्‍ट एंथनी साब का ही होता था। संगीतकार प्‍यारेलाल कहते हैं कि जब वो चौदह साल के थे, तो अपने पिता के म्‍यूजीशियन होने के बावजूद उनसे सीखना चाहता था। भारतीय और पश्चिमी शैली का वायलिन मैंने कई बरस तक उन्‍हीं से सीखा। प्‍यारेलाल के अलावा संगीतकार राहुल देव बर्मन भी उनके शिष्‍य थे।


2 टिप्‍पणियां :

shubham said...

गोंज़ाल्विस का जन्म 1828 की जगह 1928 में हुआ होगा।
त्रुटिवश संभवतः ग़लत छप गया है ।

Unknown said...

पढ़ा...बहुत अच्छा लगा...पर आपकी आवाज़ में सुनने का अलौकिक मज़ा तो अलग ही है...शुक्रिया

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