रंगोली सजाओ रे-- ज़रा हट के- दीपावली विशेष- यूनुस ख़ान
लोकमत समाचार में सोमवार 5 नवंबर को प्रकाशित
ये दीवाली के दिन हैं। त्यौहार ने दरवाज़े पे दस्तक दे दी है। पता नहीं अब वो ज़माना कहां हवा हो गया, जब ताज़े पुते चूने की गंध फैली होती थी घर में। आँगन द्वार सब नया-नया सा हो जाता था। खील-बताशे, कंदील, पटाख़े...रॉकेट-अनार। सब के सब दीवाली को दीवाली बनाते थे। आज हम सब अकसर बातें करते हैं कि अब त्यौहारों का वो उत्साह कहां बिलाता जा रहा है। अमूमन इसका वाजिब जवाब किसी के पास नहीं है। बहरहाल... आईये दीपावली के इन दिनों में बातें करें कुछ फिल्मी गीतों की।
आपको बतायें कि दीपावली के सबसे पुराने गानों में से एक है सन 1941 में आयी फिल्म ‘ख़ज़ांची’ का गाना—‘दीवाली फिर आ गयी सजनी/दीप से दीप जला ले’। इस गाने को गाया था शमशाद बेगम ने। गीतकार थे वली साहब और संगीतकार गुलाम हैदर। बिलकुल यही दौर था जब कुंदनलाल सहगल ने फिल्म ‘स्ट्रीट सिंगर’ में एक गीत गाया—‘लक्ष्मी मूरत दरस दिखाए’। ये सन 1938 की बात है।
ज़रा सोचिए ये वो दौर था जब भारत आज़ाद नहीं था और फिल्म संगीत अपने शैशव काल में था। इसी दौर में कुछ दीपावली गीत आए हैं—जैसे फिल्म 'किस्मत’ का गाना—‘घर घर में दीवाली है मेरे घर में अंधेरा’...इसे अमीर बाई कर्णाटकी ने गाया था, गीत कवि प्रदीप का था और संगीत अनिल बिस्वास का। बॉम्बे टॉकीज़ की फिल्म ‘किस्मत’ वही फिल्म है जिसमें ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है’ जैसा राष्ट्र को जगाने वाला गीत आया और अँग्रेज़ सरकार की नींद हराम हो गयी थी। पर वो कहानी फिर कभी.... अभी तो हम दीपावली के कुछ गीतों की बातें कर रहे हैं। ‘रतन’ में भी एक दीवाली गीत है—‘आई दीवाली/ आई दीवाली’। इसे जोहरा अंबाला ने गाया है।
दीपावली के कई ऐसे गाने हैं जिनके बिना ये त्यौहार पूरा नहीं हो सकता। जैसे सन 1961 में आयी फिल्म ‘नज़राना’ का गाना—‘मेले हैं चिराग़ों के रंगीन दीवाली है’… इस गाने को लिखा था राजेंद्र कृष्ण ने और संगीत था रवि का। दिलचस्प बात ये है कि इस गीत का एक उदास संस्करण भी आया था—‘इक वो भी दीवाली थी इक ये भी दीवाली है/ उजड़ा हुआ गुलशन है रोता हुआ माली है’। इस गाने को राजकपूर पर फिल्माया गया था। दीपावली के उदास गानों में शामिल है फिल्म ‘हक़ीक़त’ का गाना—‘आई अबकी साल दीवाली’….। इसे कैफी आजमी ने लिखा है और संगीत मदनमोहन का है। इसी तरह ‘हरियाली और रास्ता’ का गीत भी उदासी भरा है—‘लाखों तारे आसमान में/ एक मगर मुझको ना मिला’।
दीपावली का एक गीत जो दूरदर्शन पर बचपन के दिनों में अकसर चित्रहार में दिखाया जाता था—वो है—‘दीपावली मनाए सुहानी’। ये फिल्म ‘शिर्डी के साईं बाबा’ का गाना है। और पांडुरंग दीक्षित ने लिखा है। दरअसल दीपावली का संदेश है संसार में प्रकाश करना। लोगों को उजाले ही ओर ले जाना। और संत ज्ञानेश्वर फिल्म का गाना यही बात कहता है—‘जोत से जोत जलाते चलो/ प्रेम की गंगा बहाते चलो’। इसे मुकेश ने गाया है।
आप सबको दीप पर्व की असंख्य मंगलकामनाएं।
ये दीवाली के दिन हैं। त्यौहार ने दरवाज़े पे दस्तक दे दी है। पता नहीं अब वो ज़माना कहां हवा हो गया, जब ताज़े पुते चूने की गंध फैली होती थी घर में। आँगन द्वार सब नया-नया सा हो जाता था। खील-बताशे, कंदील, पटाख़े...रॉकेट-अनार। सब के सब दीवाली को दीवाली बनाते थे। आज हम सब अकसर बातें करते हैं कि अब त्यौहारों का वो उत्साह कहां बिलाता जा रहा है। अमूमन इसका वाजिब जवाब किसी के पास नहीं है। बहरहाल... आईये दीपावली के इन दिनों में बातें करें कुछ फिल्मी गीतों की।
आपको बतायें कि दीपावली के सबसे पुराने गानों में से एक है सन 1941 में आयी फिल्म ‘ख़ज़ांची’ का गाना—‘दीवाली फिर आ गयी सजनी/दीप से दीप जला ले’। इस गाने को गाया था शमशाद बेगम ने। गीतकार थे वली साहब और संगीतकार गुलाम हैदर। बिलकुल यही दौर था जब कुंदनलाल सहगल ने फिल्म ‘स्ट्रीट सिंगर’ में एक गीत गाया—‘लक्ष्मी मूरत दरस दिखाए’। ये सन 1938 की बात है।
ज़रा सोचिए ये वो दौर था जब भारत आज़ाद नहीं था और फिल्म संगीत अपने शैशव काल में था। इसी दौर में कुछ दीपावली गीत आए हैं—जैसे फिल्म 'किस्मत’ का गाना—‘घर घर में दीवाली है मेरे घर में अंधेरा’...इसे अमीर बाई कर्णाटकी ने गाया था, गीत कवि प्रदीप का था और संगीत अनिल बिस्वास का। बॉम्बे टॉकीज़ की फिल्म ‘किस्मत’ वही फिल्म है जिसमें ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है’ जैसा राष्ट्र को जगाने वाला गीत आया और अँग्रेज़ सरकार की नींद हराम हो गयी थी। पर वो कहानी फिर कभी.... अभी तो हम दीपावली के कुछ गीतों की बातें कर रहे हैं। ‘रतन’ में भी एक दीवाली गीत है—‘आई दीवाली/ आई दीवाली’। इसे जोहरा अंबाला ने गाया है।
दीपावली के कई ऐसे गाने हैं जिनके बिना ये त्यौहार पूरा नहीं हो सकता। जैसे सन 1961 में आयी फिल्म ‘नज़राना’ का गाना—‘मेले हैं चिराग़ों के रंगीन दीवाली है’… इस गाने को लिखा था राजेंद्र कृष्ण ने और संगीत था रवि का। दिलचस्प बात ये है कि इस गीत का एक उदास संस्करण भी आया था—‘इक वो भी दीवाली थी इक ये भी दीवाली है/ उजड़ा हुआ गुलशन है रोता हुआ माली है’। इस गाने को राजकपूर पर फिल्माया गया था। दीपावली के उदास गानों में शामिल है फिल्म ‘हक़ीक़त’ का गाना—‘आई अबकी साल दीवाली’….। इसे कैफी आजमी ने लिखा है और संगीत मदनमोहन का है। इसी तरह ‘हरियाली और रास्ता’ का गीत भी उदासी भरा है—‘लाखों तारे आसमान में/ एक मगर मुझको ना मिला’।
दीपावली का एक गीत जो दूरदर्शन पर बचपन के दिनों में अकसर चित्रहार में दिखाया जाता था—वो है—‘दीपावली मनाए सुहानी’। ये फिल्म ‘शिर्डी के साईं बाबा’ का गाना है। और पांडुरंग दीक्षित ने लिखा है। दरअसल दीपावली का संदेश है संसार में प्रकाश करना। लोगों को उजाले ही ओर ले जाना। और संत ज्ञानेश्वर फिल्म का गाना यही बात कहता है—‘जोत से जोत जलाते चलो/ प्रेम की गंगा बहाते चलो’। इसे मुकेश ने गाया है।
आप सबको दीप पर्व की असंख्य मंगलकामनाएं।
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