ऐ नरगिस-ए-मस्ताना...हसरत की पुण्यतिथि पर।
आज है सत्रह सितंबर। गीतकार हसरत जयपुरी सन 1999 में आज ही के दिन इस असार संसार को अलविदा कह दिया था। हसरत जयपुरी ने अपने तईं गीतकारी की दुनिया को बहुत बदला था।
ये बात तकरीबन 1947-48 की है। उन दिनों राजकपूर अपनी दूसरी फिल्म ‘बरसात’ के लिए गीतकार की तलाश में थे। और पृथ्वी जी ने एक नौजवान शायर को यहां राज से मिलने बुलवाया था। ये शायर थे हसरत जयपुरी। आपको बता दें कि ये वो दिन थे जब हसरत को मुंबई में बतौर बस-कंडक्टर नौकरी करते सात-आठ बरस हो गए थे। शंकर-जयकिशन के लिए हसरत ने ‘बरसात’ का जो पहला गीत लिखा वो था—‘जिया बेक़रार है’।
हसरत हिंदी फिल्मों के रूमानी गीतों के सुल्तान थे। बचपन में उन्हें अपने मुहल्ले की एक लड़की राधा से प्रेम हो गया था। मज़हब की दीवार थी। राधा की शादी कहीं और कर दी गयी। और हसरत ने लिखा—‘दिल के झरोखों में तुझको बिठाकर...रख लूंगा मैं दिल के पास...मत हो मेरी जां उदास’। हसरत जिंदगी भर मुहब्बतों की दास्तां को गीतों की शक्ल में ढालते रहे। एक ज़माने में उन्होंने राधा के नाम लिखा था—‘ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर तुम नाराज़ ना होना’। उनका ये पैग़ाम उनकी डायरी में ही दबा रह गया था। बाद में राजकपूर के बेमिसाल फिल्म ‘संगम’ में इसे इस्तेमाल किया गया।
मैं
अपने रेडियो-कार्यक्रमों में भी हसरत को ‘शिद्दत
से की गई मुहब्बतों के शायर’ कहता
हूं। आईये उनके कुछ बेहद रूमानी गानों की बातें करें—‘आ जा रे आ ज़रा’ (फिल्म ‘लव इन टोकिया’ 1966)। इस गाने में वो लिखते हैं—‘देख फिजां में रंग भरा है/मेरे जिगर का ज़ख़्म
हरा है/सीने से मेरे सिर को लगा दे/ हाथ में तेरे दिल की दवा है’। फिल्म ‘सुहागन’(सन 1964) का ये गाना याद कीजिए—‘तू
मेरे सामने है/ तेरी ज़ुल्फ़ें हैं खुलीं/ तेरा आंचल है ढला/ मैं भला होश में
कैसे रहूं’। मदनमोहन-मोहम्मद रफ़ी और हसरत का
ख़ूबसूरत और दुर्लभ संगम है ये। और अफ़सोस का ये गाना—‘आंसू भरी हैं ये जीवन की राहें/ कोई उनसे कह
दे/ हमें भूल जाएं’ (फिल्म परवरिश सन 1958).
हसरत
फिल्मी-गानों में कमाल के लफ्ज़ और ग़ज़ब की मिसालें लेकर आए। जैसे ‘ऐ नरगिस-ए-मस्ताना बस इतनी शिकायत है’ ( फिल्म आरज़ू) नरगिस-ए-मस्ताना के मायने हैं
मस्त आंखों वाली। अब ज़रा इस एक्सप्रेशन के देखिए जिसे हम आम जिंदगी में कितना
इस्तेमाल करते हैं--‘अजी रूठकर अब कहां जाईयेगा, जहां जाईयेगा हमें पाईयेगा’ (फिल्म-आरज़ू)। सन 1952 में आई दिलीप कुमार वाली फिल्म ‘दाग़’ के
एक गाने में तो हसरत ने जैसे कलेजा चीरकर रख दिया है—‘चांद एक बेवा की चूड़ी की तरह टूटा हुआ/ हर
सितारा बेसहारा सोच में डूबा हुआ/ ग़म के बादल एक जनाज़े की तरह ठहरे हुए/
हिचकियों के साज़ पर कहता है दिल रोता हुआ....कोई नहीं मेरा इस दुनिया में/ आशियां
बरबाद है’।
ये
वो दौर है जब गानों को गीतकार से जोड़कर नहीं देखा जाता। जब गाने गीतकार की याद
नहीं दिलाते। ऐसे में जैसे हसरत आसमानों के पार से एक आवाज़ दे रहे हैं—‘तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे/ जब कभी भी सुनोगे
गीत मेरे/ संग-संग तुम भी गुनगुनाओगे।’
लोकमत समाचार मेें सोमवार 17 सितंबर 2018 को स्तंभ 'ज़रा हटके' मेें प्रकाशित
लोकमत समाचार मेें सोमवार 17 सितंबर 2018 को स्तंभ 'ज़रा हटके' मेें प्रकाशित
3 टिप्पणियां :
मेरा मनपसंद गीत जिसे हसरत जयपुरी ने फ़िल्म कठपुतली के लिए लिखा था...
https://youtu.be/16g5AUaW_tU
आपने उम्दा चित्रण किया है. (y)
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सेल्फी के शौक का जानलेवा पागलपन : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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