Monday, August 31, 2009

'गणपति-विसर्जन' : तस्‍वीरें और बातें ।

मैं मुंबई के जिस हिस्‍से में रहता हूं उसे गोराई रोड कहते हैं । इस इलाक़े का अंत गोराई खाड़ी पर होता है । चूंकि ये खाड़ी है इसलिए ज़ाहिर है कि 'गणपति-विसर्जन' का ये एक अच्‍छा ठिकाना है । और कई वर्षों से यहां
'गणपति-विसर्जन' होता आ रहा है । अभी दो दिन पहले गौरी-विसर्जन का दिन था । और सबेरे-सबेरे ही महाराष्‍ट्र राज्‍य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हमारे मोबाइल फ़ोन पर ये संदेस चिपका दिया था ।

Ganpati Bappa Morya. Adverse effects of noise pollution: Loss of hearing, heart disease. Have sound-less festival with dignity.

ज़ाहिर है कि तमाम मुंबई वासियों के पास ये संदेश पहुंचा होगा । उनके पास भी जिन्‍होंने 'शोर' करने की सभी तैयारियां पूरी कर ली थीं । बहरहाल हमारा मुद्दा फिलहाल शोर नहीं है क्‍योंकि उससे मुक्ति पाना असंभव ही दिख रहा है । आईये आपको दिखाएं कि 'गौरी-विसर्जन' के दिन क्‍या हो रहा था गोराई खाड़ी के आसपास ।

गणपति बप्‍पा को विदा करने के लिए आए हुए लोगों का भी 'वर्ग' (क्‍लास) साफ़ नज़र आता है । गणपति हाथ ठेलों से लेकर कारों और ट्रकों तक में विसर्जन के लिए लाए जाते हैं । आसपास के घरों के गणपति हाथों से ही ले जाए जाते हैं ।

 

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गणपति-बप्‍पा को विदा करने के लिए लोग गाजे-बाजे के साथ आते हैं । चाहे बच्‍चे हों या बूढ़े, पुरूष या महिलाएं सभी बेफिक्री से नाचते हैं । दूसरे शहरों में शायद आपको ऐसे विसर्जनों में घरों की महिलाएं नृत्‍य करती नहीं दिखेंगी, पर इस मामले में मुंबई 'बिंदास' है ।

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ऐसे समय में ढोल-ताशे बजाने वालों की 'मौज' रहती है । वो बहुत ऊंचे दामों पर बहुत कम समय के लिए उपलब्‍ध होते हैं । सामान्य घरों के गणपति को इस तामझाम के बिना ही सिराने ले जाए जाते हैं ।

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यहां 'प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड' के सारे निवेदन रोते-कलपते नज़र आते हैं । ख़ैर बाजे-वाले इतने प्रोफेशनल होते हैं कि तयशुदा समय से एक सेकेन्‍ड भी ज्‍यादा नहीं बजाते । इधर समय खत्‍म उधर सामान समेट कर अपनी अगली मंजिल की तरफ रवाना ।

IMG_3836-1 'गणपति-बप्‍पा' को सिराने से पहले उनकी बहुत ही भावुक-आरती की जाती है । खाड़ी के पास एक सड़क का पूरा किनारा इसी काम आता है । क़तार में सभी लोग अपने-अपने गणपति-बप्‍पा की आखिरी आरती करते हैं । ऐसा ही एक परिवार गणपति और गौरी को विदाई दे रहा है ।  यहां आपको इन लोगों की आंखों में छलकते आंसूं नहीं दिखेंगे ।

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दरअसल मुंबई में अलग-अलग दिन गणपति-विसर्जन होता है । सबसे जल्‍दी वो लोग गणपति को विदा करते हैं जो 'डेढ़ दिन' के लिए गणपति को अपने घर विराजते हैं । इसके बाद लगभग हर दूसरे दिन गणपति की विदाई होती है । यानी लोग अपनी श्रद्धा और अपने सामर्थ्‍य के मुताबिक़ गणपति-स्‍थापना करते हैं ।

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इस साल मुंबई महानगर पालिका ने कुछ खास इंतज़ाम किए थे । सजावट की सारी सामग्री और नारियल को 'विसर्जन' से पहले ही जमा करने के लिए एक 'गार्बेज-ट्रक' तैनात था ।

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ज़रा इस ट्रक के उन कोनों पर नज़र डालिए जिन पर आपकी दृष्टि शायद इस तस्‍वीर में ना गयी हो । सजावटी सामग्री कहां टंगी है देखिए ।

IMG_3823-1और ज़रा इन्‍हें भी देखिए ।

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गणपति गेला---रह गय खाली ठेला IMG_3825

मुंबई महानगर पलिका के स्‍टॉल पर स्‍वाइन फ्लू का असर देखिए इस बैनर पर ।
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यहीं नज़र आए अनिरूद्ध बापू के disaster management से जुड़े लोग

IMG_3829हां मुंबई महानगर पालिका आपतकाल के लिए क्‍या इंतज़ाम करती है ज़रा उस पर भी नज़र डालिए ।

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पिछले कुछ दिनों से ये क्रेन यहीं विराजी हुई है । इसके ड्राइवर और बाकी कर्मचारी कहीं चाय-तंबाकू-गुटके में लीन होंगे । इस तस्‍वीर के समय यहां तो नहीं हैं ।

अब ज़रा इन्‍हें देखिए । इतने तामझाम और मस्तिष्‍क-बिगाड़ू शोर के बीच ये महाशय ना केवल बुलबुले बना रहे हैं बल्कि दूसरों को भी इसका 'सामान' बेच रहे हैं ।

IMG_3828और इसी दौरान ये बालक जब खड़े-खड़े थक गया तो इसने अपने 'वाहन' पर सुस्‍ताने का निर्णय किया है । बेचारा कब तक खड़ा रहे ।
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गुब्‍बारे बेचने वाला एक अन्‍य बालक समझ गया है कि यहां तो सब नाच-गाने में लीन हैं । बेहतर है कि वो कॉलोनी की तरफ जाकर अपनी बिक्री करे ।

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गणपति-विसर्जन देखना बेहद दिलचस्‍प अनुभव है । इस भीड़ में आप निपट अकेले होते हैं । आप 'दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं, बाज़ार से गुज़रा हूं ख़रीददार नहीं हूं' वाली स्थिति में होते हैं । और अगर आप उस इलाक़े के आसपास रह रहे हों जहां 'गणपति विसर्जन' होता है तो अगली सुबह का नज़ारा देखने लायक़ होता है । इस बारे में मैं क्‍या कहूं.....कवि अनूप सेठी की सुंदर कविताएं इस बारे में बहुत कुछ कहती हैं । अपनी लंबाई में ये पोस्‍ट 'फुरसतिया' मिज़ाज तक पहुंच रही है पर इन कविताओं को साझा करने का मोह हम छोड़ नहीं पा रहे हैं । कविताएं कविता-कोश से साभार । 


गणपति-विसर्जन

 

1.
किसी महासमर के बाद का विकट सन्नाटा है
आसमान का काला मनहूस तरपाल
समुद्र पर गिरा हुआ
वैसा ही गाढ़ा चीकट पानी
भीतर तक छुपता चला गया
रिसती हुई सीली रेत तट पर अकेली
क्षत विक्षत अक्षौहिणी को धारे हुए
कल आधी रात तक थे गणपति अनादि अनंत जीवंत
मद मस्त विदा करके गया जनता जनार्दन
उसके बाद कैसी हुई विसर्जन की मुठभेड़
आसमान पाताल एक हो गए
रह गए देवताओं के कहीं धड़ कहीं मुंड
रेत में धँसे हुए
इन मिट्टी के ढेलों में नहीं रही घुल जाने की भी ताकत
रहे जो हर साल की तरह ग्यारह दिन दुनिया भर को बिसरा के साथ
सो रहे हैं लौट के घरों में निश्चिंत नीम बेहोशी की नींद
किसी महासमर के बाद का विकट सन्नाटा है
धीरे धीरे सिर उठाने लगा है आसमान
उसके फटे हुए पग्गड़ में
सूरज चुभोने लगा है सलेटी सिलाइयां
निढाल पड़े सागर के मुंह से निकला बहुत सारा झाग
बहुत हिम्मत करके फैलाई उसने बांह
मिट जाएँ तट के अवशेष
दुनिया देख ले उससे पहले
समरांगण बन जाए फिर से तफरीह का मैदान।

2.


साँस रोक कर चुपचाप लेटी है सड़क
उसकी बगल में बहुत से लोग बेसुध सोए पड़े हैं दूर-दूर तक
भोर का कलरव शुरू हो गया है
सड़क नींद में खलल नहीं डालना चाहती
गणपति विसर्जन के मेले में मीलों लंबी सड़क पर
देर रात तक बनाए इन जुझारुओं ने
शुध्द हिंदुस्तानी खिलौने और पकवान
और बेचकर सो गए वहीं
बारिश शुरू हुई तो ओढ़ लीं प्लास्टिक की चादरें
जिन पर सजीं थीं कल दुकानें
गणपति भी घड़े गए जितने इस बरस
ढोल तासों की पगलाई ताल पर
भक्तों ने भी उढ़ेल डाले उन पर साल भर के सारे दुख संताप
जब डाले गए गणपति समुद्र की गोद में
दुख और क्रोध और अधूरेपन तमाम
उतर गए अरब सागर में
घुल गए नमक की तरह हिंद महासागर में
इतना घना और विशाल था सामान
सारी रात लगा दी सागर ने समेटने में
उछल उछल कर बिखरा सड़क पर हाहाकार पसीने से भीगा हुआ
टनों अबीर और शोर घुमड़ता रहा घंटों चंदोवे की तरह
सड़क में धीरज सागर से कम नहीं
सोख लिया सब रात ही रात में
दूध और डबलरोटी की गाड़ियाँ घूँ-घूँ गुज़रने लगी हैं
सड़क कुनमुना के सीधी हो गई है
बसें भी चल पड़ेंगी ज़रा देर में
फिर सिग्नल आँखें खोलेंगे
तब तक शुरू हो चुकी होगी सड़क के कुनबे की रेलमपेल।


बॉटमलाइन
आज़ादी की लड़ाई में 'तिलक' ने 'गणेशोत्‍सव' का जो रचनात्‍मक-उपयोग किया था आज छह दशक बाद हम उसे एकदम-से भूल गये हैं । 'गणेशोत्‍सव' इस महानगर में अटूट 'आस्‍था' और हड़बड़ाए बदहवास जीवन में 'थोड़े मज़े' लेने का पर्व बनकर रह गया है ।

11 टिप्‍पणियां :

संजय बेंगाणी said...

चित्रों से पूरी कहानी कह दी. हमें लगा विसर्जन के बाद गणपती का हाल बताने वाले है.

Unknown said...

मजा आ गया यूनुस भाई, आपने जीवन्त कर दिया मुम्बई की यादों को…

सुशील छौक्कर said...

इस उत्सव की झलकियाँ पाकर आनंद आ गया। और आखिर में सच्ची बात कह दी। फोटो पसंद आये।

शरद कोकास said...

युनूस भाई अब तक हमने विसर्जन को फिल्मों मे ही देखा था लेकिन उसका यह माईक्रो व्यू पहली बार देखा चित्रों पर आपके बेहतरीन कमेंट्स और उस पर अनूप सेठी जी की कविता बहुत बढिया । अनूप भाई को भी बधाई भेज ही देता हूँ ।

दिनेशराय द्विवेदी said...

चित्रों को देख लगा हम आप के ही साथ थे। कविताएँ बहुत अच्छी हैं।

Ghost Buster said...

सचमुच आनंद आ गया. आप माइक्रोफ़ोन से ही नहीं, कैमरे के साथ भी अच्छा बोलते हैं. कमेन्ट्री भी शानदार है.

Kulwant Happy said...

एक शानदार और अद्भुत अभिव्यक्ति... युनूस के दिल से निकले उंगलियों से होते हुए ब्लॉग पर आकर खूब तरंग पैदा करते हैं।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

प्रदुषण -
- सचमुच एक गंभीर मुद्दा है
-- इस पर चेतना जागने का समय ,
परसों , बीत गया था
-- बहुत देर हो चुकी है ;-(
अच्छी बातें समझाने के लिए आपका आभार
-- और गणपति बप्पा मोरिया ,
मंगल मूर्ति मोरिया !!
;-)

- लावण्या

पंकज said...

सुंदर, आलेख भी और चित्र भी. इसके बाद कहाँ खो गये, दशहरा,दीपावली,ईद सब भी तो आयीं होगी मुम्बई में.

Rajesh Oza said...

Ganpati visharjan ka bahut hi exclusive coverage aapne prastut kiya hai.chitratmak pratuti ne abhivyanjana ko atyant spasht va saral bana diya hai.

"डाक साब" said...

कैसा मन है, भई !
३१ अगस्त,२००९ के बाद से कोई तरंग ही नहीं उठी इसमें आज तक ?

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