Friday, January 11, 2008

वो सात दिन

नये साल का पहला हफ्ता बड़ा ही परेशान कर देने वाला रहाहुआ यूं कि बकौल एम टी एन एल हमारे एरिया के एक्‍सचेन्‍ज में मेजर फाल्‍ट गयायानी घर का नेट कनेक्‍शन ऐसा सोया कि जागने का नाम ही नहीं ले रहाथायही वजह थी कि मैं पिछले एक हफ्ते से चिट्ठों की दुनिया में झांक भी नहीं पायाऔर जरूरी ईमेल देखनेऔर भेजने के लिए भी साईबर कैफे का सहारा लेना पड़ा

ये पूरा सप्‍ताह त्रासद रहात्रासद इसलिए क्‍योंकि सोचा ये था कि अब लगातार चिट्ठाकारी की जाएगी, कम से कम पढ़ने का काम तो ज़ोरों पर चलाया जाएगाइन सात दिनों में मुझे समझ में आया कि संचार के ये साधन अब हमारा नशा बनते जा रहे हैंएक ज़माने में इंटरनेट के बिना काम चल जाता थाफिर हफ्ते में एकाध बार मेल करने के दिन आएफिर दिन रात इंटरनेट पर रहने का ज़माना चला आयाऐसे में टेक्निकल फाल्‍ट तुरंत ज़मीन पर ला पटकते हैंआप बेकरार होते हैं कि सब जल्‍दी ठीक हो जाए, पर इस देश के टेलीफोन विभाग को तो आप जानते ही हैं नाबिना धक्‍का दिये काम नहीं करता

दिलचस्‍प
बात ये रही कि महानगर टेलीफोन निगम के उनींदे कर्मचारी और अधिकारी रोज़ाना दिलासा देते रहे किआज ठीक हो जायेगा, कल ठीक हो जायेगालेकिन जब बर्दाश् की सीमा पार हो गयी तो कल मैंने महानिदेशक ब्रॉडबैन्‍ड को फोन लगाया और उन्‍हें बताया कि उनके विभाग में कितना गैर पेशेवर रूख हैतबजाकर सारे के सारे नींद से जागेअपने आप घर के फोन और मोबाईल खनखनाने लगे, नरमी से बातें की जाने लगीं और दोपहर दो बजे तक ब्रॉडबैन्‍ड फिर से जागृत हो गया

पर अधिकारियों के टेलीफोन कॉल का सिलसिला रात तक जारी रहाहर व्‍यक्ति यही पूछ रहा था कि क्‍या समस्‍या थी, हमसे कहते, शिकायत दर्ज कराई थी क्‍या । क्‍या सर आपने तो ऊपर शिकायत कर दीबताईये कि हमारे देश के 'निगम' इस अंदाज़ में काम कर रहे हैंमज़ेदार बात ये है कि फाल्‍ट था बिल्डिंग के नीचे लगे बॉक्‍स में । अब लाइनमैन क्‍यों जहमत करेऔर साहब लोग क्‍यों उस पर दबाव डालें

बहरहाल जब तक नेट ठीक है, ठीक है, वरना क्‍या पता कब हफ्ते दस दिन के लिए सो जाएकोई विकल्‍प भी तो नहीं है भाईचलिए आप भी अपने कड़वे अनुभव बताईये हम सुन रहे हैं
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5 टिप्‍पणियां :

mamta said...

ऐसे ही हादसे से हम भी नए साल की शुरुआत मे दो-चार हुए थे।:)

अब यही दुआ है कि आपका नेट सही सलामत चलता रहे।

annapurna said...

हमारे शहर में तो नए साल की शुरूवात ज़ोरदार हो रही है मेट्रो रेल योजना की जोर-शोर से शुरूवात हुई है। रास्ते भर बोर्ड लग गए है। अप्रेल के अंत से काम शुरू करने और चार साल के काम के बाद रेलगाड़ी दौड़ाने की आशा दी है।

आगे अल्ला जाने…

Sanjeet Tripathi said...

भईया, चलो बधाई हो आखिरकार ठीक तो हुआ आपका नेट कनेक्शन!

हम इस मामले मे सुखी है। एयरटेल का डी एस एल कनेक्शन लिए हुए हैं। मस्त साढ़े चार सौ रूपए महीना पड़ता है, 64केबीपीएस की स्पीड और अनलिमिटेड डाउनलोडिंग। पिछले डेढ़ साल में अब तक सिर्फ़ तीन बार तकनीकी खामी से डाउन रहा वह भी ज्यादा से ज्यादा चार घंटे मे सुधार लिया एयरटेल वालों ने। मैं बी एस एन एल सिर्फ़ इसीलिए नही ले रहा कि अनलिमिटेड डाउनलोडिंग के लिए नौ सौ रूपए देने होंगे और बिगड़ने पर कब सुधार होगा इसकी कोई गारंटी नही!!
एयरटेल इस मामले मे सबसे बढ़िया है अपने यहां।

रहा सवाल नए साल में तो अपना शहर साला पिछले साल से ही हर जगह खुदा हुआ है जो कि शायद आने वाले नए साल तक खुदा ही रहेगा।

Anonymous said...

सात दिन,बस!

बहुत जल्दीं निपट गये भइया !

हम तो सात महीने से ज़्यादा लम्बी पारी खेल चुके हैं बी०एस०एन०एल० के साथ। यादगार/सबूत के तौर पर उनके और हमारे प्रेम-पत्रों का पूरा एक पुलिन्दा आज भी है हमारे पास।
(वैसे है मज़ेदार । आज तक पूरा विभाग याद करता है कि किसी बेहया आशिक से पाला पडा़ था।)
अगर पढ़ने का बूता हो तो भेजें आप के पास?

हम तो महानिदेशक से भी बहुत ऊपर तक पहुँच गये थे।
(मुन्ना भाई से भी बहुत पहले से गाँधीगीरी करने का तजुर्बा है हमें)

वजह ये कि सालों पहले जब जोर-शोर से इन्होंने अपनी ब्रॉडबैण्ड सर्विस(’डाटावन’) यहाँ शुरू की तो विज्ञापनबाजी करके पैसा तो तुरन्त जमा करा लिया पर बाद में जाकर बताया कि अभी तो दूर-दूर तक कहीं कोई इन्फ़्रास्ट्रक्चर ही नहीं है और महींनो तक यह सेवा शुरू होने के कोई आसार नहीं हैं। ऊपर से सीनाजोरी ये कि जमा पैसा वापस करने को भी नहीं तैयार थे।

हाँ ,उस पुरानी आशिकी का सिला ये ज़रूर मिला कि इधर कुछ सालों से हमारा "खा़स ख़याल" रखा जाता है।

तो इसी बात पर बी०एस०एन०एल० के नाम आपका वो वाला गाना एक बार फिर से हो जाय ? -

"हम तो ऐसे ( ही ) हैं भइया" !

- वही

Anita kumar said...

एक और समानता, हम भी एम टी एन एल के शिकार हो चुके हैं कुछ दिन पहले और इस बात का भी अनुभव हुआ कि हमें भी इन्टरनेट की लत लग गयी है, एक हफ़्ता ऐसे छ्टपटाये थे मानो जल बिन मछ्ली। हमारी तो कोई पहुंच भी नहीं थी बस शिकायत पर शिकायत दर्ज कराते गये।

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