वो सात दिन
नये साल का पहला हफ्ता बड़ा ही परेशान कर देने वाला रहा । हुआ यूं कि बकौल एम टी एन एल हमारे एरिया के एक्सचेन्ज में मेजर फाल्ट आ गया । यानी घर का नेट कनेक्शन ऐसा सोया कि जागने का नाम ही नहीं ले रहाथा । यही वजह थी कि मैं पिछले एक हफ्ते से चिट्ठों की दुनिया में झांक भी नहीं पाया । और जरूरी ईमेल देखनेऔर भेजने के लिए भी साईबर कैफे का सहारा लेना पड़ा ।
ये पूरा सप्ताह त्रासद रहा । त्रासद इसलिए क्योंकि सोचा ये था कि अब लगातार चिट्ठाकारी की जाएगी, कम से कम पढ़ने का काम तो ज़ोरों पर चलाया जाएगा । इन सात दिनों में मुझे समझ में आया कि संचार के ये साधन अब हमारा नशा बनते जा रहे हैं । एक ज़माने में इंटरनेट के बिना काम चल जाता था । फिर हफ्ते में एकाध बार ईमेल करने के दिन आए । फिर दिन रात इंटरनेट पर रहने का ज़माना चला आया । ऐसे में टेक्निकल फाल्ट तुरंत ज़मीन पर ला पटकते हैं । आप बेकरार होते हैं कि सब जल्दी ठीक हो जाए, पर इस देश के टेलीफोन विभाग को तो आप जानते ही हैं ना । बिना धक्का दिये काम नहीं करता ।
दिलचस्प बात ये रही कि महानगर टेलीफोन निगम के उनींदे कर्मचारी और अधिकारी रोज़ाना दिलासा देते रहे किआज ठीक हो जायेगा, कल ठीक हो जायेगा । लेकिन जब बर्दाश्त की सीमा पार हो गयी तो कल मैंने महानिदेशक ब्रॉडबैन्ड को फोन लगाया और उन्हें बताया कि उनके विभाग में कितना गैर पेशेवर रूख है । तबजाकर सारे के सारे नींद से जागे । अपने आप घर के फोन और मोबाईल खनखनाने लगे, नरमी से बातें की जाने लगीं । और दोपहर दो बजे तक ब्रॉडबैन्ड फिर से जागृत हो गया ।
पर अधिकारियों के टेलीफोन कॉल का सिलसिला रात तक जारी रहा । हर व्यक्ति यही पूछ रहा था कि क्या समस्या थी, हमसे कहते, शिकायत दर्ज कराई थी क्या । क्या सर आपने तो ऊपर शिकायत कर दी । बताईये कि हमारे देश के 'निगम' इस अंदाज़ में काम कर रहे हैं । मज़ेदार बात ये है कि फाल्ट था बिल्डिंग के नीचे लगे बॉक्स में । अब लाइनमैन क्यों जहमत करे । और साहब लोग क्यों उस पर दबाव डालें ।
बहरहाल जब तक नेट ठीक है, ठीक है, वरना क्या पता कब हफ्ते दस दिन के लिए सो जाए । कोई विकल्प भी तो नहीं है भाई । चलिए आप भी अपने कड़वे अनुभव बताईये हम सुन रहे हैं ।
5 टिप्पणियां :
ऐसे ही हादसे से हम भी नए साल की शुरुआत मे दो-चार हुए थे।:)
अब यही दुआ है कि आपका नेट सही सलामत चलता रहे।
हमारे शहर में तो नए साल की शुरूवात ज़ोरदार हो रही है मेट्रो रेल योजना की जोर-शोर से शुरूवात हुई है। रास्ते भर बोर्ड लग गए है। अप्रेल के अंत से काम शुरू करने और चार साल के काम के बाद रेलगाड़ी दौड़ाने की आशा दी है।
आगे अल्ला जाने…
भईया, चलो बधाई हो आखिरकार ठीक तो हुआ आपका नेट कनेक्शन!
हम इस मामले मे सुखी है। एयरटेल का डी एस एल कनेक्शन लिए हुए हैं। मस्त साढ़े चार सौ रूपए महीना पड़ता है, 64केबीपीएस की स्पीड और अनलिमिटेड डाउनलोडिंग। पिछले डेढ़ साल में अब तक सिर्फ़ तीन बार तकनीकी खामी से डाउन रहा वह भी ज्यादा से ज्यादा चार घंटे मे सुधार लिया एयरटेल वालों ने। मैं बी एस एन एल सिर्फ़ इसीलिए नही ले रहा कि अनलिमिटेड डाउनलोडिंग के लिए नौ सौ रूपए देने होंगे और बिगड़ने पर कब सुधार होगा इसकी कोई गारंटी नही!!
एयरटेल इस मामले मे सबसे बढ़िया है अपने यहां।
रहा सवाल नए साल में तो अपना शहर साला पिछले साल से ही हर जगह खुदा हुआ है जो कि शायद आने वाले नए साल तक खुदा ही रहेगा।
सात दिन,बस!
बहुत जल्दीं निपट गये भइया !
हम तो सात महीने से ज़्यादा लम्बी पारी खेल चुके हैं बी०एस०एन०एल० के साथ। यादगार/सबूत के तौर पर उनके और हमारे प्रेम-पत्रों का पूरा एक पुलिन्दा आज भी है हमारे पास।
(वैसे है मज़ेदार । आज तक पूरा विभाग याद करता है कि किसी बेहया आशिक से पाला पडा़ था।)
अगर पढ़ने का बूता हो तो भेजें आप के पास?
हम तो महानिदेशक से भी बहुत ऊपर तक पहुँच गये थे।
(मुन्ना भाई से भी बहुत पहले से गाँधीगीरी करने का तजुर्बा है हमें)
वजह ये कि सालों पहले जब जोर-शोर से इन्होंने अपनी ब्रॉडबैण्ड सर्विस(’डाटावन’) यहाँ शुरू की तो विज्ञापनबाजी करके पैसा तो तुरन्त जमा करा लिया पर बाद में जाकर बताया कि अभी तो दूर-दूर तक कहीं कोई इन्फ़्रास्ट्रक्चर ही नहीं है और महींनो तक यह सेवा शुरू होने के कोई आसार नहीं हैं। ऊपर से सीनाजोरी ये कि जमा पैसा वापस करने को भी नहीं तैयार थे।
हाँ ,उस पुरानी आशिकी का सिला ये ज़रूर मिला कि इधर कुछ सालों से हमारा "खा़स ख़याल" रखा जाता है।
तो इसी बात पर बी०एस०एन०एल० के नाम आपका वो वाला गाना एक बार फिर से हो जाय ? -
"हम तो ऐसे ( ही ) हैं भइया" !
- वही
एक और समानता, हम भी एम टी एन एल के शिकार हो चुके हैं कुछ दिन पहले और इस बात का भी अनुभव हुआ कि हमें भी इन्टरनेट की लत लग गयी है, एक हफ़्ता ऐसे छ्टपटाये थे मानो जल बिन मछ्ली। हमारी तो कोई पहुंच भी नहीं थी बस शिकायत पर शिकायत दर्ज कराते गये।
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