‘बचपन के एक बाबू जी थे’- यूनुस ख़ान
कल पितृ दिवस था। भले ही बाज़ार ने इस दिन को अपनी सुविधा और मुनाफे के सरोकारों के तहत तैयार किया है, लेकिन अगर कोई दिन इस ज़रूरी रिश्ते को सलाम करता है—तो हम अपने तरीक़े से इसके साथ खड़े हो सकते हैं।
सिनेमा ने पिता की बहुधा स्टीरियो-टाइप छबि दी है, जिसमें वो अपने नालायक बेटे को ‘दूर हो जा मेरी नज़रों से’ वाला संवाद सुनाता है। या फिर उस पर गर्व करता है। जैसे ‘मुग़ल-ए-आज़म’ में पृथ्वीराज कपूर अकबर की भूमिका में—जो प्यार की राह में अपने शहंशाही गुरूर के साथ मौजूद हैं।
जब महेश भट्ट की फिल्म ‘डैडी’ को याद करता हूं- तो अनुपम खेर की एक शराबी पिता की छबि उभरती है। इस फिल्म में सूरज सनीम ने बेहतरीन गाना लिखा है—‘सपनों के घर की छत पे हैं तारे/ टॉफियों की दीवारों पर लटके गुब्बारे/ घर के उजियारे सो जा रे/ डैडी तेरे जागें, तू सो जा रे’। इसे तलत अज़ीज़ ने गाया है। अगर आपने ये फिल्म नहीं देखी है और अगर आप ये सोच रहे हैं—कि ये किसी बेटे के लिए पिता का गीत है—तो आप ग़लत समझ रहे हैं। ये गाना डैडी अपनी बेटी के लिए गा रहे हैं।
अनुपम खेर की एक और पिता की छबि उभरती है—‘सारांश’ वाले पिता वाली। इत्तेफाक ये है कि ये भी महेश भट्ट की ही फिल्म है। एक दृश्य जो आपको यू-ट्यूब पर भी मिल जाएगा, इसमें अपने बेटे को खो चुका एक लाचार पिता, परेशान है- जूझ रहा है कि उसकी अस्थियां उसे सौंप दी जाएं। पर दफ्तर का अपना सिस्टम है। जिसमें भ्रष्टाचार है, जिसमें देरी है, जिसमें संवेदनहीनता है। वो कहता है—‘एक बाप का अपने बेटे की लाश पर अधिकार है या नहीं। या उसके लिए भी हमें रिश्वत देनी पड़ेगी’।
पेशेवर हिंदी सिनेमा में पिता अमूमन बेटे या बेटी के फैसलों के खिलाफ ही खड़े नज़र आते रहे हैं। जैसे ‘दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे’ के अमरीश पुरी। या ‘मुहब्बतें’ के अमिताभ बच्चन। भले ही अंत में उनका हृदय-परिवर्तन होता दिखाया जाता है। ‘एक फूल दो माली’ में पिता अपने बेटे के लिए प्रेम धवन का लिखा गीत गाते हैं—‘मेरा नाम करेगा रोशन/ जग में मेरा राज दुलारा’। इस गाने में ये आग्रह भी है कि कल जब मैं बूढ़ा हो जाऊं तो मेरा ख्याल रखना। ‘मैं प्रेम की दीवानी हूं’ में लड़की गाती है—‘पापा की परी हूं मैं’, ये हमारे बदलते हुए समाज में लड़की के प्रति मिटते भेदभाव को दिखाता है। हाल के दिनों में मैंने ‘दंगल’ में अद्भुत व्यंग्य-गीत देखा—‘बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है’। ये पिता....अपनी बेटियों को पहलवान बनाने के लिए समाज से टक्कर लेता है।
1 Comentário:
बहुत अच्छा लिखा आपने !!!!
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