tag:blogger.com,1999:blog-3018248192571293984.post1291773006069723363..comments2023-08-22T13:59:45.625+05:30Comments on तरंग: कवि सम्मेलनों की विकल याद और एक दिन कविताओं भराYunus Khanhttp://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-3018248192571293984.post-31967797676841676812008-03-22T17:09:00.000+05:302008-03-22T17:09:00.000+05:30अब जल्दी से इन कविताओं को सुनने का इंतजार है।अब जल्दी से इन कविताओं को सुनने का इंतजार है।सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3018248192571293984.post-79388972395860914812008-03-22T14:23:00.000+05:302008-03-22T14:23:00.000+05:30सफर की हद है वहाँ तक के कुछ निशान रहेचले चलो के जह...सफर की हद है वहाँ तक के कुछ निशान रहे<BR/>चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे । <BR/>ये क्या उठाए कदम और आ गई मंज़िल<BR/>मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे ।।<BR/><BR/>kya baat haiकंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3018248192571293984.post-82710635129852999992008-03-22T11:22:00.000+05:302008-03-22T11:22:00.000+05:30आपने अच्छा किया जो ये चिट्ठा अभी लिख दिया। मैं होल...आपने अच्छा किया जो ये चिट्ठा अभी लिख दिया। मैं होली के बाद सोमवार को रेडियोनामा पर एक शिकायती चिट्ठा लिखने वाली थी कि बहुत समय से विविध भारती पर कवि सम्मेलन नहीं सुने।<BR/><BR/>हैदराबाद के जिन कवि सम्मेलनों और मुशायरों की बात आपने की लगभग उन सभी में श्रोता की तरह मैं मौजूद रही।<BR/><BR/>हैदराबाद दूरदर्शन में स्थानीय कवियों के साथ कई कवि सम्मेलन आयोजित किए, संचालन भी किया। एक ऐसा ही कवियित्री सम्मेलन मुझे याद आ रहा है जो केवल महिलाओं को लेकर किया गया था जिसमें स्थानीय कवित्रियाँ थी पर मुख्य अतिथी थी सरोजिनी प्रीतम जो उस समय हैदराबाद में थी सो उन्हें आमंत्रित किया गया था।<BR/><BR/>संचालन मेरा था। हैदराबाद में पानी की उस समय बहुत किल्लत थी। सरोजिनी प्रीतम ने उसी पर हास्य कविता सुनाई थी जिसकी आरंभि पंक्ति थी -<BR/><BR/>दमयन्ती उठी भी नहीं थी कि नल चला गया<BR/><BR/>अन्नपूर्णाannapurnahttps://www.blogger.com/profile/05503119475056620777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3018248192571293984.post-36534953925627130922008-03-22T01:02:00.000+05:302008-03-22T01:02:00.000+05:30अरे वाह - अच्छा तो यह रही आपके व्यस्त रहने की वजह ...अरे वाह - अच्छा तो यह रही आपके व्यस्त रहने की वजह - क्या बात सुनाई " ये क्या उठाए कदम और आ गई मंज़िल/ मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे" - मेज़ की बात है की कल दिन छुट्टी थी तो निदा फाजली साहब की किताब उठाई थी और पहला पन्ना "न चिट्ठी न तार" वाला ही खुला - ताउम्र होस्टलों में गुजारने के कारण कम कवि सम्मेलन नसीब हुए - बहुत छुटपन में घर की गोष्ठियाँ रहीं - अर्चन जी की जो कविता बड़ी बहन ऊपर बता रही हैं - थोड़ी मुझे भी याद है - बहुत सशक्त अभिव्यक्ति है - अभी भी जवान है - और उस समय अर्चन जी जब गाते थे तो लगता था सब रुक गया है - "फूलों ने महकना छोड़ दिया / काँटों पर शबनम सोती है / बंगले की नागफनी हंसती / आँगन की तुलसी रोती है/ कोई तड़प रहा उजियारे को / कोई सूरज बांधे सोता है/ ऐसा भी होता है (२)"<BR/>होली वगैरह की राम राम रेडियोनामा में कर आया हूँ - मनीषAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/08624620626295874696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3018248192571293984.post-73982984872970698212008-03-20T14:30:00.000+05:302008-03-20T14:30:00.000+05:30कवी सम्मेलन की बात करके आपने हमारे हमें हमारे कॉले...कवी सम्मेलन की बात करके आपने हमारे हमें हमारे कॉलेज में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों की याद दिला दी.. अभी भी कुछ ८-१० जीबी कवितायें पड़ी है... हार्ड डिस्क में... ३ अप्रिल का इंतज़ार रहेगा.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3018248192571293984.post-77267366843039177582008-03-20T08:10:00.000+05:302008-03-20T08:10:00.000+05:30यूनुस, कवि सम्मेलन के ज़िक्र से आपनें हमें बचपन की ...यूनुस, कवि सम्मेलन के ज़िक्र से आपनें हमें बचपन की याद दिला दी। हमारे परिवार में पिता जी ने भाषा और कविता से लगाव खू़ब ज़ाहिर किया और हम बच्चों को भी अपनें साथ कवि सम्मेलनों में ले जाते रहे। और तो और, रीवा में हमारे घर में अक्सर आयोजित कविता संध्या में जिन कवियों का जमाव होता था उनमें एक थे ओज से कविता पाठ करनें वाले शिव कुमार अर्चन जी जिनकी लिखी पंक्तियाँ ’जो यहाँ मसीहा होता है अपना सलीब खु़द ढ़ोता है’अभी तक याद हैं।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3018248192571293984.post-43855977352110486542008-03-20T07:52:00.000+05:302008-03-20T07:52:00.000+05:30काश हमारा घर आप के दफ़तर के पास होता तो हम इन महारथ...काश हमारा घर आप के दफ़तर के पास होता तो हम इन महारथियों को सुनने का मौका कभी न खोते। भाग्यशाली है जी आप। <BR/>सारे जीवन के बदले में कुछ लम्हे जी लेने दो <BR/><BR/>सागर कब मांगा है हमने कुछ क़तरे पी लेने दो ।। <BR/><BR/>बहुत सुन्दर शेर है। <BR/>कार्यक्र्म का इंतजार रहेगा। रवि जी को प्रार्थना करनी पड़ेगी की इसकी भी पोडकास्ट बना दें तो क्या बात है।<BR/>विविध भारती बहुत ही उम्दा कार्यक्र्म दे रहा है।Anita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.com