Tuesday, December 11, 2018

अदाकार-ए-आज़म


लोकमत समाचार में 10
दिसंबर को प्रकाशित कॉलम ज़रा हटके—


हिंदी सिनेमा के अदाकार-ए-आज़म दिलीप कुमार का जन्‍मदिन आता है ग्‍यारह दिसंबर को। वो शख्‍स जिसने हिंदी-सिनेमा के इतिहास को बदलकर रख दिया।

ये जिक्र दिलचस्‍प है कि दिलीप कुमार ने गाने भी गाए हैं। पहला गाना उन्‍होंने सन 1957 में आई फिल्‍म मुसाफिरमें लता जी के साथ गाया था। ऋत्विक घटक की लिखी इस फिल्‍म को ऋषिकेश मुखर्जी ने बनाया था। ये हिंदी सिनेमा की पहली एपीसोडिक फिल्‍म कही जा सकती है। शैलेंद्र का लिखा गीत था, संगीत सलिल चौधरी का और इस गाने के बोल थे—‘लागी नाहीं छूटे रामा। इस गाने में दिलीप साहब एकदम पक्‍के लग रहे हैं। इस धुन से फिल्‍म अभिमान’ (1973) का गीत नदिया किनारे हिराए आई कंगनाभी याद आ जाता है।
दिलीप कुमार ने एक फिल्‍म के लिए खास तौर पर सितार बजाना सीखा था। सिर्फ इसलिए कि उनकी उंगलियों पर फोकस किया जाता। ऐसे में उन्‍हें कतई गवारा नहीं होता कि किसी डबलकी उंगलियों पर शॉट ले लिया जाए। मधुबन में राधिका नाचे रे’-- इस गाने को दिलीप साहब ने कितनी खूबसूरती से निभाया है। ऐसा रहा है दिलीप कुमार का जुनून। यूसुफ साहब को सालगिरह मुबारक।

इसके अलावा दिलीप साहब ने सुभाष घई की फिल्‍म कर्मामें पूछे मेरी बीवी डू यू लव मीजैसा मज़ाहिया मिज़ाज वाला गाना भी गाया था। सन 1948 में आई फिल्‍म मेलाउनके करियर की एक अहम फिल्‍म थी। नौशाद के संगीत से सजी इस फिल्‍म में कई बेहतरीन गाने थे। धरती को आकाश पुकारे’, ‘गाये जा गीत मिलन के’, ‘मैं भंवरा तू है फूलवग़ैरह। अंदाज़का गाना टूटे ना दिल टूटे नावो गाना है जिसमें दिलीप कुमार पियानो बजा रहे हैं और उनके सामने राजकपूर और नरगिस खड़े हैं। जबकि हारमोनियम बजाते हुए वो परदे पर गाते नज़र आए—‘हुस्‍न वालों को ना दिल दो ये मिटा देते हैं। ये तलत मेहमूद का गाया गाना है। इसी फिल्‍म में तलत का गाया गाना था—‘मेरा जीवन साथी बिछड़ गया लो ख़त्‍म कहानी हो गयी। तलत मेहमूद इस दौर में दिलीप कुमार के लिए ख़ूब गा रहे थे। सन 1951 में आई फिल्‍म तरानामें तलत ने गाया—‘सीने में सुलगते हैं अरमानऔर एक मैं हूं एक मेरी बेकसी की शाम है
सन 1951 में ही आई दीदारका एक गाना ख़ासतौर पर याद करना चाहूंगा। तांगे पर दिलीप कुमार और नरगिस चले जा रहे हैं और इस दौरान दिलीप साहब गा रहे हैं—‘बचपन के दिन भुला ना देना। यहां वो रफ़ी साहब की आवाज़ में गा रहे हैं। आपको बता दें कि यही गाना बेबी तबस्‍सुम और बालक परीक्षित साहनी पर भी फिल्‍माया गया था। और यहां आवाज़ें लता मंगेशकर और शमशाद बेगम की थीं। सन 1952 में आई फिल्‍म संगदिल। जिसमें शम्‍मी सितार बजा रही हैं और दिलीप साहब गा रहे हैं—‘ये हवा ये रात ये चांदनी। राजेंद्र कृष्‍ण के बोल और सज्‍जाद की तर्ज़। इसी साल आई फिल्‍म दाग़। जिसमें तलत महमूद ने गाया—‘ऐ मेरे दिल कहीं और चल। अपनी तरह का एकदम अलग गाना। मेहबूब ख़ान की कालजयी फिल्‍म आनमें नौशाद साहब ने क्‍या खनकता हुआ संगीत दिया। मान मेरा अहसान’, ‘मुहब्‍बत चूमे जिनके हा‍थ’, ‘दिल में छिपाकर प्‍यार का तूफान ले चले’....

yunus.radiojockey@gmail.com
लेखक विविध भारती में कार्यरत हैं।

तरंगित टिप्‍पणियां

तरंग © 2008. Template by Dicas Blogger.

HOME